एक आलिमे दीन से एक नौजवान शख्स ने शिकायत की कि:
“मेरे वालिदैन अधेड़ उम्र हैं और अक्सरो बेशतर वो मुझसे खफा रहते हैं हालांकि मैं उनको हर वो चीज़ मुहय्या करता हूं जिसका वो मुतालबा करते हैं-”
आलिमे दीन ने नौजवान शख्स को सर से पैरों तक देखा और फरमाने लगे कि:
“बेटा! यही तो उनकी नाराज़गी का सबब है कि जो वो मांगते हैं तुम उनको लाकर देते हो..”
नौजवान कहने लगा कि:
“मैं आपकी बात नहीं समझ पाया थोड़ी सी वज़ाहत कर दें..”
आलिमे दीन फरमाने लगे:
“बेटा! क्या कभी तुमने ग़ौर किया है कि…जब तुम दुनियां में नहीं आए थे तो तुम्हारे आने से पहले ही तुम्हारे वालिदैन ने तुम्हारे लिए हर चीज़ तैयार कर रखी थी-
तुम्हारे लिए कपड़े….
तुम्हारी ख़ुराक का इंतज़ाम….
तुम्हारी हिफाज़त का इंतज़ाम….
तुम्हे सर्दी ना लगे अगर गर्मी है तो गर्मी ना लगे…
तुम्हारे आराम का बंदोबस्त…
तुम्हारी क़ज़ा ए हाजत तक का इंतज़ाम तुम्हारे वालिदैन ने तुम्हारे दुनियां में आने से पहले ही कर रखा था….”
……… फिर आगे चलो……
“क्या तुम्हारे वालिदैन ने कभी तुम से पूछा था कि बेटा तुम को स्कूल में दाखिल करवाएं या नहीं…
इसी तरह कॉलेज या यूनिवर्सिटी में दाखिले के लिए तुम से कभी पूछा हो…बल्कि तुम्हारे बेहतर मुस्तक़बिल के लिए तुम से पहले ही स्कूल और कॉलेज में दाखिले का बंदोबस्त कर दिया होगा…
इसी तरह तुम्हारी पहली नौकरी के लिए तुम्हारे स्कूल की ट्रांसपोर्ट के लिए तुम्हारे यूनिफॉर्म के लिए तुम्हारे वालिद साहब ने कभी तुम से नहीं पूछा होगा बल्कि अपनी इस्तिताअत के मुताबिक़ बेहतर से बेहतर चीज़ तुम्हारे मांगने से पहले ही तुम्हें लाकर दी होगी…
तुम्हे तो शायद इसका भी एहसास ना हो कि जब तुम ने जवानी में क़दम रखा था तो तुम्हारे वालिदैन ने तुम्हारे लिए एक अच्छी लड़की भी ढूंढनी शुरू कर दी होगी जो अच्छी तरह तुम्हारी खिदमत कर सके और तुम्हारा ख्याल रख सके..
लड़की तलाश करते हुए भी उनकी अव्वलीन तरजीह तुम्हारी खिदमत ही होगी बल्कि उनके तो ज़हन में कभी ये ख्याल भी नहीं आया होगा कि हम ऐसी दुल्हन बेटे के लिए लाएंगे जो हमारी खिदमत भी करे और हमारे बेटे की भी….
तुम्हारे लिए कपड़े.. तुम्हारी पहली सायकिल..तुम्हारा पहला मोटर साइकिल…तुम्हारा पहला स्कूल… तुम्हारे खिलौने.. तुम्हारी बोलचाल.. तुम्हारी तरबियत..तुम्हारा रहन सहन चाल चलन रंग ढंग गुफ्तगूं का अंदाज़.. यहां तक कि तुम्हारे मुंह से निकलने वाला पहला लफ्ज़ तक तुमको तुम्हारे मां बाप ने मुफ्त में सिखाया है और तुम्हारे मुतालबे के बगैर सिखाया है…
और आज तुम कहते हो कि जो कुछ वो मुझसे मांगते हैं मैं उनको लाकर देता हूं उसके बावजूद वो खफा रहते हैं..”
जाओ वालिदैन को बिन मांगे देना शुरू करो……….
उनकी ज़रूरियत का ख्याल अपने बच्चों की ज़रूरियत की तरह करना शुरू करो…
अगर उनकी माली मदद नहीं कर सकते तो उनको अपना क़ीमती वक़्त दो उनकी खिदमत करो- घर की ज़िम्मेदारियां खुद लो- जैसे अपने बच्चों के बाप बने हो वैसे ही अपने वालिदैन की नेक औलाद बनो… और उनको बिन मांगे देना शुरू करो…
अपने आपको इस क़ाबिल बना लो कि उनको तुमसे मांगने की या मुतालबे की ज़रूरत ही ना पड़े…या उनको कभी तुम्हारी कमी महसूस ही ना हो कम से कम इतना वक़्त तो उनको अता कर दो… उनके मसाएल पूछो…
अगर उनकी माली मदद नहीं कर सकते तो उनकी खिदमत करो..
क्या कभी मां या बाप के पांव की फटी हुई एड़ियां देखी हैं तुमने??
क्या कभी उन फटी हुई एड़ियों में कोई क्रीम या तेल लगाया है जैसे वो तुमको बचपन में लगाते थे??
क्या कभी मां या बाप के सर में तेल लगाया हो क्यूंकि जब तुम बच्चे थे तो वो बाक़ायदा तुम्हारे सर में तेल लगा कर कंधी भी करते थे.. तुम्हारी मां तुम्हारे बाल संवारती थी कभी मां के बाल संवार कर तो देखो..
क्या कभी बाप के पांव दबाए हैं हालांकि तुम्हारे बाप ने तुम्हे बहुत दफा दबाया होगा..
क्या कभी मां या बाप के लिए हाथ में पानी या तौलिया लेकर खड़े हुए हो.. जैसे वो तुम्हारा मुंह बचपन में नीम गर्म पानी से धोया करते हैं…
कुछ करो तो सही………..
………..उनको बगैर मांगे लाकर दो
………..उनकी ज़िम्मेदारियां उठा कर देखो
………..उनको वक़्त देकर देखो
……….उनकी खिदमत करके देखो
………..उनको अपने साथ रखो हमेशा
……….उनको अपने आप पर बोझ मत समझो नेमत समझ कर देखो
………..जिस तरह उन्होंने तुम को बोझ नहीं समझा बगैर किसी मुआवज़े के तुम्हारी दिन रात परवरिश करके मुआशरे का एक कामयाब इंसान बनाया है- कम से कम उनकी वही खिदमात का सिला समझते हुए उनसे हुस्ने सुलूक का रवय्या इख्तियार करो- फिर देखना वो भी खुश और अल्लाह भी खुश…
आलिमे दीन की ये बातें सुनकर नौजवान अश्कबार हो गया और बाक़ी हाज़रीन की आंखें भी नम हो गईं..
वाक़ई ये हक़ीक़त है कि ऐसे नसीहत आमोज़ बातें दुनियां की किसी भी यूनिवर्सिटी में नहीं मिल सकती सिर्फ और सिर्फ दीनी ओलमा ही ऐसी तरबियत कर सकते हैं…
अल्लाह ऐसे ओलमा का साया हमेशा क़ायम रखे…
और हर इंसान को ये तौफीक़ और खुशनसीबी अता करे कि वो अपने वालिदैन की डिमांड से पहले उनकी ज़रूरियात को जानते हुए पाया ए तकमील तक पहुंचा दे..!!
آمین یا رب العالمین ۔۔۔۔۔
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