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आ़लिम अगर अपना “आ़लिम” होना लोगों पर ज़ाहिर करे तो इस में ह़रज नही मगर ये ज़रूरी हैं कि तफ़ाख़ुर (फ़ख़्र जताने) के त़ौर पर ये इज़्हार न हो क्यूं कि तफ़ाख़ुर ह़राम है, बल्कि महज़ तह़दीसे नेमते इलाही के लिए ये ज़ाहिर हुआ और ये मक़्सद हो कि जब लोगों को ऐसा मालूम होगा तो इस से फ़ाएदा ह़ासिल करेंगे, कोई दीन की बात पूछेगा और कोई पढ़ेगा!*📕(बहारे शरीअ़त, ह़िस्सा-16, सफ़ह़ा-270)*
✒प्यारे इस्लामी भाईयों, आज कल कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो दो चार दीनी किताबें पढ़ कर खुद को बहुत बड़ा आ़लिम तसव्वुर करते हैं और ह़क़ीक़ी आ़लिम को अपने से कम तर समझते हैं, बल्कि कईं बार तो किसी मसअले में आ़लिमों से भी उलझ जाते हैं, जैसे कोई साईकिल का मिस्त्री हवाई जहाज का इन्जन खोल कर बैठ गया हो, उन्हे ग़ौर करना चाहिए!
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🔮हुज़ूर पुरनूर صَلَّى اللّٰهُ تَعَالٰى عَلَئهِ وَ اٰلِهٖ وَسَلَّم ने फ़रमाया:
🌹जिस शख़्स ने ये कहा कि मैं आ़लिम हूं, तो ऐसा शख़्स जाहिल हैं! 📘(अल मोजमुल औसत, जिल्द-5, सफ़ह़ा-139, ह़दीस-6846)*
💎शारिह़ीन इस ह़दीस मुबारक के तह़त फ़रमाते हैं: इस ह़दीसे पाक में अपने आप को आ़लिम कहने वाले को जाहिल से ताबीर करने की वजह ये हैं कि जो वाक़ेई आ़लिम होता हैं वो इस इ़ल्म के ज़रीए़ अपने नफ़्स की मारिफ़त रखता हैं उसे अपना नफ़्स इन्तिहाई ह़क़ीर व आ़जिज़ नज़र आता हैं, इसलिए वोह अपने लिए “इ़ल्म का दावा” नही करता और वोह ये समझता हैं कि ह़क़ीक़ी इ़ल्म तो अल्लाह عَزَّوَجَلَّ ही के पास हैं! जैसा कि 🔮अल्लाह عَزَّوَجَلَّ कुरआन मजीद में इर्शाद फ़रमाता हैं: *तरजमए कन्ज़ुल ईमान:*
🌹और अल्लाह जानता हैं और तुम नही जानते!
*📖(पारह-2, सूरए बक़रह, आयत नम्बर-216)*
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✒दोस्तों, जिन लोगों ने चन्द किताबें पढ़ ली हैं वो खुद को आ़लिम न समझे और आ़लिमों से न उलझे, इस में नुक़्सान ही नुक़्सान हैं!
🔮आला ह़ज़रत رَحٔمَةُاللّٰهِ تَعَالٰى عَلَئهِ फ़रमाते हैं: कभी मेरे दिल में ये ख़त़रा न गुज़रा कि मैं “आ़लिम” हूं!
👆🏼👆🏼ये ग़ौर करने की बात हैं👆🏼👆🏼
कि जब इतने बड़े मुफ़्ती, मुह़द्दिस, मुफ़स्सिर और फ़क़ीह खुद को “आ़लिम” नही समझते तो हम और आप किस गिनती में हैं ?

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