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एक बादशाह ने एक बहुत ही आलीशान मकान तामीर किया और इसके बाद अपने वजीरों और खैरख्वाहों से पूछा कि बताओ इस मकान में कोई कमी तो नहीं रह गई ? तो जवाब मिला के हुजूर ऐसा आलीशान मकान आप की रियासत में कभी नहीं देखी परंतु आपके इस आलीशान मकान के बगल में जो झोपड़ी है वहां से हमेशा धुआं निकलता रहता है और यह आपके मकान की दीवारों को सैय्याह कर रहा है, आप उस मकान को वहां से हटा दें तो आपके मकान की खूबसूरती बरकरार रहेगी, बादशाह ने कहा कि यह झोपड़ी एक बूढ़ी औरत की है और वह इस झोपड़ी में अपनी सारी उम्र गुजार दी है अब वह अपने उम्र के अंतिम पड़ाव पर है, मैंने अपने मकान की नींव रखते समय उस बुढ़िया के पास जा कर यह प्रस्ताव रखा था कि वह अपना यह झोपड़ी मुझे बेच दे और मुंह मांगी कीमत ले ले या इसके एवज में जैसा चाहे वैसा मकान ले ले, तो उसने जवाब दिया की “ऐ बादशाह यह झोपड़ी मेरी मिल्कियत है और मैं इस में ही पैदा हुई और बूढ़ी भी हो गई, मुझे तुम्हारी सारी दौलत देख कर भी बुरा नहीं लगता और तुमसे मुझ गरीब की एक झोपड़ी भी बर्दाश्त नहीं हो रही”। तो मैं खमोश हो गया, अब जब मेरा मकान बनकर तैय्यार हो गया और मैंने उस झोपड़ी से धुआं निकलता देखा तो उस बुढ़िया से इसकी वजह पुछी तो उसने बताया की वह रोज अपने लिए लकड़ियाँ जलाकर खाना तैय्यार करती है, तो मैंने उस बुढ़िया के पास भुने हुए मुर्गे और रोटियां भेजी और यह पैगाम भेजा के ए बुढ़िया मैं तुम्हें रोज ऐसे ही तरह तरह के खाने पेश करूंगा, तुम अपनी झोपड़ी में आग लगाना छोड़ दो, तो बुढ़िया ने जवाब में भेजा की “मुल्क भर में ना जाने कितने लोग भूखे मर रहे हैं और मैं मुर्गे मुसल्लम खाऊं ? यह जायज नहीं, मैंने 70 साल सूखी रोटियों में गुजारा किया है और आज भी मुझे खुदा का खौफ है, तू मेरी इस झोपड़ी को बरकरार रहने दे , यह तेरे अदल की एक मिसाल होगी लोग तुम्हें अदलो इंसाफ का पैकर समझेंगे, तेरा महल तो इस दुनिया में एक मुद्दत के लिए ही रहेगा लेकिन मेरे झोपड़ी के साथ किया हुआ अदल जब तक यह दुनिया रहेगी तब तक रहेगा”, लिहाजा मैंने उस बुढ़िया की बात से मुतासिर होकर उसकी झोपड़ी बरकरार रखी है, उस बुढ़िया के पास एक गाय भी है जिसे वह चराने के लिए रोजाना दुर जंगल ले जाती है और मेरे मकान के सहन में जो फर्श है उस पर से गुजरती है जिससे मेरा फर्श गंदा हो जाता है, एक बार दरबान ने टोका की तु शाही मकान धब्बा लगाती है, तो इस पर इस बुढ़िया ने कहा था की “बादशाह और शाही नामों पर धब्बा सिर्फ अवाम पर जुल्मो सितम से लगता है, हमारी क्या मजाल की बादशाह के किसी चीज पर धब्बा लगाऊं”।। उस बुढ़िया की यह बात से भी मैं मुतासिर हुआ और मुझे अवाम की देखभाल और पड़ोसियों के हुकुक समझ आ गए।

– एक गरीब को भी इस दुनिया में रहने का उतना ही हक है जितना कि एक अमीर को है और आदिल हुक्मरान अपनी रिआया का हर तरह से खयाल रखता है, और हाँ अपने पड़ोसियों से मोहब्बत एंव सिलारहमी करनी चाहिए, चाहे वो अमीर हो या गरीब। और बेशक अदलो इंसाफ से रहती दुनिया तक नाम रौशन रहता है।
अल्लाह हमें पड़ोसियों से मोहब्बत और उनके हुकुक समझने और उसपर अमल करने की तौफीक अता करे। आमीन……..

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