** जहन्नम क्या है.? **
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** क़िस्सा एक बुज़ुर्ग का **
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एक मशहुर बुज़ुर्ग थें अपने सादगी के आलम में पुराने कपडे डाल कर एक तंदुर की दुकान पर गए और कहा मुझे एक रोटी दे दो।
दुकानदार ने उनका हुलिया देखा तो रोटी देनेे से इंकार कर दिया और कहा यहां से चले जाओ, बुज़ुर्ग चुप चाप चल दिये।
उसी दुकान पर खडा एक ऐसा शख़्स भी था जो उस बुज़ुर्ग को जानता था उसने दुकानदार से पुछा क्या तुम इन्हें जानते थे।
दुकानदार बोला नही तो..
वो शख़्स कहने लगा ये तो फलां बुज़र्ग थें जो बडे नेक और ईबादतगुज़ार हैं।
दुकानदार ने जैसे ही बुज़ुर्ग के बारे में सुना कहने लगा मैं तो इन्हें बहुत चाहता हूं। दुकानदार फौरन उसे बुज़ुर्ग के पिछे भागा और उनसे माफी मांगने लगा और कहा मुझे अपना शागिर्द बना लें मैं आपका शागिर्द बनना चाहता हूं। लेकिन बुज़ुर्ग ने ईनकार कर दिया।
दुकानदार ज़िद करने लगा और कहा अगर आपने मुझे अपना शागिर्द बना लिया तो आज मैं इस पुरी आबादी को खाना खिलाऊंगा बुजुर्ग ने क़बुल कर लिया कहा ठीक है।
फिर पुरी आबादी को खाना खिलाने के बाद वो दुकानदार बुज़ुर्ग के पास आया और सवाल किया।
ऐ मेरे सरदार ये बताएं के जहन्नम क्या है.??
बुज़ुर्ग कहने लगे जहन्नम ये है के तुने अल्लाह की ख़ुशी के लिये उसके बन्दे को एक रोटी न दी लेकिन उस अल्लाह के बन्दे को ख़ुश करने के लिये पुरे शहर को खाना खिलाया..
इस लिये किसी की ईज़्ज़त करें तो दिल से करें।
दिखावे के लिये नही।
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