मस्जिद-ए-नबवी ﷺ में फजर नमाज़ पढ़ाने के दौरान हज़रत उमर फ़ारूक़ रज़िअल्लाहु तआला अन्हु को अबूलोअलो फ़ेरोज़ के हाथों शदीद ज़ख़्मी होने की वजह से बचने की उम्मीद न रही थी, क्योंकि आपको दूध पिलाया गया जो ज़ख़्मों के रास्ते बाहर आ गया…
अपने आख़िरी वक़्त में हज़रत उमर फ़ारूक़ रज़िअल्लाहु तआला अन्हु ने अपने बेटे अब्दुल्लाह को बुलाया, उनसे पूछा कि मुझ पर कितना क़र्ज़ है..? उन्होंने हिसाब लगाकर बताया छियासी हज़ार दिरहम… इसपर उन्हें कुछ हिदायत दी, आख़िर में फ़रमाया: इस क़र्ज़ को मेरी तरफ़ से अदा कर देना…। इसके बाद फ़रमाया: उम्मुल मोमनीन हज़रत आयशा सिद्दीक़ा रज़िअल्लाहु तआला अन्हा के पास जाओ और कहो “उमर बिन ख़त्ताब आपको सलाम कहता है” और अपने दो साथियों (यानी नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और हज़रत अबू बक़्र रज़िअल्लाहु तआला अन्हु) के साथ दफ़्न होने की इजाज़त चाहता है…।
हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर हज़रत आयशा सिद्दीक़ा रज़िअल्लाहु तआला अन्हा की ख़िदमत में हाज़िर हुए, वो उस वक़्त सय्यदना उमर के सदमे में रो रही थीं… उनका पैग़ाम सुनकर फ़रमाया: ये जगह मैंने अपनी क़ब्र के लिए रक्खी थी, लेकिन अपने आप पर उमर को तरजीह देती हूँ…।
सय्यदना अब्दुल्लाह ये जवाब सुनकर वापस आए और सय्यदना हज़रत उमर फ़ारूक़ रज़िअल्लाहु तआला अन्हु को उनका जवाब बताया, आपने अल्लाह का शुक्र अदा किया, फिर फ़रमाया: मैं मर जाऊँ तो मेरा जनाज़ा उठाकर वहाँ ले जाना, और उन्हें सलाम करके एक बार फिर अर्ज़ करना… उमर बिन ख़त्ताब इजाज़त तलब करता है…। अगर इजाज़त दे दी तो मुझे अंदर लेजाकर दफ़्न कर देना और अगर इन्कार कर दें तो आम मुसलमानों के क़ब्रिस्तान में दफ़्न कर देना…।
हालत जब ज़्यादा नाज़ुक़ हो गई तो फ़रमाया: ख़िलाफ़त का हक़दार:- “उस्मान, अली, ज़ुबैर, अब्दुर्रहमान बिन औफ़ और सआद बिन वक़्क़ास रज़िअल्लाहु तआला अन्हुम” से ज़्यादा किसी को नहीं समझता…।
रसूललुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम भी वफ़ात तक इनसे खुश थे… इनमे से जिस किसी को भी ख़लीफ़ा चुन लिया जाए उसकी इताअत करना… फिर अपने बाद होने वाले ख़लीफ़ा को वसीयत कि मुहाजिरीन और अंसार से अच्छा सुलूक़ करना… जो लोग हमारी पनाह में आ गए उनकी जानो और मालो की हिफाज़त करना, उनसे किए हुए हर अहद को पूरा करना…।
हज़रत उमर फ़ारूक़ रज़िअल्लाहु तआला अन्हु सत्ताईस (27) ज़िल हज तेईस (23) हिजरी को ज़ख़्मी हुए, आपने तीन दिन बाद यकम मुहर्रम चौबीस हिजरी को वफ़ात पाई और शहादत के दर्जे पर फ़ाइज़ हुए…। उस वक़्त उम्र त्रेसठ (63) साल थी…।
जनाज़ा चारपाई पर रक्खा गया तो चारों तरफ़ लोग जमा हो गए… शेर-ए-ख़ुदा हज़रत अली रज़िअल्लाहु तआला अन्हु आए तो फ़रमाया: अल्लाह आप पर रहम फ़रमाए, आपने कोई ऐसा शख़्स नहीं छोड़ा के अल्लाह तआला के सामने जाने के लिए मुझे उसके अमल आपके अमल से ज़्यादा पसंद हों… अल्लाह की क़सम मुझे उम्मीद थी के अल्लाह आपको आपके दोनों साथियों के साथ रक्खेगा… इसलिए के मैं अक्सर रसूलुल्लाह ﷺ को इस तरह फ़रमाते हुए सुना करता था “मैं गया और अबू बक़्र और उमर गए, मैं दाख़िल हुआ और अबू बक़्र और उमर दाख़िल हुए, मैं निकला और अबू बक़्र और उमर निकले…।”
हज़रत उमर फ़ारूक़ रज़िअल्लाहु तआला अन्हु का जनाज़ा हज़रत सुहैब रज़िअल्लाहु तआला अन्हु ने पढ़ाया… हज़रत अली, हज़रत उस्मान, सआद बिन अबी वक़्क़ास और अब्दुर्रहमान बिन औफ़ रज़िअल्लाहु तआला अन्हुम ने क़ब्र में मय्यत को उतारा, और इस्लाम के इस बहोत बड़े फ़र्जन्द को हमेशा के लिए रसूलुल्लाह ﷺ और सय्यदना हज़रत अबू बक़्र रज़िअल्लाहु तआला अन्हु का साथ नसीब हो गया है…।
हज़रत उमर फ़ारूक़ रज़िअल्लाहु तआला अन्हु ने कई शादियाँ कीं, उनसे आठ या नौ लड़के, चार या पाँच लड़कियाँ हुईं… मशहूर बीवियों के नाम ये हैं: ज़ैनब बिन्ते मज़ऊन रज़िअल्लाहु अन्हा, आतिक़ा बिन्ते ज़ैद रज़िअल्लाहु अन्हा, उम्मे-हक़ीम बिन्ते हारिस रज़िअल्लाहु अन्हा, उम्मे-क़ुलसूम बिन्ते अली रज़िअल्लाहु अन्हा…।
औलाद में से हफ़सा, अब्दुल्लाह, उबैदुल्लाह और आसिम रज़िअल्लाहु तआला अन्हु बहोत मशहूर हैं…।
हफ़सा रज़िअल्लाहु तआला अन्हा को रसूलुल्लाह ﷺ की पाक बीवियों में शामिल होने का शरफ़ हासिल है… वो उम्मुल मोमनीन कहलाईं…।
हज़रत उमर फ़ारूक़ रज़िअल्लाहु तआला अन्हु में अल्लाह का ख़ौफ़ इन्तेहां को पहोंचा हुआ था, इबादत का शौक भी बेहद था, रातों को जागकर नफ़्ल पढ़ा करते थे… कुरआन-ए-करीमकी जिन आयात में क़यामत का ज़िक्र है, उनको पढ़ते वक़्त बहोत रोते, तरावीह की नमाज़ को उन्होंने बा-जमात कराया, उनके दौर (ज़ाहिरी तौर पर) से आज तक तरावीह बा-जमात अदा की जाती है…। आप में बुर्तबारी हद दर्जे की थी, दूसरों की नुक्ताचीनी को सब्र और हौसले से बर्दाश्त करते थे…।
हज़रत उमर फ़ारूक़ रज़िअल्लाहु तआला अन्हु ने एक वक़्त पर कभी दस्तरख़ान पर दो सालन जमा न किये… रसूलुल्लाह ﷺ और अबू बक़्र रज़िअल्लाहु तआला अन्हु का भी यही मामूल था…।
नबी-ए-करीम ﷺ से आपको इन्तेहां दर्जे की मुहब्बत थी, आप रसूलुल्लाह ﷺ पर अपनी जान क़ुरबान करने के लिए हर दम तैयार रहते थे…। अगर कोई रसूलुल्लाह ﷺ की शान में ज़रा सी गुस्ताखी करता तो उसकी गर्दन उड़ाने पर तैयार हो जाते…।
एक बार हज़रत उमर फ़ारूक़ रज़िअल्लाहु तआला अन्हु ने फ़रमाया: ऐ अल्लाह के रसूल! ﷺ मुझे आपसे अपनी जान से भी ज़्यादा मुहब्बत है…।
नबी-ए-करीम ﷺ ने हज़रत उमर फ़ारूक़ रज़िअल्लाहु तआला अन्हु को दुनिया ही में जन्नती होने की बशारत दी…।
Tanveer Tyagi
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