ज़िंदगी परदेस कि अजीब है यारो
पैसे होते हुये भी मै यहाँ गरीब हुं यारो,
ये वो मंज़िल है जो बस दूर से अच्छी लगती है
कुछ को भा गयी कुछ बड़े बदनसीब है यारो..
पैसे की चाह में निकल तो आया था
साथ में सबके सपने बस माँ की दुआए लाया था..
यहा कोई किसीका नही होता ये पता चल गया
ज़रूरत के वक़्त हर कोई बदल गया..
सुन यार मेरे यहाँ कोई नहीं किसीका
उलझने हजारो है आलम है बेबसी का..
न पेड़ है पैसो का न मेरी सोने की खान है
उंचाईओ पे काम करते है हथेली पे जान है.
न बिवी की रोटी है ना माँ की दाल है
जेब में पैसे होके भी मुसाफिरों सा हाल है..
न प्यास का अहसास है न खाने की भूक है
ज़िन्दगी सोने का ताला है पर एक खाली संदूक है..
एक दौर ऐसा भी आया जब मै बोहोत बीमार था
बुखार से मर रहा था पर मजबूरि से लाचार था..
जाना पड़ा था काम पे दिल में सवाल था
आँखों में थे आंसू पर बच्चों का खयाल था..
आधे से ज्यादा ज़िंदगी कमाने मे निकल गयी
अपनो कि ज़िंदगी बहेतर बनाने मे निकल गयी..
वो कर रहे है ख्वाहिश के घर मे AC लग जाये
यहाँ मेरी जवानी पसीना बहाने मे निकल गयी..
ना ख्वाहिश है कोई न कोई सपना है
ना दुश्मन है यहाँ कोई ना कोई अपना है..
सुबह से शाम बस काम किये जा रहा हुँ
ज़िंदगी हस्ते हुये फिर भी जिये जा रहा हुँ..
छोड़ आऊंगा ये परदेस यहां ज़िन्दगी बेकार है
अब तो बस बच्चों के कमाने का इंतज़ार है..
फिर न करूँगा चाहत कभी गल्फ जाने की
कोशिश करूँगा थोडा बोहोत गांव में कमाने की..
एक इल्तजा है मेरी अगर तू समझ सकता है
मत जा परदेस अगर यही कमा सकता है..
कम पैसो में भी ज़िन्दगी बसर होती है
एक दूसरे को समझने की मोहब्ब्त अगर होती है..
अच्छा सुन कोई आये तो मेरी दवाई भेज देना
और हो सके तो माँ के हाथ की थोड़ी मिठाई भेज देना..
चलो अलविदा निकलता हुं थोडा काम है
अब क्या करे ज़िन्दगी इसी का नाम है
अब क्या करे ज़िन्दगी इसी का नाम
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