शैतान किसी को एक दम गुनाह करने का मशवरा नही देता है बल्कि इंतिहाई सब्र और मेहनत के साथ पहले गुनाह करवाने का माहौल तैयार करता है।
मिसाल के तौर पर शैतान किसी को अगर बराए रास्त ये बोले कि जिना कर लो तो उसे पता है कि रद्द अमल बहुत शदीद होगा और जवाब لا حول ولا قوه الا باللہ या اعوذ باللہ من الشیطان الرجیم की सुरत मे मिलेगा।
इसलिए वो एक दम ये बात बोलने की गलती नही करता बल्कि पहले वो इस अमल के होने के लिए माहौल बनाता है।
बात करने मे क्या हर्ज है?
she is a just class- fellow notest ही तो लेता हुं, या तालीमी हवाले से बात ही तो करता हुं, अगला कदम, मोबाइल नम्बर ऐक्सचेंज करने मे क्या हर्ज है, एक साथ ही तो पढते है ना, मेसेज करने मे क्या हर्ज है? सवाल का जवाब ही तो देना है, फोन करने मे क्या हर्ज है?
Educational discussion ही तो करनी है, मे कौन सा कोई गलत नजरिया रखता हुं।
शैतान इंतिहाई चालाकी और महारत के साथ इंसान को गुनाह की पटरी पर डालता है और फिर हजार तरह की तावीले फराहम करके उसे गुनाह के रास्ते पर चलने के लिए राजी करता है।
” सिर्फ बात” की तसल्ली से शुरू होने वाला ताल्लुक शैतान की सरपरस्ती मे परवान चढते चढते वालिदेन की आंखो मे धूल झोकने से होते हुए गुनाह की मंजिल तय करता जाता है, बात दोस्ती मे बदलती है और चुंकि मुहब्बत (फोन का रेट) बहुत कम है और शैतान के कारन्दो ने दज्जाली शिकंजे मे लोगो को फंसाने के लिए Charges इंतिहाई कम रखे है इसलिए रोजाना की बुनियाद पर दर्जनो अफराद से नाजायज मुहब्बत के रिश्ते जन्म लेते है, और बात होते होते जिना पर पहुंच जाती है, हमारे मुआशरे मे Rate of Abortions मे इजाफा होने की वजह यही मुहब्बत है जो आजकल के नौजवानो को फरावानी के साथ होती है, और नतीजा दीन व इमान की तबाही साबित होती है, शैतान अफराद को लोगो से छिपकर गुनाह करने के लिए राजी करता है और उनके दिल मे ये नजरिया बैठा देता है, के अभी तो बहुत जिंदगी पडी है, तौबा कर लेगे, क्या फर्क पडता है, अभी तो मजे के दिन है, मरना तो बुड्ढो को होता है, जवानी का मतलब मस्तिया करना और मजे लुटना होता है।
कुरान का इरशाद है “शैतान तुम्हारा खुला दुश्मन है”
क्या इसे वाकई दुश्मन समझा जाता है?
गुनाह को गुनाह समझना तो दूर की बात अब तो लोग इन बातो के जायज होने की तावीले ढूंढते है और गर्लफ्रेंड बाॅयफ्रेंड के ना होने को Incompetency से तशबीह देते है के यार तुमने तो किसी को Impress करने की सलाहियत ही नही है, अस्तगफिरूल्लाह नतीजा?
हलाल रिश्तो से भी ऐतमाद की रूख्सती, बहामी रंजिशे और खानदानी निजाम के बेडा गर्क।
मुख्तसर- अजाबे इलाही, अगर हम अपने इर्दगिर्द हलकी सी नजर डाले तो हमे समझ आ जाएगी के हमारा मुआशरा तबाही की मंजिले कैसे और क्यो तय करता जा रहा है, और इस तबाही को मजीद तक्वीयत देने या इस तबाही को रोकने मे हमारा किरदार क्या है।
भुला दी हमने जो असलाफ से मिरास पाई थी
अल्लाह हमे जिन्दगी के मकसद को समझने की तौफीक अता फरमाए और इस जिंदगी इस तरह गुजारने की तौफीक और हिम्मत दे जैसे वो चाहता है, अल्लाह हमारा हामी व नासीर हो आमीन।
तहरीर – फातिमा हबीबा
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