गौसे पाक बचपन ही में इल्मे दिन हासिल करने के लिये राहे खुदा के मुसाफिर बन गए थे। चुनान्चे हज़रत शैख़ मुहम्मद बिन क़ाइद अवानी फरमाते है की हज़रत गौसे आ’ज़म जिलानी ने हम से फ़रमाया की बचपन में हज के दिन मुझे एक मर्तबा जंगल की तरफ जाने का इत्तिफ़ाक़ हुवा और में एक बैल के पीछे पीछे चल रहा था की उस बैल ने मेरी तरफ देख कर कहा :
🔹ऐ अब्दुल क़ादिर तुम्हे इस किस्म के कामो के लिये तो पैदा नहीं किया गया ! में घबरा कर घर लौटा और अपने घर की छत पर चढ़ गया तो क्या देखता हु की मैदाने अरफात में लोग खड़े है, इसके बाद मेने अपनी वालिदए माजिदा की खिदमते अक़्दस में हाजिर हो कर अर्ज़ किया :
🔹आप मुझे रहे खुदा में वक़्फ़ फरमा दे और मुझे बगदाद जाने की इजाज़त मर्हमत फरमाए ताकि में वहा जा कर इल्मे दिन हासिल करू।
🔹वालिदा माजिदा ने मुझसे इसका सबब दरयाफ़्त किया, मेने बैल वाला वाक़ीआ अर्ज़ कर दिया तो उन की आँखों में आसु आ गए और वो 80 दिनार जो मेरे वालीदे माजिद की विरासत थे, मेरे पास ले आई तो मेने उनमेसे 40 दिनार ले लिये और 40 दिनार अपने भाई सय्यिद अबू अहमद के लिये छोड़ दिये,
🔹वालिदए माजिदा ने मेरे 40 दिनार मेरी गुदड़ी में सी दिये और मुझे बगदाद जाने की इजाज़त इनायत फरमा दी। उन्होंने मुझे हर हाल में रास्तागोइ और सच्चाई को अपनाने की ताकीद फ़रमाई और जिलान के बाहर तक मुझे अल वदाअ कहने के लिये तशरीफ़ लाइ और फ़रमाया :
🔹ऐ मेरे प्यारे बेटे ! में तुझे अल्लाह की रिजा और ख़ुशनूदी की खातिर अपने पास से जुदा करती हु और अब मुझे तुम्हारा मुह कियामत को ही देखना नसीब होगा।
✒हवाला
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