सूरए माइदा – चौथा रूकू
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला
और जब मूसा ने कहा अपनी क़ौम से ऐ मेरी क़ौम, अल्लाह का एहसान अपने ऊपर याद करो कि तुम में से पैग़म्बर किये (1) और तुम्हें बादशाह किया (2) और तुम्हें वह दिया जो आज सारे संसार में किसी को न दिया (3)(20) ऐ क़ौम उस पाक ज़मीन में दाख़िल हो जो अल्लाह ने तुम्हारे लिये लिखा है और पीछे न पलटो (4) कि नुक़सान पर पलटोगे (21) बोले ऐ मूसा उसमें तो बङे ज़बरदस्त लोग हैं और हम उसमें हरगिज़ दाख़िल न होंगे जबतक वो वहाँ से निकल न जाएं, हाँ वो वहां से निकल जाएं तो हम वहां जाएं (22) दो मर्द कि अल्लाह से डरने वालों में से थे (5) अल्लाह ने उन्हें नवाज़ा (प्रदान किया) (6) बोले कि ज़बरदस्ती दर्वाज़े में (7) उनपर दाख़िल हो अगर तुम दर्वाज़े में दाख़िल हो जाओगे तो तुम्हारा ही ग़ल्बा है (8) और अल्लाह ही पर भरोसा करो अगर तुम्हें ईमान है (23) बोले (9) ऐ मूसा हम तो वहां (10) कभी न जाएंगे जबतक वो वहां हैं तो आप जाइये और आपका रब, तुम दोनों लङो हम यहां बैठे हैं (24) मूसा ने अर्ज़ की कि ऐ रब मेरे मुझे इख़्तियार नहीं मगर अपना और अपने भाई का तो तू हमको उन बेहु्कमों से अलग रख (11)(25) फ़रमाया तो वह ज़मीन उनपर हराम है (12) चालीस बरस तक भटकते फिरें ज़मीन में (13) तो तुम उन बेहुकमों का अफ़सोस न खाओ (26)
तफसीर सूरए माइदा – चौथा रूकू
(1) इस आयत से मालूम हुआ कि नबियों की तशरीफ़ आवरी नेमत है. और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने अपनी क़ौम को उसके ज़िक्र करने का हुक्म दिया कि वह बरकतों और इनाम का सबब है. इससे मीलाद की मेहफ़िलों के अच्छी और बरकत वाली होने की सनद मिलती है. (2) यानी आज़ाद और शान व इज़्ज़त वाले होने और फ़िरऔनियों के हाथों क़ैद होने के बाद उनकी गुलामी से छुटकारा हासिल करके ऐश व आराम की ज़िन्दगी पाना बड़ी नेमत है. हज़रत अबू सईद ख़ुदरी रदियल्लाहो अन्हो से रिवायत है कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया कि बनी इस्त्राईल में जो ख़ादिम और औरत और सवारी रखता, वह मलक कहलाया जाता. (3) जैसे कि दरिया में रास्ता बनाना, दुश्मन को डूबो देना, मन्न और सलवा उतरना, पत्थर से चश्मे जारी करना, बादल को सायबान बनाना वग़ैरह. (4) हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने अपनी क़ौम को अल्लाह की नेमतें याद दिलाने के बाद उनको अपने दुश्मनों पर जिहाद के लिये निकलने का हुक्म दिया और फ़रमाया कि ऐ क़ौम, पाक सरज़मीन में दाख़िल हो जाओ. उस ज़मीन को पाक इसलिये कहा गया कि वह नबियों की धरती थी. इससे मालूम हुआ कि नबियों के रहने से ज़मीनों को भी इज़्ज़त मिलती है और दूसरों के लिये वह बरक़त का कारण होती है. कलबी से मन्क़ूल है कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम लबनान पर्वत पर चढ़े तो आप से कहा गया, देखिये जहां तक आपकी नज़र पहुंचे वह जगह पाक है. और आपकी जूर्रियत की मीरास है. यह सरज़मीन तूर और उसके आसपास की थी और एक क़ौल यह है कि तमाम मुल्के शाम. (5) कालिब बिन यूक़न्ना और यूशअ बिन नून जो उन नक़ीबों में से थे जिन्हें हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने जब्बारों का हाल दरियाफ़्त करने के लिये भेजा था. (6) हिदायत और एहद पूरा करने के साथ. उन्होंने जब्बारों का हाल सिर्फ़ हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से अर्ज़ किया और इसको ज़ाहिर न किया. दूसरे नक़ीबों के विपरीत कि उन्होंने ज़ाहिर कर दिया था. (7) शहर के. (8) क्योंकि अल्लाह तआला ने मदद का वादा किया है और उसका वादा ज़रूर पूरा होना, तुम जब्बारीन के बड़े बड़े जिस्मों से मत डरो, हमने उन्हें देखा है. उनके जिस्म बड़े हैं और दिल कमज़ोर है. उन दोनों ने जब यह कहा तो बनी इस्त्राईल बहुत क्रुद्ध हुए और उन्होंने चाहा कि उनपर पत्थर बरसाएं. (9) बनी इस्त्राईल. (10) जब्बारीन के शहर में. (11) और हमें उनकी सोहबत और क़ुर्ब से बचाया, यह मानी कि हमारे उनके बीच फ़ैसला फ़रमाया. (12) उसमें दाख़िल न हो सकेंगे. (13) वह ज़मीन जिसमें ये लोग भटकते फिरे, नौ फ़रसगं थी और क़ौम छ लाख जंगी जो अपने सामान लिये तमाम दिन चलते थे. जब शाम होती तो अपने को वहीं पाते जहाँ से चले थे. यह उनपर उक़ूबत थी सिवाय हज़रत मूसा व हारून व यूशअ व कालिब के, कि उनपर अल्लाह तआला ने आसानी फ़रमाई और उनकी मदद की, जैसा कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के लिये आग को ठण्डा और सलामती बनाया और इतनी बड़ी जमाअत का इतनी छोटी ज़मीन में चालीस बरस आवारा और हैरान फिरना और किसी का वहाँ से निकल न सकना, चमत्कारों में से है. जब बनी इस्त्राईल ने उस जंगल में हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से खाने पीने वग़ैरह ज़रूरतों और तकलीफ़ों की शिकायत की तो अल्लाह तआला ने हज़रत मूसा की दुआ से उनको आसमानी ग़िज़ा मन्नो सलवा अता फ़रमाया और लिबास ख़ुद उनके बदन पर पैदा किया जो जिस्म के साथ बढ़ता था और एक सफ़ेद पत्थर तूर पर्वत का इनायत किया कि जब सफ़र से रूकते और कहीं ठहरते तो हज़रत उस पत्थर पर लाठी मारते, इससे बनी इस्त्राईल के बारह गिराहों के लिये बारह चश्मे जारी हो जाते और साया करने के लिये एक बादल भेजा और तीह में जितने लोग दाख़िल हुए थे उनमें से चौबीस साल से ज़्यादा उम्र के थे, सब वहीं मर गए, सिवाय यूशअ बिन नून और कालिब बिन यूक़न्ना के, और जिन लोगों ने पाक सरज़मीन में दाख़िल होने से इन्कार किया उनमें से कोई भी दाख़िल न हो सका और कहा गया है कि तीह में ही हज़रत दाऊद और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की वफ़ात हुई. हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की वफ़ात से चालीस बरस बाद हज़रत यूशअ को नबुव्वत अता की गई और जब्बारीन पर जिहाद का हुक्म दिया गया. आप बाक़ी बचे बनी इस्त्राईल को साथ लेकर गए और जब्बारीन पर जिहाद किया.
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