इस्लाम में कुफ्फार मुर्दे और मोमिन मुर्दो का फर्क (अन्तर) :
शेख नज्दी (मोहम्मद बिन अब्दुल वहाब), जो हम्फ्रे और लॉरेंस नामक यहूदी और ईसाई जासूस के संपर्क में था , वह न केवल सहाबा कराम (रिज्वान-अल्लाह तआला अलैहिम अज्मइन) के मकबरों को ध्वस्त कर दिया, बल्कि पवित्र रौज-ए-अकदस (ﷺ) को भी ध्वस्त करने का इरादा रखता था। यह उसकी हार्दिक शत्रुता का परिणाम था – यही कारण है कि उनके अनुयायियों के लेखन, नज्दिया – वहाबीया संप्रदाय के बड़े मुल्लों के किताबों में अल्लाह के प्यारों के लिए अपमान से भरे हुए हैं। जिसका जी चाहे वो नज्दी मुल्ला इस्माईल देहलवी, सिद्दीक हसन भोपाली, खुर्रम अली और रशीद अहमद गंगोही आदि के अमान्य लेखन को उठाएँ और देखें कि वे सभी प्रकार के अपमानों से भरे हैं। उनमें से एक! अम्बिया (अलैहिमुस्सलाम), शोहदा और अल्लाह के वलीयों की कब्रों का अपमान कर ध्वस्त करना इस संप्रदाय का आदर्श बन गया है।
1) – इस शीर्षक के तहत सबसे पहले ‘काफीर’ और “मोमीन” मुर्दे की हुर्मत (प्रतिष्ठा/गरिमा) के अन्तर को अहादीस की रौशनी और मुहद्दीसीन की शरह (व्याख्या) में समझें :-
1-1) – काफिर मुर्दो की कोई हुर्मत (प्रतिष्ठा / गरिमा) नहीं है :-
सहीह-अल-बुखारी, सहीहे मुस्लिम वगैरह की हदीस में है कि जिस जगह पर मस्जिदें नबवी बनाई जा रही थी वहां काफिरों की कब्रें थी नबी करीम ﷺ के आदेश पर उन काफिरों की कब्रो को खोद कर उन की लाशो और हड्डियों को निकाल कर फेंक दिया गया।
१) हदीस :हज़रत अनस (रजिअल्लाहु त-आला अन्ह्) से एक लंबी हदीस सुनाई गई है जिसमें उस जगह का जिक्र है जहां मस्जिद नब्वी बनाई जा रही थी !
हज़रत अनस (रजिअल्लाहु त-आला अन्ह्) फरमाते हैं : उस में कुछ खजुरो के पेड़, मुश्रीको की कब्रें और खंडहर थे। रसुल्लाह ﷺ ने उन खजुर के पेड़ों को काटने का आदेश दिया वह काट दिए गए और मुश्रीको की कब्रें खोद कर उन मुर्दो को निकाल कर फेंक दिया गया। *(साहिह-अल-बुखारी : 428, साहिहे मुस्लिम : 524, सुनन अबू दाऊद : 453, सुनन निसाई :702, सुनन इब्ने माजाह : 742)*
(صحیح البخاری رقم الحدیث : ٤٢٨‘ صحیح مسلم رقم الحدیث : ٥٢٤‘ سنن ابودائود رقم الحدیث : ٤٥٣‘ سنن نسائی رقم الحدیث : ٧٠٢‘ سنن ابن ماجہ رقم الحدیث : ٧٤٢ )
२) हदीस :इमाम बुखारी अलैहिर्रहमा अपनी सनद के साथ रि’वायत करते हैं :
हजरत अनस (रजिअल्लाह त-आला अन्ह्) बयान करते हैं कि नबी करीम ﷺ जब मदीना पहुंचे और मस्जिद बनाने का हुक्म दिया तो फरमाया : ऐ बनी नजार मुझसे जमीन की कीमत ले लो, तो उन्होंने कहा कि इस की कीमत हम सिर्फ अल्लाह से लेंगे। फिर मुश्रीकों की कब्रों को खोदने का हुक्म दिया तो उसको खोदा गया फिर खंडहर को हुक्म के मुताबिक समतल किया गया और पेड़ों को काटने का हुक्म दिया तो वह काट डाले गए और मस्जिद के किब्ला की तरफ क्रमबद्ध रखा गया। *(सहीह-अल-बुखारी : 1868)*
३)- हदीस :हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमरु (रजिअल्लाह त-आला अन्ह्) बयान करते हैं कि जब हम अल्लाह के रसूल ﷺ के साथ तायफ में गए तो हम एक कब्र के पास से गुज़रे उस मौके पर अल्लाह के रसूल ﷺ ने फरमाया : यह अबु रगाल की कब्र है। वह उस हरम में शरण लीए हुए था, जो उससे अजाब को दूर कर रहा था। जब वह हरम से बाहर आया, तो उसे उस अजाब ने पकड़ लिया, जो उसके कौम पर आया था। फिर उसको इस जगह दफ्न कर दिया गया। इसका संकेत यह है कि उसके साथ सोने की एक शाख ( सोने की छड़ी) भी दफन की गई थी। यदि तुम उसकी कब्र खोदोगे तो तुम को वह शाख मिल जाएगी। मुसलमान उसकी कब्र खोदने के लिए झपटे और उस शाख को कब्र से बाहर निकाल लिया। *(सुनन अबू दाऊद : 3088, अल-मसनद अल-जामी : 8750)*
(سنن ابو دائود رقم الحدیث : ٣٠٨٨‘ المسند الجامع رقم الحدیث ‘ ٨٧٥٠ )
1-2) इन अहादीस की शरह (व्याख्या) :
१) हाफ़िज़ इब्ने हज़र असक़लानी शाफ़ई अलैहिर्रहमा (मृत्यु : 852 हीजरी) इस हदीस की शरह में लिखते हैं: रहे काफीर! तो उनकी कब्रों को खोदने और उनकी अहानत (अपमान) करने में कुछ भी गलत नहीं है।(फतहुल बारी)
(فتح الباری ج ٢ ص ٨٩‘ مطبوعہ دارافکر بیروت ‘ ١٤٢٠ ھ)
२) इसके अलावा, हाफिज इब्ने हज़र अलैहिर्रहमा लिखते हैं:इस हदीस के फायदों में से एक यह है कि मुश्रीकों की कब्रों को खोद कर और उन की लाशो के अवशेष को निकालकर वहां मस्जिद बनाना और नमाज़ अदा करना जायज है।(फतहुल बारी)
(فتح الباری ج ٢ ص ٩٢‘ مطبوعہ دارالفکر بیروت ‘ ١٤٢٠ ھ)
३) अल्लामा अबू अल-हसन अली इब्ने खलफ अल-मा’रुफ इब्ने बताल अल-मलिकी अलैहिर्रहमा (मृत्यु : 449 ही0) लिखते हैं: अधिकांश फुकहा ने कहा है कि धन की तलाश में मुश्रीकों की कब्रों को खोदने की अनुमति है। अशहब ने कहा कि मृत्यु के बाद उनकी हुर्मत उनके जीवन से अधिक नहीं है। (शरह साहिह-अल -बुखारी इब्ने बताल)
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