अब तक यह तरीका था कि जब नमाज़ का वक़्त आता तो लोग अपने आप इकट्ठे हो जाते, इसलिये आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को यह ख़्याल हुआ कि नमाज़ के लिये ऐसी कोई पहचान और निशानी होनी चाहिये जिससे सारे मौहल्ले के मुसलमान एक ही वक़्त सहूलत के साथ मस्जिद में आ जाया करें । किसी ने कहा नाफ़ूस (घण्टा या संख) बजा दिया जाया करे, किसी ने कहा बूक (बिगुल) बजा दिया करें कि लोग उसकी आवाज़ सुनकर जमा हो जाया करें, लेकिन आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने नाफ़ूस को ईसाइयों के जैसा होने की वजह से रद्द फ़रमाया और बूक को यहूदियों के जैसा होने की वजह से रद्द फ़रमाया ।
किसी ने कहा कि किसी ऊँची जगह आग जला दिया करें कि लोग उसको देखकर जमा हो जाया करें, आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया यह तो मजूसियों (आग के पुजारियों) का तरीक़ा है । ग़र्ज़ यह कि मज्लिस ख़त्म हो गई और कोई बात तय नहीं हुई । इसी बीच अब्दुल्लाह बिन ज़ैद ने यह ख़्वाब देखा कि एक आदमी हरे कपड़े पहने हुए नाफ़ूस हाथ में लिये हुए मेरे पास से गुज़रा, मैंने पूछा इस नाफ़ूस को बेचोगे? उसने कहा तुम इसको ख़रीदकर क्या करोगे? मैंने कहा इसको बजाकर नमाज़ के लिये बुलाया करेंगे । उस आदमी ने कहा मैं तुमको इससे बेहतर तदबीर न बता दूँ? मैंने कहा क्यों नहीं! ज़रूर बतलाओ । उस आदमी ने कहा- नमाज़ के वक़्त इस तरह कहा करो:
अल्लाहु अक्बर् अल्लाहु अक्बर् । अल्लाहु अक्बर् अल्लाहु अक्बर् । अश्हदु अल्ला इला-हा इल्लल्लाह् । अश्हदु अल्ला इला-हा इल्लल्लाह् । अश्हदु अन्-न मुहम्मदर्रसूलुल्लाह् । अश्हदु अन्-न मुहम्मदर्रसूलुल्लाह् । हय्-य अलस्सलाह् । हय्-य अलस्सलाह् । हय्-य अलल् फ़लाह् । हय्-य अलल् फ़लाह् । अल्लाहु अक्बर् अल्लाहु अक्बर् । ला इला-ह इल्लल्लाह्
।
तर्जुमा: अल्लाह सबसे बड़ा है । अल्लाह सबसे बड़ा है । अल्लाह सबसे बड़ा है । अल्लाह सबसे बड़ा है । मैं गवाही देता हूँ कि सिवाए अल्लाह के कोई इबादत के लायक़ नहीं । मैं गवाही देता हूँ कि सिवाए अल्लाह के कोई इबादत के लायक़ नहीं । मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद अल्लाह के रसूल है । मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद अल्लाह के रसूल है । आओ नमाज़ की तरफ़ । आओ नमाज़ की तरफ़ । आओ भलाई की तरफ़ । आओ भलाई की तरफ़ । अल्लाह सबसे बड़ा है । अल्लाह सबसे बड़ा है । अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं ।
और फिर कहा कि जब नमाज़ के लिये खड़े होओ तो इसी तरह कहो और “हय्-य अलल्-फ़लाह” के बाद दो बार “क़द् क़ामतिस्सलाह” कहो ।
जब सुबह हुई तो मैं आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुआ और यह ख़्वाब बयान किया । सुनते ही इरशाद फ़रमाया यक़ीनन यह ख़्वाब सच्चा और हक़ है, इन्शा-अल्लाह । उसके बाद अब्दुल्लाह बिन ज़ैद को हुक्म दिया कि ये कलिमात (जुमले) बिलाल को बता दें कि वह अज़ान दें, इसलिये कि बिलाल की आवाज़ तुमसे ज़्यादा ऊँची है ।
हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु ने अज़ान दी, हज़रत उमर रज़ि. के कान में आवाज़ पहुँची उसी वक़्त चादर घसीटते हुए घर से निकले और आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुए और अर्ज़ किया या रसूलल्लाह! क़सम है उस ज़ाते पाक की जिसने आपको हक़ (सच्चा दीन) देकर भेजा, बेशक मैंने भी ऐसा ही ख़्वाब देखा जैसा अब्दुल्लाह बिन ज़ैद को दिखाया गया । यह सुनकर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया- लिल्लाहिल् हम्द (तमाम तारीफ़ अल्लाह ही के लिये है) ।
(आख़िरी नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पेज 287-289)
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