हज़रते बुरैदह रज़ियल्लाहु अन्हु बङे ही गमगीन और उदास हो कर नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम कि खिदमत मे हाज़िर हुए तो हुजु़र उनसे पुछा इतने उदास क्यो हो?
हज़रते बुरैदाह रजियल्लाहु अन्हु ने कहाँ या रसूल अल्लाह मै जहाँ भी अपने निकाह का पैगाम भेजता हुँ वहाँ से मेरे निकाह के पैगाम को ठुकरा दिया जाता है कोई भी मुझसे शादी नही करना चाहता क्योकि मै बहुत काला हुँ और गरीब भी बहुत हुँ
रहमतुल्लील आलामिन हुजूर सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम से अपने सहाबी का गम देखा ना गया फरमाया के जाओ मदीने कि जो भी सबसे खुबसुरत लङकी हो उसके घर जाओ और उसके वालिद से कहो के नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम ने तुम्हारी लङकि के लिए मुझे चुना है,,,
हजरते बुरैदह मदीने के एक कबीले के सरदार की लङकि जो बहुत खुबसुरत थी उनके घर गए और लङकी के वालिद से कहाँ कि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम ने तुम्हारी बैटी के निकाह के लिए मुझे चुना है
ये सुनकर वो सरदार बङा नराज़ हुआ और हज़रते बुरैदह को बहुत बुरा भला कहा और उन्हे झिङक कर घर से निकाल दिया
हज़रते बुरैदह मायूस हो वापस लोट गए,,,,,,,,,,इधर उस सरदार कि बैटी ने अपने वालिद से पुछा क्या हुआ आप नराज़ क्यो हो?
सरदार ने कहाँ -बैटी तुम बुरैदाह को जानती हो?
लङकी ने कहाँ -जी हाँ जानती हुँ
सरदार ने कहाँ -वो आए थे कह रहे थे के नबी ए करीम ने तुम्हारे निकाह के लिए उन्हे चुना है
लङकी ने पुछा -फिर आपने क्या कहाँ?
सरदार ने कहाँ -कहना क्या था मेने उन्हे झिङक कर घर से बाहर निकाल दिया,,,,,लङकी ने अपने वालिद से कहाँ ये आपने ठिक नही किया मे जानती हुँ
हजरते बुरैदाह खुबसुरत नही है और मालदार भी नही है लेकिन आप उन्हे ना देखे बल्कि ये देखे कि उन्हे भेजा किसने है उन्हे नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम ने भेजा जब हमारे आका ने मेरा रिश्ता उनसे कर दिया है तो हम ईन्कार करने के बारे मे सोच भी नही सकते हमे रसूल अल्लाह के हर फैसले पर राज़ी रहना चाहिये आप नबी ए करी म सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम के पास जाइये और माफी मागिये मुझे ये रिश्ता दिलो जान से मन्ज़ुर है
जब लङकी ने अपने वालिद से कहाँ कि मुझे हज़रते बुरैदाह से निकाह मन्जूर है तो वो सरदार नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम कि बारगाह मे हाज़िर हुए और कहाँ या रसूल अल्लाह मुझे माफ कर दीजिये कि आपने जो हज़रते बुरैदाह का रिश्ता मेरी बैटी के लिए भेजा था मेने उस रिश्ते के लिए मना कर दिया था लेकिन अब मे और मेरी बैटी उस रिश्ते से राज़ी है,,,
हज़रते बुरैदाह रज़ियल्लाहु अन्हु को जब ये खबर मिली तो आप बहुत खुश हुए अब आपकी शादी करने की तमन्ना पुरी होने वाली थी,,,,,,हज़रते बुरैदाह बहुत गरीब थे शादी का सामान खरीदने के लिए आपके पास पैसे नही थे तो एक दुसरे सहाबी ने उन्हे दो हज़ार दिरहम दिये आप खुशी-खुशी शादी का समान खरीद रहे थे कि अचानक ईस्लाम कि हिफाज़त के लिए जिहाद फि सबीलिल्लाह कि आवाज़ आई जिहाद का नाम सुनकर हज़रते बुरैदाह रज़ियल्लाहु अन्हु सब कुछ भूल गए और उस आशिके रसूल ने इस्लाम के फिदाकार ने अपनी शादी करने कि ख्वाहीश कि कुरबानी दी और शादी का सामान वापस करके एक हज़ार दिरहम कि एक तलवार खरीदी और एक हज़ार दिरहम का एक घोङा खरीदा और मुह पर नकाब डालकर उसी वक्त जिहाद के मैदान कि तरफ रवाना हो गए हज़रते बुरैदाह तलवार चलाने मे बहुत माहिर और मश्हुर थे जब जंग के मैदान मे पहुचे तो उस वक्त मुस्लमान दुश्मनो के मुकाबले मे कमज़ोर पङ रहे थे हज़रते बुरैदाह ने करीब जाकर इस जोर का नारा लगाया कि पुरा मैदान नारे से गूंज गया और कुफ्फार ये समझकर डर गए कि मुस्लमानो कि मदद को एक लश्कर और आ गया :हज़रते बुरैदाह ने कुफ्फार पर तलवार चलना शुरु कर दी लाशों के ढेर लग गए हज़रते बुरैदाह का जोश देख कर दुसरे मुजाहिद भी जोश मे आ गए और मुस्लमान जंग जित गए आखरी मे शाम को जब सारे शहिदो की लाशो को जमा किया गया तो उन लाशो मे एक नकाब पोश कि भी लाश थी नकाब उलटकर देखा तो हज़रते बुरैदाह नज़र आए तमाम मुजाहिदो पर रिक्कत तारी हो गई नबी ए करीम को खबर मिली और जब आपने देखा तो आपकी आखो से आँसु जारी हो गए और जब हज़रते बुरैदाह के जनाज़े को ले जाया जा रहा था तो नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम पंजो के बल चल रहे थे और दफन के वक्त आप सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम. मुस्कुरा रहे थे (हालाकि आप बहुत गमगीन थे) फिर सहाबा किराम ने मुस्कुराने कि वजह पूछी तो हुजूर ने फरमाया कि बुरैदाह के जनाजे मे शिरकत करने के लिए आसमान से इतने फरिश्ते उतरे कि मुझे पैर रखने कि जगह नही मिली इसलिए मे पंजो के बल चल रहा था और मुस्कुरा इसलिए रहा था कि बुरैदाह से निकाह करने के लिए उन पर इतनी हुरै टुट पङी है कि हर हुर ये कहती है परवर दिगार इस दूल्हे को हमे अता कर(हिकायते सहाबा,)
या अल्लाह हमे भी सहाबा किराम कि तरह तेरी राह मे कुरबानी देने का जज्बा अता कर “आमिन “
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