(1) यानी क़यामत का दिन.
(2) और अल्लाह के अज़ाब का डर दिलाते.
(3) *क़ाफ़िर, जिन्न और इन्सान इक़रार करेंगे कि रसूल उनके पास आए और उन्होंने ज़बानी संदेश पहुंचाए और उस दिन के पेश आने वाले हालात का ख़ौफ़ दिलाया, लेकिन क़ाफ़िरों ने उनको झुटलाया और उनपर ईमान न लाए, क़ाफ़िरों का यह इक़रार उस वक़्त होगा जबकि उनके शरीर के सारे अंग उनके शिर्क और कुफ़्र की गवाही देंगे* .
(4) *क़यामत का दिन बहुत लम्बा होगा और इसमें हालात बहुत मुख़्तलिफ़ पेश आएंगे. जब काफ़िर ईमान वालों के इनआम और इज़्ज़त व सम्मान को देखेंगे तो अपने कुफ़्र और शिर्क से इन्क़ारी हो जाएंगे और इस ख़्याल से कि शायद इन्क़ारी हो जाने से कुछ काम बने, यह कहेंगे “वल्लाहे सब्बिना मा कुन्न मुश्रिकीन” यानी ख़ुदा की क़सम हम मुश्रिक न थे. उस वक़्त उनके मुंहो पर मोहरे लगा दी जाएंगी और उनके शरीर के अंग उनके कुफ़्र और शिर्क की गवाही देंगे. इसी के बारे में इस आयत में इरशाद फ़रमाया “व शहिदू अला अन्फ़ुसिहिम अन्नहुम कानू काफ़िरीन” (और ख़ुद अपनी जानों पर गवाही देंगे कि वो काफ़िर थे)*
(5) यानी रसूलों का भेजा जाना.
(6) उनकी पाप करने की प्रवृत्ति और
(7) बल्कि रसूल भेजे जाते हैं, वो उन्हें हिदायतें फ़रमाते हैं, तर्क स्थापित करते हैं इसपर भी वो सरकशी करते हैं, तब हलाक किये जाते हैं.
(8) चाहे वह नेक हो या बुरे. नेकी और बदी के दर्जें हैं. उन्हीं के मुताबिक सवाब और अज़ाब होगा.(9) यानी हलाक कर दे.(10) और उनका उत्तराधिकारी बनाया.
(11) वह चीज़ चाहे क़यामत हो या मरने के बाद या हिसाब या सवाब और अज़ाब.
(12) जिहालत के ज़माने में मुश्रिकों का तरीक़ा था कि वो अपनी खेतियों और दरख़्तों के फलों और चौपायों और तमाम मालों में से एक हिस्सा तो अल्लाह के लिये मुक़र्रर करते थे. उसको तो मेहमानों और दरिद्रों पर ख़र्च कर देते थे. और जो बुतों के लिये मुक़र्रर करते थे, वह ख़ास उनपर और उनके सेवकों पर ख़र्च करते. जो हिस्सा अल्लाह के लिये मुक़र्रर करते, अगर उसमें से कुछ बुतों वाले हिस्से में मिल जाता तो उसे छोड़ देते. और अगर बुतों वाले हिस्से में से कुछ इसमें मिलता तो उसको निकाल कर फिर बुतों ही के हिस्से में शामिल कर देते. इस आयत में उनकी इस जिहालत और बदअक़ली का बयान फ़रमा कर उनपर तंबीह फ़रमाई गई.
(13) यानी बुतों का.
(14) और अत्यंत दर्जे की अज्ञानता में गिरफ़्तार हैं. अपने पैदा करने वाले, नअमतें देने वाले रब की इज़्ज़त और जलाल की उन्हें ज़रा भी पहचान नहीं. और उनकी मुर्खता इस हद तक पहुंच गई कि उन्होंने बेजान बुतों, पत्थर की तस्वीरों को जगत के सारे काम बनाने वाले के बराबर कर दिया और जैसा उसके लिये हिस्सा मुक़र्रर किया, वैसा ही बुतों के लिये भी किया. बेशक यह बहुत ही बुरा काम और अत्यन्त गुमराही है. इसके बाद उनकी अज्ञानता और गुमराही की एक और हालत बयान की जाती है.
(15) यहाँ शरीकों से मुराद वो शैतान हैं जिनकी फ़रमाँबरदारी के शौक़ में मुश्रिक अल्लाह तआला की नाफ़रमानी गवारा करते थे और ऐसे बुरे काम और जिहालत की बातें करते थे जिनको सही बुद्धि कभी गवारा न कर सके और जिनके बुरे होने में मामूली समझ के आदमी को भी हिचकिचाहट न हो. बुत परस्ती की शामत से वो भ्रष्ट बुद्धि में गिरफ़्तार हुए कि जानवरों से बदतर हो गए और औलाद, जिसके साथ हर जानवर को क़ुदरती प्यार होता है, शैतान के अनुकरण में उसका बे गुनाह ख़ून करना उन्होंने गवारा किया और इसको अच्छा समझने लगे.
(16) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि ये लोग पहले हज़रत इस्माईल के दीन पर थे, शैतानों ने उनको बहका कर इन गुमराहियों में डाला ताकि उन्हें हज़रत इस्माईल के रास्ते से फेर दें
(17) मुश्रिक लोग अपने कुछ मवेशियों और खेतियों को अपने झूटे मअबूदों के साथ नामज़द करके कि
(18) वर्जित यानी इसके इस्तेमाल पर प्रतिबन्ध है.
(19) यानी बुतों की सेवा करने वाले वग़ैरह.
(20) जिनको वहीरा, सायबा, हामी कहते हैं.
(21) बल्कि उन बुतों के नाम पर ज़िब्ह करते हैं और इन तमाम कामों की निस्बत ख़्याल करते हैं कि उन्हें अल्लाह ने इसका हुक्म दिया है.
(22) सिर्फ़ उन्हीं के लिये हलाल है, अगर ज़िन्दा पैदा हो.
(23) मर्द और औरत.
(24) यह आयत जिहालत के दौर के उन लोगों के बारे में नाज़िल हुई जो अपनी लड़कियों को निहायत संगदिली और बेरहमी के साथ ज़िन्दा ज़मीन में गाड़ दिया करते थे. रबीआ और भुदिर वग़ैरह क़बीलों में इसका बहुत रिवाज था और जिहालत के ज़माने के कुछ लोग लड़को को भी क़त्ल करते थे. और बेरहमी का यह आलम था कि कुत्तों का पालन पोषण करते और औलाद को क़त्ल करते थे. उनकी निस्बत यह इरशाद हुआ कि तबाह हुए. इसमें शक नहीं कि औलाद अल्लाह तआला की नेअमत है और इसकी हलाकत से अपनी संख्या कम होती है. अपनी नस्ल मिटती है. यह दुनिया का घाटा है, घर की तबाही है, और आख़िरत में उसपर बड़ा अज़ाब है, तो यह अमल दुनिया और आख़िरत दोनों में तबाही का कारण हुआ और अपनी दुनिया और आख़िरत को तबाह कर लेना और औलाद जैसी प्यारी चीज़ के साथ इस तरह की बेरहमी और क्रुरता गवारा करना बहुत बड़ी अज्ञानता और मुर्खता है.
(25) यानी बहीरें सायबा हामी वग़ैरह जो बयान हो चुके.
(26) क्योंकि वो ये गुमान करते हैं कि ऐसे बुरे कामों का अल्लाह ने हुक्म दिया है और उनका यह ख़्याल अल्लाह पर झूट बांधना है.
(27) सच्चाई की.
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