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इस्लाम सुलह और शांति सिखाता है – क़ुरआन की शिक्षाएं शांति,तथा दया पर आधारित हैं। लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता की एक वर्ग उन गतिविधियों में लिप्त है जो न केवल क़ुरआन की शिक्षाओं के ख़िलाफ़ बल्कि उनकी वजह से धर्म की छवि भी धूमिल हो रही है। ऐसे लोग क़ुरआन की शिक्षाओं के बहुत दूर है। इसका एक कारण क़ुरआन से दूरी। ऐसे लोग ये जानते ही नहीं की क़ुरआन की असल शिक्षाएं क्या है।

बहुत दुखद बात है ऐसे चंद लोगो की वजह से इस्लाम और उसके सच्चे अनुयायियों को उग्रवाद से जोड़ दिया जाता है। पवित्र क़ुरआन की रोशनी में इस्लाम के संदेश को समझना और उसकी सराहना करना महत्वपूर्ण है।

यह कहना कोई अतिशयोक्ति (Exaggeration) नहीं है कि इस्लाम और हिंसा एक दूसरे के विरोधाभासी हैं। इस्लाम और हिंसा का आपस में कोई मेल नहीं।

क़ुरआन “… शांति के तरीके …” (5:16) को अपनाने की बात करता। साथ ही क़ुरआन सुलह को सबसे अच्छी नीति (4:128) के रूप में वर्णित करता है, और कहता है कि ईश्वर शांति भंग (गड़बड़ी/फसाद) करने वालों से प्रेम नहीं करता (2:205)।

क़ुरआन की पहली आयत शांति, कृपा तथा दया की भावना पर आधारित है, यह कहती है: “ईश्वर के नाम से जो बड़ा कृपालु और अत्यन्त दयावान हैं।”

यह आयत क़ुरआन में 114 बार दोहराई गई है। यह दर्शाता है कि इस्लाम में दया और करुणा जैसे मूल्यों का बहुत अधिक महत्व है। क़ुरआन के अनुसार, ईश्वर का एक नाम अस-सलाम है, जिसका अर्थ है शांति।

इसके अलावा, क़ुरआन में कहा गया है कि पैगंबर मुहम्मद ﷺ को सारे संसार के लिए बस एक सर्वथा दयालुता बनाकर भेजा गया है (21: 107)।

क़ुरआन पूर्ण रूप से शांति और दया पर आधारित हैं। क़ुरआन के अनुसार आदर्श समाज, शांति का घर है (10:25)।

क़ुरआन ब्रह्मांड को एक मॉडल के रूप में प्रस्तुत करता है, जो सद्भाव और शांति की विशेषता पर आधारित है जब भगवान ने स्वर्ग और पृथ्वी का निर्माण किया, तो उसने चीजों को आदेश दिया कि प्रत्येक भाग किसी अन्य के साथ टकराव के बिना शांति से अपना कार्य कर सकता है। कुरान हमें बताती है कि “न सूर्य ही से हो सकता है कि चाँद को जा पकड़े और न रात दिन से आगे बढ़ सकती है। सब एक-एक कक्षा में तैर रहे हैं (36:40)।
अरबों वर्षों से, इसलिए, संपूर्ण ब्रह्मांड अपने ईश्वरीय योजना के साथ पूर्ण सामंजस्य में अपने कार्य को पूरा कर रहा है।

इस्लाम सुलह और शांति सिखाता है। इस्लाम के अनुसार, शांति केवल युद्ध का अभाव (absence of war) नहीं है। शांति सभी प्रकार के अवसरों के द्वार खोलती है जो किसी भी स्थिति में मौजूद होते हैं। केवल एक शांतिपूर्ण स्थिति में ही सकारात्मक विकास नियोजित किया जा सकता हैं। क़ुरआन कहता है: “… और सुलह और मेल-मिलाप सबसे अच्छा है …” (4: 128)। इसी तरह, पैगंबर मुहम्मद ﷺ ने बताया है: “ईश्वर नरमी (Rifq) को अनुदान देता है जो वह हिंसा को नहीं देता (‘अनफ)।” (अबू दाऊद)

As-salam-o-alaikum my selfshaheel Khan from india , Kolkatamiss Aafreen invite me to write in islamic blog i am very thankful to her. i am try to my best share with you about islam.
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