जब इब्लीस ने तमर्रुद व इन्हिराफ की राह इख्तियार की और इसके नतीजे में उसे मरदूदो मलऊन बना कर रान्दह दरगाह कर दिया गया तो उसने बरमला उसी मौक़े पर हलफ उठा कर अपने इस अज़्म का इज़हार किया कि:
“वो बनी नोए इंसान को गुमराह करके छोड़ेगा-”
इब्लीस के इस इरादे का ज़िक्र क़ुरआन मजीद में इस तरह मौजूद है:
ﻗَﺎﻝَ ﻓَﺒِﻌِﺰَّﺗِﻚَ ﻟَﺄُﻏْﻮِﻳَﻨَّﻬُﻢْ ﺃَﺟْﻤَﻌِﻴﻦَ 0
ﺇِﻟَّﺎ ﻋِﺒَﺎﺩَﻙَ ﻣِﻨْﻬُﻢُ ﺍﻟْﻤُﺨْﻠَﺼِﻴﻦَ 0
“शैतान बोला ! तेरी इज़्ज़त की क़सम मैं इन सबको ज़रूर गुमराह करूंगा- सिवाय तेरे उन बरग़ज़ीदा बंदों के जो (मेरे और नफ्स के फरेबों से) खलासी पा चुके हैं-”
( ﺍﻟﻘﺮﺁﻥ،ﺳﻮﺭۃ، صفحہ: 38:82،83 )
हुज़ूर नबी ए अकरम ﷺ की उम्र का तीसरा या चौथा साल था कि:
“आप ﷺ का पहला शक़्क़े सद्र हुआ-”
मलाएका ने उंगली के इशारे से आप ﷺ का सीना मुबारक चाक किया और खून की एक फटकी निकाली और ये कहकर उसे अलग कर दिया:
ﮬﺬﺍ ﺣﻆ ﺍﻟﺸﯿﺎﻃﯿﻦ ﻣﻨﮏ۔
“आय अल्लाह के महबूब ! ये शैतान का हिस्सा है-”
(ﻣﺴﻠﻢ،ﺍﻟﺼﺤﯿﺢ، 1:147،بلتکنلمیلا ، رقم:162 )
फिर मलाएका ने उसकी जगह मशीयते यज़्दी के मुताबिक़ इल्मो इरफान और हिक्मतो बसीरत के नूरानी मोती भर दिए- क़ल्बे अनवर को आबे ज़मज़म से धोया और उसे सीना मुबारक के अंदर रख कर बंद कर दिया-
इस वाक़िए के बाद हज़रत हलीमा رضی اللہ عنہا कहती हैं कि:
“मैं ख़ौफज़दा हो गई और आप ﷺ को बिला ताखीर आप ﷺ की वालिदा के पास ले गईं-”
वो उन्हे अपने दरमियान पाकर हैरान हुईं और कहा:
“हलीमा ! तुम्हे तो इसे अपने पास रखने का बहुत शौक़ था- अचानक तुम मेरे बेटे को छोड़ने क्यूं आ गई हो?”
हज़रते हलीमा رضی اللہ عنہا कहने लगीं:
“कुछ ऐसे वाक़िआत पेश आए हैं जिनसे अंदेशा हुआ कि कहीं हमारे इस बेटे को कोई नुक़सान ना पहुंच जाए-”
आप ﷺ की वालिदा माजिदा कहने लगीं:
“हलीमा ! मुझे सच सच बताओ कि अस्ल माजरा क्या है?”
उनके इसरार पर हज़रत हलीमा رضی اللہ عنہا ने जो कुछ वाक़िआ हुआ था ज्यूं का त्यूं बयान कर दिया – आक़ा करीम ﷺ की वालिदा फरमाने लगीं:
“तुम्हे इन (ﷺ) के बारे में शैतान का अंदेशा है- ख़ुदा की क़सम ! शैतान इनके पास नहीं फटक सकता.. मेरे बेटे की शान ही निराली है..क्या तुम्हें इसका हाल बताऊं?”
मैंने कहा:
“ज़रूर-”
आप फरमाने लगीं:
“जब मैं उम्मीद से थी तो मैंने ख्वाब देखा कि मेरे अंदर से एक ऐसा नूर बरामद हुआ जिससे शाम के महल्लात रौशन हो गए- बख़ुदा इस दौरान मुझे आप ﷺ का पेट में उठाना इतना आसान और हल्का महसूस होता था कि कभी किसी औरत को ना हुआ होगा और पैदाइश के वक़्त आप अपने दोनों हाथ ज़मीन पर रखे हुए और सरे मुबारक आसमान की तरफ उठाए हुए थे-”
( ﺍِﺑﻦِ ﮨﺸﺎﻡ،ﺍﻟﺴﯿﺮۃُ ﺍﻟﻨﺒﻮﯾﮧ، 1:302 )
हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद رضی اللہ عنہما से मरवी है कि हुज़ूर ﷺ ने इरशाद फ़रमाया कि:
“हर एक के साथ शैतान लगा दिया गया है-”
सहाबा ए किराम رضی اللہ عنہم ने अज़ रहे इस्तिफ्सार अर्ज़ किया:
“या रसूलल्लाह ﷺ आप के साथ भी?”
इस पर नबी ए अकरम ﷺ ने जवाबन फ़रमाया:
ﻭ ﺇﯾﺎﯼ،ﺇﻻ ﺃﻥ ﺍﻟﻠّٰٰﻪ ﺃﻋﺎﻧﻨﯽ ﻋﻠﯿﮧ
ﻓﺄﺳﻠﻢ،ﻓﻼ ﯾﺄﻣﺮﻧﯽ ﺇﻻ ﺑﺨﯿﺮ۔
“हां ! मेरे साथ भी.. लेकिन रब्बे कायनात ने उसके मुक़ाबले में मेरी मदद व नुसरत फरमाई..पस वो मुसलमान हो गया और मुझसे खैर के सिवा कोई दूसरी बात नहीं कहता..!!”
ﺣﻮﺍﻟﮧ ﺟﺎﺕ-:
( ﻣﺴﻠﻢ، ﺍﻟﺼﺤﯿﺢ، 4:2167،2168، بلتکتفصہ مایقلا و ہنجلا و رلنلا، رقم :2814 )
( ﺍﺣﻤﺪ ﺑِﻦ ﺣﻨﺒﻞ،ﺍﻟﻤﺴﻨﺪ، 1:397، رقم :3779 )
( ﺍِﺑﻦِ ﺣﺒﺎﻥ،ﺍﻟﺼﺤﯿﺢ، 14:326، ﺭﻗﻢ: 6416 )
( ﺍِﺑﻦِ ﺧﺰﯾﻤﮧ،ﺍﻟﺼﺤﯿﺢ،330:1، ﺭﻗﻢ: 658 )
( ﺑﺰﺍﺭ،ﺍﻟﻤﺴﻨﺪ، 5:254، رقم:7222 )
(ﺍﺑﻮﯾﻌﻠﯽ،ﺍﻟﻤﺴﻨﺪ، 9:77، ﺭﻗﻢ: 5143 )
(ﻃﺒﺮﺍﻧﯽ،ﺍﻟﻤﻌﺠﻢ ﺍﻟﮑﺒﯿﺮ، 7:309، رقم: 7222 )
(ﻃﺒﺮﺍﻧﯽ،ﺍﻟﻤﻌﺠﻢ ﺍﻟﮑﺒﯿﺮ،20:421، ﺭﻗﻢ: 1017 )
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