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अस्सलामुअलैकुम..मस्ट रीड 👇👇

👉 इससे पहले चार दफ़ा मुख्तलिफ घरों के लड़के उसे रिश्ते से रद कर चुके थे यह पांचवी बार थी वह अपने दोस्तों को मैसेज पर बता रही थी के आज फिर लड़के वाले देखने आ रहे है। दुआ करना उन्हें में पसंद आ जाऊं मुझसे अब बाबा के चेहरे पर झुर्रियां नही देखी जाती है। न जाने उन्होंने ऐसा क्या गुनाह किया था के में उनपर बोझ बनी हुई हूँ। अब तो माँ के हाथ भी कांपते है उस मशीन को चला-चला कर उन्होंने आज तक मेरे लिए बहुत बनाया लेकिन किस्मत पता नही क्या इम्तिहान ले रही है।
शाम के वक्त वह अपने कमरे में बैठी येही दुआ मांग रही थी के मेरे बाबा की इज़्ज़त बच जाए कही वह फिर से येही न सोचें के बेटी क्या पैदा करली अज़ाब में पड गए हम तो। औऱ वही हुआ आने वालों ने नही पूछा के आप की बेटी नमाज़ पढ़ती है या नही ? उन्होंने नही पूछा के क्या दीन के लिए कभी मदरसें में गई या नही ? या कितना पढ़ा ? उन्होंने नही पूछा दुनिया का कितना पढा स्कूल कितना पढा ? उन्होंने नही पूछा के बेटी क्या दो वक्त का खाना बनाकर अपने शोहर को और हमें दे सकती है या नही ?
बल्के शाब्ज़ादे जो के एक तरफ कुर्सी पर टांग रखे बैठे थे इन्होंने मां को इशारा किया मां ने भी कह दिया बेटी को बुलाए। अंदर से लड़कीं को लेकर उसकी मां बाहीर आई यहां शाब्ज़ादे ने मुंह उठाया और बाहर चले गए। लड़के की मां पीछे गई बेटा क्या बात है यहां अंदर लड़कीं और उसके मां-बाप सुन रहे है। मुझे नही करनी इससे शादी शक्ल तो देखे उसकी ये भी कोई लड़कीं है। लड़के का वालिद माजरत करता हुआ वहां से उठा और इधर लड़कीं वहां से उठी और भागते हुए अपने कमरे में जाकर दरवाजा बंद कर दिया।
तीन दिन कमरे के एक कोने में वह घुट घुट कर मरती रही और आखिरकार चौथे दिन गोलियों का एक पैकेट अपने अंदर डालकर वह इस माशरे से खुद को अलग करने के लिए सुकून की नींद तलाश करने चली गई।
अब मेरा सवाल है के क्या उसे उसके हुस्न ने मारा है ?
या उस पांचवे शख्स ने मारा है ?
या उन तमाम लोगों ने जो इससे पहले आ चुके थे ?
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में बताती हूँ! लानत भेजती हु में इस गंदे मआशरे पर जिसने उसे मारा है लोगों की बेटियों को ऐसे देखने जाते हो जैसे के किसी बाग का बेपारी जाता है। बाग अच्छा लगा तो ठीक वरना कोई और ले लूंगा।
आप मैं हम वह तक़लीफ़ नही महसूस कर सकतें है जो एक बाप के सीने में लगी होती है, एक मां का कलेजा जब फट रहा होता है और जब उसकी आंखे खून बहा रही होती है। जब किसी की बहन बेटी को देखने जाओ तो उसकी शक्ल से न देखो। बल्के वालिदैन से पूछो के क्या वह दिन जानती है, क्या वह मेरी माँ को मां समझने के क़ाबिल है। क्या वह दो वक्त का खाना मुझे और मेरे मां-बाप को दें सकती है।
और अगर हुस्न चाहिए तो में आप को एक मशवरा देता हूँ जाओ मगरिब में वहां हुस्न है और वहां हुस्न मिलेगा भी बाकी हया शर्म दीन उनके करीब से भी नही गुजरा होगा और वैसे भी तुम्हे कोनसा हया शर्म या दीन चाहिए है। ज़रा सोचो घर मे जो बहन है उसे पांच दफ़ा कोई देखने आए और पांचों दफ़ा भी कहे नही मुझे ये पसंद तो तुम पर क़यामत गुज़रती है और तुम्हे याद भी है खुद कितनी बेटितों पर क़यामत गिरा चुके हो।
यक़ीन मानिए तुम्हे पता भी नही होता के कही तुम्हारी वजह से किसी घर मे कितना बड़ा फसाद कितना बड़ा दुख जन्म ले चुका है। हुस्न न देखे किसी की इज़्ज़त देखे। क्या फायदा अगर हुस्न मिले और इज़ज़त न हो बेइज़्ज़त लोग हुए हया न हो दीन न हो। लानत न भेजूं में ऐसे लोगों पर। ये बेटियां अपनी खुशी से ज्यादा अपने बाप के दुख में मर रही होती है के कही मेरा वालिद या मेरी वालिदा मुझसे मायूस तो नही।
लोगों में हया शर्म और दीन देखो हुस्न नही!!

Asalam-o-alaikum , Hi i am noor saba from Jharkhand ranchi i am very passionate about blogging and websites. i loves creating and writing blogs hope you will like my post khuda hafeez Dua me yaad rakhna.
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