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*1. बच्चों को ज़्यादा वक़्त तनहा मत रहने दें.*
आजकल बच्चों को अलग कमरा, कम्पयूटर और मोबाईल दे कर हम उनसे ग़ाफ़िल हो जाते हैं, यह बिल्कुल ग़लत है. बच्चों पर नज़र रखें और ख़ास तौर पर उन्हें अपने कमरे का दरवाज़ा बंद कर के बैठने मत दें.
*2. बच्चों के दोस्तों और बच्चियों की सहेलियों पे ख़ास नज़र रखें.* ताकि आपके इल्म में हो कि आपका बच्चा या बच्ची का मेलजोल किस क़िस्म के लोगों से है.
*3. बच्चों बच्चियों के दोस्तों और सहेलियों को भी उनके साथ कमरा बंद कर के मत बैठने दें. अगर आपका बच्चा कमरे में ही बैठने की ज़िद करे तो किसी न किसी बहाने चेक करते रहें.
*4. बच्चों को busy रखें.free ज़हन शैतान का घर होता है. बचपन से ही वह उमर के उस दौर में होते हैं, जब उनका ज़हन अच्छे और बुरे हर चीज़ के असर को फ़ौरन क़बूल करता है. इसलिये *उनकी दिलचस्पी देखते हुए उन्हें किसी सेहतमंद मशग़ले (healthy hobbies) में मसरूफ़ रखें.*
*5. ऐसे खेल, जिन में physical exercise ज़्यादा हो, वह बच्चों के लिये बेहतरीन होते है. ताकि बच्चा खेलकूद में ख़ूब थके और अच्छी गहरी नींद सोए.
*6. बच्चों के दोस्तों और मसरूफ़ियात पर नज़र रखें.*
याद रखें, *वालदैन बनना full time job है.* अल्लाह ने आपको औलाद की नेअमत से नवाज़ कर एक भारी ज़िम्मेदारी सौंपी है.
*7. अच्छी तालीम देने के साथ साथ अच्छी तरबियत भी करना. बच्चों को रिज़्क़ की कमी के ख़ौफ़ से पैदाइश से पहले ही ख़त्म कर देना ही क़त्ल के ज़ुमरे में नहीं आता, बल्कि औलाद की नाक़िस तरबियत कर के उनको *जहन्नम का ईंधन बनने के लिये बे-लगाम छोड़ देना भी उनके क़त्ल के बराबर है.
*8. अपने बच्चों को नमाज़ की ताकीद करें और हर वक़्त पाकीज़ा और साफ़ सुथरा रहने की आदत डालें.*
*9. बच्चियों को सीधा और लड़कों को उल्टा लेटने से मना करें. बच्चों को दायें करवट से लेटने का आदी बनाएँ.*
*10. बलूग़त (puberty) के नज़दीक बच्चे जब वॉशरूम में मामूल से ज़्यादा देर लगाएँ तो खटक जाएँ और उन्हें नरमी से समझाएँ.* लड़कों को उनके वालिद, जबकि लड़कियों को उनकी वालिदा समझाएँ.
*11. बच्चों को किसी भी रिश्तेदार के साथ हरगिज़ मत सोने दें और अजनबियों से घुलने-मिलने से मना करें और अगर वह किसी रिश्तेदार से बिदकता है या ज़रूरत से ज़्यादा क़रीब है तो ग़ैर महसूस तौर पर प्यार से वजह मालूम करें. बच्चों को आदी करें कि किसी के पास तनहाई में न जाएँ, चाहे रिश्तेदार हो या अजनबी और न ही किसी को अपने private parts को छूने दें.
*14. बच्चों को 5-6 साल की उमर से बिस्तर और मुमकिन हो तो कमरा भी अलग कर दें. ताकि उनकी मासूमियत देर तक क़ाएम रह सके.
*15. बच्चों के कमरे और चीज़ों को ग़ैर महसूस तौर पर चेक करते रहें.आपके इल्म में होना चाहिये कि आपके बच्चों की अलमारी किस क़िस्म की चीज़ों से भरी है. क्योंकि teenagers बच्चों की निगरानी भी वालदैन की ज़िम्मेदारी है. हमें अपने बच्चों को मुशफ़िक़ाना अमल से अपनी ख़ैरख़्वाही की एहसास दिलाना चाहिये और बलूग़त के अरसे में उनमें ज़ाहिर होने वाली जिस्मानी तब्दीलियों के मुतअल्लिक़ रहनुमाई करते रहना चाहिये. ताकि वह घर के बाहर से हासिल होने वाली ग़लत क़िस्म की मालूमात पे अमल कर के अपनी ज़िंदगी ख़राब न कर लें.
*16. बच्चों को बिस्तर पर तब जाने दें जब ख़ूब नींद आ रही हो और जब वह उठ जाएँ तो बिस्तर पर देर तक लेटे मत रहने दें.
*17. वालदैन बच्चों के सामने एक दूसरे से जिस्मानी बेतकल्लुफ़ी से परहेज़ करें.वरना बच्चे वक़्त से पहले उन बातों के मुतअल्लिक़ बाशऊर हो जाएंगे, जिनसे एक मुनासिब उमर में जा कर ही फ़हम हासिल होना चाहिये.
*18. बच्चे 13-14 साल के हों तो लड़कों को उनके वालिद और लड़कियों को उनकी वालिदा ‘सूरह यूसुफ़’ और ‘सूरह नूर’ की तफ़सीर समझाएँ* या किसी आलिम, आलिमा से पढ़वाएँ. कि किस तरह हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ने बेहद ख़ूबसूरत और नौजवान होते हुए एक बेमिसाल हुस्न की मलिका औरत के बहकाने पर भटके नहीं. बदले में अल्लाह के नेक बंदों में शुमार हुए.
*19. वालदैन बच्चों की ग़लतियों पे डाँटते हुए भी बाहया और मुहज़्ज़ब अलफ़ाज का इस्तेमाल करें. वरना बच्चों में वक़्त से पहले बेबाकी आ जाती है. जिसका ख़ामियाज़ा वालदैन को भी भुगतना पड़ता है.
*इस तरह बच्चे बच्चियाँ इंशा अल्लाह अपनी पाकदामनी को मामूली चीज़ नहीं समझेंगे और अपनी इज़्ज़त व पाकदामनी की ख़ूब हिफ़ाज़त करेंगे.✍✍✍✍✍✍✍

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