दोनों पैरों से लंगड़े माजूर,
अमर बिन जमूह रज़ियल्लाहु ताला अनहु सहाबी हैं,
दोनों पैरों से माजूर हैं,
हाथों के बल जमीन पर चलते हैं,
बाज लोग आपने देखे होंगे जिनके पैर नहीं होते,,
वह हाथों के बल चलते हैं,
सहाबी को अल्लाह ने दो बेटे दिए थे,, दोनों को भेज दिया जिहाद में, ,
तेरे जैसा मेरे जैसा होता बैठ कर दुआ मांगता या अल्लाह मैं मजबूर हूं,, मोहताज हूं,,
मेरे बच्चों को खैरियत से वापस ला,
खैरियत से वापस ला,
सहाबी की बीवी आकर कहने लगी क्या बताऊं,
मैं मदीने की औरतों में बैठने के काबिल न रही,
मैं मदीने की औरतो में बैठते हुए शर्माती हु, ओ तुझे क्या हुआ,
कहने लगी सबके खाविंद जिहाद में चले गए,
मेरा खाविंद घर पर बैठा है,
उसको पता तो था कि मेरा खाविद माजूर है,
मोहताज है,
लेकिन उसका जज्बा तों देखो,
जिहाद के लिए उभार रही है,
सहाबी के दिल पर ऐसा असर हुआ घर से निकलते हुए यह दुआ मांगी है,
इलाही मैं तेरी राह में चला हूं मेरी लाश भी मेरे घर न लौटाना,
मुझे ऐसा कबूल कर लेना मेरी मैयत भी मेरे घर ना आए,
घर से रोते हुए चल दिए,
घरवाली ने गले में तलवार लटका दी,,
चलते चलते हुजूर करीम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुए,
इजाजत ली मैदान जिहाद में चले गए, बेटों ने बाप को देखा,
तो कहा अब्बा जी हम थोड़े आ गए थे, दो, थे,
दोनो ही आ गए थे आप को क्या जरूरत थी,
खुदा की कसम क्या जवाब दिया ,
कहा तुम्हें अपनी जन्नत चाहिए मुझे अपनी जन्नत चाहिए,
तुम अपनी कीमत बनाने आए हो मुझे अपनी कीमत बनानी है,
बाज़ सहाबा ने देखा तो कहा
इसके गले में से तलवार निकाल लो, एक तो हमारे पास पहले ही हथियार नहीं है,
एक हथियार और काफिरो को देने चला है,
निकाल लो इसके गले में से,
हजरत उमर रज़ियल्लाहु ताला अनह ने फरमाया,
खबरदार जो किसी ने हाथ लगाया कितनी गैरत वाली माई ने,
गले में तलवार लटका कर भेजा है,
सहाबी जब आगे को बढ़ रहे थे,
कौमों में हर किस्म के बिगड़े हुए लोग होते हैं,
आपस में बातें करने लगे हा हा हा हा,, यह देखो मुसलमानों का सरदार देखो, मुसलमानों का जरनैल देखो,
करनैल देखो चला जाता नहीं,
पैर है नहीं,
हाथों के बल चल रहा है, लड़ने आया है,
वह तो अपनी बातों में लगे रहे,
अम्र बिन जमूह रज़ियल्लाहु ताला अनह ने आगे को
सरक सरक कर गले में से तलवार निकालकर सात काफिरों की टांगे काट दी,
जब पड़ा ना शोर,
जिसको तुम बिल्कुल निकम्मा कहते थे वह तो सात को ले बैठा,
बेड़ा गर्क कर दिया इसने तो,
फिर टूट पड़े काफिर सहाबी पर,
तीन टुकड़े कर दिए सहाबी के,
हम तो सारे क्यों में रह जाएंगे कोई कहता है मेरे हाथ नहीं , कोई कहता है मेरे पैर नहीं,
सारे उजर माजूर करके,
बहाने करके, अपने आपको हम पीछे रखना चाहते हैं,
और नबी सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम के इस दीवाने का हाल तो देखो,
सात काफिरों की टांगे काट दी,
बेटों ने बाप को देखा,
आगे बढ़ते हुए भी देखा,
टांगे काटते हुए भी देखा,
और टुकड़े होते हुए भी देखा,
तो यू दुआ की इलाही,
हम जवानों को कबूल नहीं किया,
हमारे माजूर बाप को कुबूल कर लिया,
जंग खत्म हुआ जिहाद खत्म हुआ, शहीदों की लाशों को संभाला,
बेटों ने बाप के टुकड़े इकट्ठा करके ऊंटनी के ऊपर रखकर,
मदीने पाक लाना चाहते हैं
जन्नतुल बकी में दफन करना चाहते हैं,
ऊंटनी को डंडे मारते हैं,
कदम नहीं उठाती डंडे मारते हैं बैठ जाती है,
इधर चलती है उधर चलती है,
मदीने की तरफ कदम नहीं उठाती,
दोनों बेटों में से एक बेटा,
हुजूरे अकरम सल्लल्लाहु वसल्लम के पास हाजिर हुआ,
और बताया यह कैफियत है,
अल्लाह के रसूल ने फरमाया है,
कि जब घर से निकला था
तो क्या बात हुई थी,
अपनी वालदा से जाकर पूछो
क्या हुआ था,
मां ने कहा बेटा
मैंने हीं उनको उभारा था जिहाद पर जाने के लिए,
और उनको कहा और उनको इशतियाल दिलाया,
मगर दिल पर ऐसा असर हुआ
यह दुआ की इलाही मेरी लाश भी
मेरे घर ना आए,
जिसके दिल से जो बात निकलती है, वहीं उसकी कीमत को जानता है,
अल्लाह के रसूल ने फरमाया
अल्लाह ने उनकी दुआ को कबूल कर लिया
अब लाश मदीने में आएगी ही नहीं
तुम वही जबल उहद पहाड़ के दामन में दफन कर दो,
अर्ज ये करना चाहता था,
सहाबा इकराम का निराला मर्तबा है, निराली शान है,
लामूस के मालिक हैं,
खुदा की कसम एक बात कहता हूं,
दिल पर लिख कर ले जाना,
जिन आंखों ने हुस्न ए यूसुफ को देखा, उंगली काटी,
और जिन आंखों ने
हुजूर करीम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम को देखा,
खुदा की कसम गर्दन कटा ली,
औलाद जिबह करा दी,
लेकिन हुजूर का दामन ना छोड़ा,
तो भाई इतने बड़े मर्तबे के मालिक हैं सहाबा इकराम,
अल्लाह हमे भी सहाबा इकराम के नक्शे कदम पर चलने वाला बनाये
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