1.. औरत अपने पति का खाना बनाने के लिए मजबूर नहीं है
2.. औरत अपने पति के कपड़े या घर की साफ सफाई या घर का कोई काम करने के लिए मजबूर नहीं है
3.. औरत अपने सास ससुर या ननद देवर की कोई खिदमत करने के लिए मजबूर नहीं है
4.. पति को चाहिए कि औरत के लिए रोटी..कपड़ा व मकान का इंतज़ाम करे और रोटी व खाना भी बना बनाया हाज़िर करे
5.. निक़ाह के वक़्त लड़की को पूरा इख्तियार है कि वो चाहे इजाज़त दे या ना दे… लड़की की मरज़ी के बग़ैर कुछ नहीं हो सकता
6.. निक़ाह के बाद मुलाक़ात के वक़्त तय किया गया हक़ महर पत्नी को देना पति के लिये बेहद ज़रूरी है वो भी पति की आमदनी के मुताबिक.. और इस रक़म की मालिक हमेशा पत्नी ही रहती है
7.. मां और बाप में से… मां की अहमियत व दर्जा… बच्चों के लिए बाप से तीन गुना ज़्यादा माना गया है
8.. लड़की के पैदा होने और उसकी परवरिश करके निक़ाह कर देने वाले मां बाप को जन्नत की खुशखबरी का ऐलान है
9.. यहां तक कि औरत अपने ही बच्चे को दूध पिलाने व पालने की उज़रत अपने पति से ले सकती है
10.. बाप की कुल जायदाद में बेटी या बेटियों का हिस्सा एक तिहाई मुकर्रर है
और भी कई अधिकार हैं जो मैं इस वक़्त भूल रहा हूँ… दोस्तों से दरख्वास्त है याद दिला दें…!!
बहरहाल… कहना यह चाहता हूँ कि दुनिया के किसी धर्म…या किसी लिबरल सेक्युलर निज़ाम ने औरत को इतने अधिकार नहीं दिये जितने दीने इस्लाम ने दिये हैं
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