*〽️मुल्के समरकन्द* में एक बेवा सय्यदज़ादी रहती थी उसके चन्द बच्चे भी थे, एक दिन वो अपने भूके बच्चों को लेकर एक रईस आदमी के पास पहुंची और कहा मैं सय्यदज़ादी हूँ मेरे बच्चे भूके हैं उन्हें खाना खिलाओ।
वो रईस आदमी जो दौलत के नशे में मख़्मूर और बराए नाम मुसलमान था कहने लगा तुम अगर वाक़ई सय्यदज़ादी हो तो कोई दलील पेश करो, सय्यदज़ादी बोली मैं एक गरीब बेवा हूँ ज़बान पर एतबार करो के सय्यदज़ादी हूँ और दलील क्या पेश करूँ? वो बोला मैं ज़बानी जमा ख़र्च का मोअतक़िद नहीं अगर कोई दलील है तो पेश करो वरना जाओ।
वो सय्यदज़ादी अपने बच्चों को लेकर वापस चली आई और एक मजूसी रईस के पास पहुंची और अपना किस्सा बयान किया वो मजूसी बोला, मोहत्रमा! अगरचे मैं मुसलमान नहीं हूँ मगर तुम्हारी सियादत की तअज़ीम व क़द्र करता हूँ आओ और मेरे यहाँ ही कयाम फ़रमाओ मैं तुम्हारी रोटी और कपड़े का ज़ामिन हूँ, ये कहा और उसे अपने यहाँ ठहरा कर उसे और उसके बच्चों को खाना खिलाया और उनकी बड़ी ख़िदमत की।
रात हुई तो वो बराए नाम मुसलमन रईस सोया तो उसने ख़्वाब में हुज़ूर सरवरे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम को देखा जो एक बहुत बड़े नूरानी महल के पास तशरीफ़ फ़रमा थे, इस रईस ने पूछा या रसूलल्लाहﷺ! ये नूरानी महल किस लिए है? हुज़ूरﷺ ने फ़रमाया, मुसलमान के लिए, वो बोला तो हुज़ूरﷺ मैं भी मुसलमान हूँ ये मुझे अता फरमा दीजिए, हुज़ूरﷺ ने फरमाया अगर तू मुसलमान है तो अपने इस्लाम की कोई दलील पेश कर! वो रईस ये सुनकर बड़ा घबराया, हज़ूरﷺ ने फिर उसे फ़रमाया मेरी बेटी तुम्हारे पास आए तो उससे सियादत की दलील तलब करे और खुद बग़ैर दलील पेश किए इस महल में चला जाए ना मुमकिन है, ये सुन कर उसकी आँख खुल गई और बड़ा रोया फिर उस सय्यदज़ादी की तलाश में निकला तो उसे पता चला के वो फलाँ मजूसी के घर कयाम पज़ीर है।
चुनाँचे उस मजूसी के पास पहुँचा और कहा के हज़ार रूपये ले लो और वो सय्यदज़ादी मेरे सपुर्द कर दो, मजूसी बोला क्या मैं वो नूरानी महल एक हजार रूपये पर बेच दूं? ना मुमकिन है, सुन लो! हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम जो तुम्हें ख़्वाब में मिलकर उस महल से दूर कर गए हैं वो मुझे भी ख़्वाब में मिलकर और कलमा पढ़ा कर उस महल में दाख़िल फरमा गए। अब मैं भी बीवी बच्चों समेत मुसलमान हूँ और मझे हुज़ूरﷺ बशारत दे गए हैं के तू अहलो अयाल समेत जन्नती है।
_*(नुजहत-उल-मजालिस, सफ़ा-194, जिल्द-2)*_
*🌹सबक़ ~*
=========
दलील तलब करने वाला बराए नाम मुसलमान भी जन्नत से महरूम रह गया और निस्बते रसूल का लिहाज़ करके बग़ैर दलील के भी अदब करने वाला एक मजूसी भी दौलते ईमान से मुशर्रफ़ होकर जन्नत पा गया। मालूम हुआ के अदब व तअज़ीम रसूल के बाब में बात-बात पर दलील तलब करने वाले बराए नाम मुसलमान बदबख़्त और महरूम रह जाने वाले हैं।
_*📕»» सच्ची हिकायात ⟨हिस्सा अव्वल⟩, पेज: 66-67, हिकायत नंबर- 51*_
- Shab E Barat Kya Hai - 5th March 2022
- Health Tips Hindi - 4th January 2021
- Ramadan Hadith - 4th January 2021