मशहूर वाक़िया है कि एक मर्तबा हज़रत बा यज़ीद बस्तामी अपने साथियों के साथ नहर किनारे कहीं जा रहे थे तो देखा कि एक बिच्छू पानी में डूब रहा है… आप जैसे ही उसे निकालने की कोशिश करते वो आपको डंक मार देता…। कोई आठ दस मर्तबा ये वाक़िया हुआ तो आपके साथियों ने कहा या हज़रत! जब बिच्छू आप को डंक मार रहा है तो आप उसे बचाने की कोशिश क्यों कर रहे हैं…?
तो आप ने जवाब दिया कि जब बिच्छू अपनी बुरी ख़सलत नहीं छोड़ रहा तो मैं अपनी अच्छी ख़सलत क्यों छोडूँ…?
अगर ये बात हमारी समझ में आजाए तो लोगों से शिकवे शिकायात तक़रीबन ख़त्म हो जाएं…। जब बुरा आदमी अपनी पहचान बुराई से करवाता है तो हम अपनी पहचान अच्छाई (अगर हम वाक़ई अच्छे हैं) से क्यों नहीं करवा सकते…। जब कोई बुराई नहीं छोड़ता तो आप अच्छाई क्यों छोड़ देते हैं…?
जब दो टीमों के दरमयान रसाकुशी चल रही हो तो जो टीम दूसरी को अपनी तरफ़ खींच ले वही फ़तेह है अगर हम अच्छाई छोड़ कर बुराई करने लगें तो जीत बुराई की होगी… और ऐसा तब होता है कि हम हक़ीक़त में अच्छे नहीं होते बस अपने पसंदीदा लोगों के साथ अच्छे होते हैं…। और हमारे पसंदीदा लोग हमारा रवैय्या दूसरों के साथ बुरा देख कर हमें भी बुरा समझते हैं…। इसलिए वो भी हम से बुरी तरह पेश आते हैं…।
जिस तरह बुराई की ये पहचान है कि वो हमेशा नुक़्सान पहुंचाएगी उसी तरह अच्छाई की ये पहचान होनी चाहिए कि वो हमेशा दूसरों का फ़ायदा सोचे…। दूसरों को आसानी पहुंचाए…।
पसंदीदा लोगों से अच्छा रवैय्या रखना दरअसल अच्छाई नहीं बल्कि आपके नफ़स की ज़रूरत है और नफ़स से ज़्यादा बुरा कोई नहीं…। अच्छाई वो है जो सबके साथ और सब के लिए हो…।
अल्लाह तआला हम सबको आसानी अता फ़रमाए और आसानियां तक़सीम करने का शर्फ़ बख़्शे…।
आमीन या रब्बल आलमीन!
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