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एक काफ़िर है उत्बा बिन अबी वक़्क़ास उसने एक
जंग में मेरे नबी सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम को एक
पत्थर ज़ोर से खींच कर मारा, पत्थर
सहाबियों (रदीयल्लाहु अन्हु) क के घेरे
को चीरता हुआ मेरे
नबी सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम के चेहरे मुबारक
पर लगा और वो पीछे की तरफ गिर गए उनके दांत
भी शहीद हुए चेहरा भी खून ओ खून हो गया,
बेहोश हो कर गिर गए, सहाबा ने समझा के आप
शहीद हो गये, सबने रोना शुरू कर दिया,
थोड़ी देर बाद आपको होश
आया तो सहाबा ने अर्ज़ किया के
“या रसूल्लल्लाह,सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम
अब तो इनके लिए बद्दुआ फरमा दें”
अब तो हक़ था की बद्दुआ कर देते मगर मेरे
नबी सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम ने दोनों हाथ
उठा कर कहा “अल्लाहुम्मग्फिरले
क़ौमी फ़इन्ना हुम् ल
यादहूँ”
“अल्लाह मेरी क़ौम को माफ़ कर दें इन्हे
मेरा पता नहीं है”.
तो मेरे भाइयों जिसने काफिरों तक के लिए
दुवा मांगी, तुम एक दुसरे को सलाम करना तक
छोड़ चुके हो, एक दुसरे के पीछे नमाज़ें पढ़ना छोड़
चुके हो, एक दुसरे के ऊपर कुफ्र के फतवे लगाते हो.
मुझे बताओ तुम मेरे नबी के साथ क्या कर रहे हो?
वो तुम्हे फ़िरक़ों में बाँट कर गए थे या उम्मत
बना कर गए थे?
क्यों इस नादान खेल में अपनी ज़िन्दगी बर्बाद
करते हो?
क्यों नहीं मुसलमान बन कर रहते हो?
इस उम्मत में इख़्तिलाफ़ शुरू से है और हमेशा रहेगा.
यहाँ तक न जाओ के एक दुसरे पर कुफ्र के फतवे?
जन्नत में कौन जायेगा?
सुन्निओं ने कहा वहाबी काफ़िर, वहाबिओं ने
कहा बरेलवी काफ़िर, बरेलविओं ने
कहा देओबंदि काफ़िर, सुन्निओं ने
कहा शिया काफ़िर, शिया ने
कहा सुन्नी काफ़िर.
जन्नत में कौन जायेगा?
कुछ तो भाइयों मेरे नबी की मेहनत की क़द्र
करो.
मेरे नबी सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम
तो गैरों को अपना बनाने आए थे हमने
तो अपनों को गैर बना दिया.
क्या इसी का नाम इस्लाम है?
क्या इसी का नाम इश्क़े रसूल
सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम है?
इसी को दीन कहते हैं?
एक दुसरे की मस्जिदों में नहीं जाते हो, एक दूसरे
के पीछे नमाज़ें नहीं पढ़ते,जन्नत के ठेकेदार बने बैठे
हो.
मेरे नबी तो अब्दुल्लाह बिन उबइ
का जनाज़ा पढ़ाने
खड़े हो गए थे, जिसका कुफ्र अबु जहल से बड़ा है.
अबु जहल ऊपर की दोज़ख में है अब्दुलाह बिन
उबई सबसे निचे की दोज़ख में है.
उसके बेटे आए कहा ” या रसूल्लाह मेरा बाप मर
गया है आप अपना कुरता दे देंगे मैं उसको कफ़न दे दूँ ?

आपने कहा “हाँ ले जाओ”.
कहते भाग जाओ बदबख्त, मगर कुर्ता उतार के
दिया.
कहा या रसूल्लाह आप जनाज़ा पढ़ा देंगे ?
आपने कहा “हाँ पढ़ा दूंगा” …
बाकि मुनाफिकों का मुनाफ़िक़
होना किसी को पता नहीं था सिवाए
अल्लाह के नबी के मगर अब्दुल्लाह बिन उबइ
का मुनाफ़िक़ होना तो सभी को पता था .
आप सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम जनाज़े के लिए
खड़े हुए तो उमर (रदीयल्लाहु अन्हु) आ गए
कहा “या रसूल्लुलाह ये कौन है आप जानते हैं न ?”
अपने कहा “पता है कौन है” उन्होंने
पूछा इसका जनाज़ा क्यों पढ़ा रहे हैं ? आप बोले
के “शायद अल्लाह माफ़ कर दे, उमर तू पीछे हट
जा, मेरे अल्लाह ने कहा है की तू इनके लिए
दुवा कर
या न कर मैं इनको माफ़ नहीं करूँगा फिर भी मैं
कर रहा हूँ के शायद अल्लाह माफ़ कर दे इसे”.
फिर फरमाया के अल्लाह ने कहा के तू ७०
दफा भी इसके लिए दुवा कर तो मैं माफ़
नहीं करूँगा.
मेरे नबी ने कहा के अगर अल्लाह कहता की तू ७०
दफा इसके लिए दुवा कर तो मैं माफ़ कर
दूंगा तो मैं ७० दफ़ा इसका जनाज़ा पढ़ा देता.
मुझे तुम लोग बताओ, तुम कहा से ये दीन लेकर
आए हो?
इसमें तुम फ़िरक़ों में बट गए हो?
नफरतों की आग तुमने लगा दी है.
मैं तुम्हे अल्लाह और उसके रसूल
सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम
का वास्ता देता हूँ . उम्मत
बन के रहो. अपने अपने अक़ीदे में पक्के रहो.
दूसरों के लिए गुंजाइश रखो.
मेरे नबी ने पूछा दीन का सबसे मज़बूत अमल
क्या है?
सहाबा ने कहा ” नमाज़”
आपने कहा “नहीं”
सहाबा ने कहा “रोज़ा”
आपने कहा “नहीं”
सहाबा ने कहा “ज़कात”
आपने कहा “नहीं”
तो सबने कहा या रसूल्लाह
सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम फिर आप फरमाएं
तो आपने कहा
“दीन का सबसे मज़बूत अमल मोहब्बत है,
मोहब्बत है, मोहब्बत है”

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