*क्या आप जानते हो?…*
हर जाएज़ काम शुरू करनेसे पहले “बिस्मिल्लाह हिर्रहमा निर्रहीम”* पढ़लेना हर मुसलमानकी सच्ची पहचान है
*नबी – ऐ – करीम { सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम } का इरशाद है के बगैर *”बिस्मिल्लाह हिर्रमा निर्रहीम”* पढ़े
हर काम अधूरा और बे-बरकती है
*रोज़मर्रा के काम शुरू करनेसे पहले* हमें “बिस्मिल्लाह हिर्रमा निर्रहीम” पढ़नेकी आदत बना लेनी चाहिए.. ताके हमारे लिए अजरो-सवाब और बरकत का जरिया बने
*हमारे प्यारे आका रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया है..*
🏻➱ घरमे दाखिल होते वकत
🏻➱ सवारी करते वकत
🏻➱ सवारीसे उतारते वकत
🏻➱ ठोकर लग जाए तब
🏻➱ बैतूल खलामे जाने से पहले ( बैतूल खलामे न पढ़े)
🏻➱ बैतूल खलासे बाहिर निकलनेके बाद
🏻➱ खाना खाने की शुरुआत करने से पहले
🏻➱ पानी या और कोई पीनेके चीज़ पीनेसे पहले
🏻➱ कपडे बदलते वकत
🏻➱ बूट-चम्पल पहनते वकत
🏻➱ किताब पढ़ते वकत
🏻➱ कोई लिखाईके वकत
🏻➱ रोज़ी-रोज़गार शुरू करते वकत
🏻➱ नया काम शुरू करते वकत
🏻➱ मतलब के हर कामके आगाज़ से पहले
*“बिस्मिल्लाह हिर्रहमा निर्रहीम”* पढ़नेकी आदत बना लेना नेकी कमाने का ज़रिया है और सुन्नत भी है..
*इसी तरह औरतों को चाहिए के…*
🏻➱ खाना बनाते वकत
🏻➱ अनाज साफ़ करते वकत
🏻➱ सिलाई करते वकत
🏻➱ बच्चोके कपडे बदलते वकत
ये आदत खुद बनाले और अपनी औलाद को भी ये आदत डाले नेक कामकी शुरुआत मे *“बिस्मिल्लाह हिर्रमा निर्रहीम”*पढ़ने की आदत एक ऐसी नेकी है जो बंदे के अामाल नामा मे मुसलसल नेकिया बढ़ाती है
*”अल्लाह अज़वजल”* हमारे कामो मे बरकत अता फ़रमाता है और मुश्किल काम भी आशान फरमा देता है
रोज़ी-रोज़गार मे बरकत होती है *“बिस्मिल्लाह हिर्रमा निर्रहीम”* पढ़नेमे कोई वकत जाया नहीं होता
हमारे ज़यादा-तर काम दुनियावी होनेके बावजूद भी *“बिस्मिल्लाह हिर्रमा निर्रहीम”*पढ़ले ने की बरकत से इबादत -बंदगी मे सुमार कर लिए जाते है
*आज की अच्छी बात*
दीगर इन्सान अपने रोज़ मर्राहके काम पूरे करते है और एक मुस्लिम भी अपने काम पुरे करता है मगर इन दोनो मे ज़मीन आसमान का फर्क है.. एक शख्स ग़फ़लत मे
अपने काम करता है जब के एक मोमिन
*“बिस्मिल्लाह हिर्रमा निर्रहीम”* पढ़कर अपने काम का
आगाज़ करके यह साबित कर देता है के *”अल्लाह अज़वजल”* की तौफीक के बगैर कोई काम पूरा करना ना-मुमकिन है
*“बिस्मिल्लाह हिर्रमा निर्रहीम”* का पढ़ना बंदेका
*”अल्लाह तआला”* पर ईमान और यकीन होने की निशानी है हमारे काम दुनियावी होनेके बावजूद दीने इस्लामका एक हिस्सा गिना जाता है और *”अल्लाह तआला”* के करीब इबादत मे सुमार है
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