आलाहज़रत अज़ीमुल बरकत मुजद्दिदे दीनो मिल्लत इमाम इश्को मुहब्बत सय्यदना इमाम अहमद रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैहि जिनकी शाने अक़्दस में फरमाते हैं
उस बुतूले जिगर पार-ए मुस्तफा
मजला आरा-ए इफ्फत पे लाखों सलाम
जिसका आंचल ना देखा मा ओ महर ने
उस रिदाए नज़ाहत पे लाखों सलाम
सय्यदा ज़ाहिरा तय्यबा ताहिरा
जाने अहमद की राहत पे लाखों सलाम
नाम —– हज़रत फातिमा ज़ुहरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा
लक़ब —- ज़ुहरा व बुतूल
वालिद — रसूल अल्लाह सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम
वालिदा — हज़रत खदीजा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा
विलादत – ऐलाने नुबुव्वत से 1 साल क़ब्ल
शौहर — मौला अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
निकाह — 17 रजब,पीर,2 हिजरी
औलाद — (6) हज़रत इमाम हसन,हज़रत इमाम हुसैन,हज़रत मोहसिन,हज़रत ज़ैनब,हज़रत कुलसुम,हज़रत रुक़य्या रिज़वानुल्लाहि तआला अलैहिम अजमईन
विसाल — 3 रमज़ान,मंगल,11 हिजरी
आप रज़ियल्लाहु तआला अन्हा के फज़ाइलो मनाक़िब बेशुमार हैं तहरीर में नहीं आ सकते मगर हुसूले बरकत के लिए चन्द का ज़िक्र करता हूँ
आप नबीये पाक की सबसे छोटी साहबज़ादी हैं,नबीये पाक सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम को आपसे बेहद्द मुहब्बत थी,आपके आने पर नबी करीम सल्लललाहु तआला अलैहि वसल्लम फौरन खड़े हो जाते आपकी पेशानी चूमकर अपनी मसनद पर बिठाते
उम्मुल मोमेनीन सय्यदना आईशा सिद्दीक़ा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा फरमाती हैं कि मैंने उठने बैठने चाल ढाल और बर्ताव में फातिमा से बढ़कर हुज़ूर के मुशाबह किसी को नहीं देखा
मशहूर है कि आप की रूह क़ब्ज़ करने के लिए हज़रत इस्राईल अलैहिस्सलाम नहीं आये बल्कि खुद रब्बे ज़ुलजलाल के हुक्म से आपकी रूह क़ब्ज़ हुई
आप रज़ियल्लाहु तआला अन्हा कभी नमाज़ के क़याम में ही होतीं और रात गुज़र जाती कभी रुकू में और कभी एक ही सजदे में सारी रात निकल जाती आप रज़ियल्लाहु तआला अन्हा फरमाती हैं ऐ मौला तूने कैसे छोटी छोटी रातें बनायीं है कि फातिमा दिल खोलकर इबादत भी नहीं कर पाती
आप एक ही वक़्त में हाथों से आता गूंधतीं ज़बान से क़ुरआन पढ़तीं दिल में उसकी तफसीर करतीं पैरों से हसनैन का झूला झूलातीं और आंखों से खुदा की याद में रोतीं
📕 मदारेजुन नुबुव्वत,जिल्द 2,सफह 127-787-788
📕 सच्ची हिक़ायत,सफह 325
📕 ज़रक़ानी,जिल्द 3,सफह 200
📕 शरह सलामे रज़ा,सफह 4
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