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हज़रत अली रज़ि दुश्मन के सीने से उतर गये
हज़रत अली रज़ि की ज़ात में अल्लाह तआला ने बहुत सी खूबियां जमा कर दी थी आप के हर काम में सच्चाई होती थी और आप धोखे फरेब से न वाकिफ थे एक बार मैदाने जिहाद में अली रज़ि ने एक काफिर सिपाही पर फतह पा ली आप उसे कत्ल करने जा रहे थे उसने आप के मुँह पर थूक दिया हज़रत अली रज़ि को बहुत गुस्सा आया मगर आप ने ज़ब्त से काम लिया इसके सीने से उतर आये और इसे कत्ल न किया काफिर सिपाही बहुत हैरान हुआ इस की समझ में ये बात ना आई और इस ने कहा आप ने मुझ पर तलवार उठाई फिर आप ने मुझे कत्ल नही किया हालांके मैने बहुत गुस्ताकी की आप के चेहरे पर थूक दिया अली रज़ि आप ने मुझे कियु माफ़ कर दिया अली रज़ि ने फ़रमाया में तुझ से अल्लाह के लिए लड़ता हुँ अपनी ज़ात के लिए नही मै अल्लाह का बन्दा हूँ अपनी खुहशियात का नही मै तुझे अल्लाह के लिए कत्ल करने न रहा था तूने मेरे मुह पर थूक दिया मुझे बे हद गुस्सा आया और मैने सोचा के अगर अब मै तुझे कत्ल करूँ तो मेरा ये काम अल्लाह के लियें होगा या अपने बदले और इन्तिकाम के लिये बस येही सोच कर मैने तलवार हटा ली हज़रत अली रज़ि की बात सुन कर इस सिपाही ने कहा अली आप मुझे कलमा शहादत पढ़ा दे और यूँ वो सिपाही मुसलमान हो गया येही नही बल्कि इस की कौम के 50 आदमी मुसलमान हो गये हज़रत अली रज़ि ने बर्दाश्त और ज़ब्त की तलवार से इतने आदमियो को मौत से बचा लिया सच है ज़ब्त की तलवार लोहे की तलवार से तेज़ है

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