सलाम एक तरह का दुसरे मुस्लमान भाईयों का हक है और उसे हक समझकर अदा करने की कोशीश करनी चाहिये, इसलिए सलाम कहने मे खुशदिली से काम लेते हुए दुसरो मुस्लमानो को सलाम कहना चाहिये, और सलाम कहने मे तकब्बुर और कंजुसी से काम नही लेना चाहिये,
*एक हदीस मे हजरते अबु हुरैरा (रजी अल्लाहु अन्हु) से रिवायत है की,
“सबसे बड़ा कंजुस ओ है जो सलाम करने मे कंजुसी करे”,
📚(आदाबे सुन्नत, सफा-31-32, Mohammed Arman Gaus )
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•हदीस : हजरत अली कहते है की, रसुलल्लाह (सलल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) ने फरमाया है।–
“मुस्लमान के मुस्लमान पर भलाई के छ: हुकुक है।,
1)👉जब कोई मुस्लमान मिले तो उसको सलाम करना.!
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2)👉कोई मुस्लमान दावत दे तो उसे कबुल करना.!
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3)👉किसी मुस्लमान को छींक आए तो उसका जवाब देना.!
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4)👉कोई मुस्लमान बिमार हो तो उसकी मिजाजपुर्सी करना.!
-5)👉कोई मुस्लमान मर जाए तो उसके जानजे के साथ जाना.!
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6)👉और हर मुस्लमान के लिये उस चीज को पसंद करना जिसको खुद अपने लिये पसंद करता हो..
📚(जामेअ तिर्मिजी,)
📚(आदाबे सुन्नत, सफा-32,)
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