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हुजुर सल्लल्लाहो अलेही व सल्लम के वालिद हज़रत
अब्दुल्ला आपको अम्मा हज़रत आमना के पेट में
ही छोड़कर दूनियाँ से रुखसत हो गये
सय्यदा आमना खातून अपनी जिन्दगी बसर कर रही हे
हज़रत की दादी ने हज़रत के दादा को एक दिन
इशारा करके बुलाया
और कहने लगी आपको पता हे ये बहु आमना इत्र
लगाती हे
हज़रत की दादी कहने लगी में तो बड़ी परेशान हु
क्या करू आप आमना से पुछिये
हज़रत के दादा ने जवाब दिया तू पूछ लेती तूने
क्यों ना पूछा
हज़रत की दादी कहने लगी हज़रत के दादा हज़रत
मुत्तलिब से में तुम्हे क्या बताऊ मेने कई
मरतबा इरादा किया मेने बुलाया लेकिन में जब
आमना बहु के चहरे पे नज़र डालती हु तो में
पसीना पसीना हो जाती हु.
आमना के चहरे पे इतनी चमक हे इतना रोब हे में तो इससे
पूछ नही सकती हू आप ही पूछो
हज़रत के दादा कहने लगे तू तो औरत जात हे घर में
बेठी रहती हे में तो मर्द हु बाहर रहता मक्का में कुरेश
का सरदार हु मुझसे जो भी मिलता हे मोहल्ले में ओ
पूछता हे ऐ अब्दुल मुत्तलिब तेरे घर में इत्र की बारिश
कहा से हो रही हे.
और अब्दुल मुत्तलिब ने हज़रत की दादी से कहा ये
जो खुशबु आती हे ये जिस कमरे में जाती वहा खुशबु
आती हे ये गुसलखाने में जाती हे वहा भी खुशबु आती हे
और ये थूकती हे तो थूक में भी खुशबु आती हे
(कुर्बान जाऊ आमना के बेटे हज़रत मोहम्मद
सल्लल्लाहो अलेही व सल्लम पर)
और हज़रत के दादा हज़रत की दादी से कहने लगे
तुझे एक और बात बताऊ ये जो खुशबु आती हे ये कोई मामूली इत्र नही है
ये ईराक का इत्र नही
ये पलस्तिन का इत्र नही
ये कीसी देश का इत्र नही
ये कोई ख़ास खुशबु हे
तो हज़रत की दादी कहने लगी फिर पूछ लो
हज़रत के दादा ने हिम्मत करके आवाज़
दी आमना बेटी इधर आओ
आपकी माँ आमना तशरीफ़ ले आई
(उस माँ की अज़मतो का क्या कहना जिसके पेट में 9
महीने इमामुल अम्बियाँ ने बसेरा किया हो)
आपके दादा आपकी माँ आमना से कहने लगे
बेटी आमना तुझे पता हे में बेतुल्ला का मुत्तल्ली हु
खाना ऐ काबा का मुत्तल्ली हु सरदार हु कुरेश
का मुखिया हु इज्ज़त वाला हु आबरू वाला हु पर में
जहा भी जाता हु लोग मुझसे पूछते हे अब्दुल मुत्तल्लिब
तेरे घर से इत्र की खुशबु आती हे
बेटी एक बात बता में इत्र नही लगाता तेरी माँ इत्र
नही लगाती फिर तू ये इत्र कहा से लाती हो और ये
भी में जानता हु ये कोई आम इत्र नही हे।
सय्यदा खातून आमना(र.अ.) की आखों से आसू शुरू
हो गये
और फरमाने लगी अब्बा क्या बताऊ मेने
सारी जिन्दगी में इत्र खरीदा नही मुझे लाके किसी ने
इत्र दिया नहीं मुझे अच्छे बुरे इत्र की पहचान नही मेने
इतर वाले की दूकान देखी नही में बाज़ार कभी गई
नही मुझे किसी सहेली ने लाके नही दिया मुझे
किसी मुलाजिम ने लाके नही दिया मेरे घर वालो ने
लाके नही दिया मेने सारी जिन्दगी में
खरीदा कभी नही
पर अब्बा इक बात बताती हु न तुमने खरीदा न मेने
खरीदा
न किसी और ने लाके दिया
ऐसा मालुम होता हे(अपने पेट पे हाथ रख के कहा)
इस आने वाले मेहमान की बरकत हे।
और कहने लगी अब्बा तुमने तो सिर्फ खुशबु सुंगी हे
अगर में कुछ और बताऊ तो दीवानी कहोगे
फरमाती हे ऐ अब्बा ये सूरज कई मरतबा मुझे सलाम
करता हे
ये चाँद मुझे सलाम करता हे
जब में सोती हु ऐसी औरते जो ना तुमने देखी ना मेने
देखी खड़ी होकर मुझे पंखा झलती हे
सुब्हान अल्लाह.
एक बार दरुदे पाक पड़ कर इस पोस्ट को शेयर ज़रूर करना दोस्तों आप सभी से दुआ की दरख्व्वास्त करता हु भाई लोगो दुआ में याद रखना

Asalam-o-alaikum , Hi i am noor saba from Jharkhand ranchi i am very passionate about blogging and websites. i loves creating and writing blogs hope you will like my post khuda hafeez Dua me yaad rakhna.
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