*आइये, आज जन्नत का रास्ते को देख लें…*
फिर भी अल्लाह वालों को जन्नत की तलब नहीं.. तलब क्यों नहीं वो नहीं बताउंगा क्यों के इस की परमीशन नहीं… लेकिन एक बात है के जन्नत को अल्लाह वालों की तलाश है, और वो उन की ही तलब करती है, जो अल्लाह के हो गए |
कुछ तो राज़ है जिसकी पर्दादारी है..
हज़रत बराअ़ बिन आज़िब (रदियल्लाहु तआला अन्हो) से रिवायत है कि, “एक बदवीने रसूले हाशमी (सल्लल्लाहो तआला अलयहे वसल्लम) से अर्ज़ किया के मुझे वो अमल बताओ जो मुझे जन्नत में ले जाये |”
सरकार ने फ़रमाया; “इन्सान को गुलामी से आज़ाद कर, कर्ज़ से छुड़ा, ज़ालिम रिश्तेदार का हाथ पकड़ (ज़ुल्म से रोक), अगर तू ये नहीं कर सकता तो भूखे को खाना खिला और प्यासे को पानी पिला और नेकी (का रास्ता) बता, बुराई से रोक. अगर ये भी नहीं कर सकता तो भलाई के सिवा अपनी ज़बान मत चला |” (अदबुल मुफर्रद, इमाम बुखारी)
अब सवाल ये होगा के सरकार ने इतना मुख़्तसर बता कर जन्नत का रास्ता बता दिया… इबादत का अमल क्यों नहीं बताया?
आइये, अब बारगाहे हज़रत ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया कुदसिर्रहुल अज़ीज़ में पहुंचते है और ये बात अर्ज़ करते हैं…!!
हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया कुदसिर्रहुल अज़ीज़ फ़रमाते हैं कि, “ताअत (इबादत) दो तरह की है :
(1) लाज़िमी, और (2) मुतअद्दी |
-“ताअते लाज़िमी” वो है के जिसका फायदा सिर्फ़ करने वाले को ही मिलता है और वो है नमाज़, रोज़ा, हज, विर्द और तस्बीह है |
-“ताअते मुतअद्दी” वो है जिससे दूसरों को फायदा पहुंचता हो जैसे के इत्तफ़ाक, शफक़्क़त, दूसरों पर मेहरबानी करना वगैरह… इसे मुतअद्दी ताअत कहा जाता है और इसका सवाब बेहिसाब है |”(फवाएदुल फवाद)
बात यहाँ तमामशूद हुई…
दोस्तों ! हुक़ूक़ुल इबाद अल्लाह तआला को बहुत पसंद है और उसके लिए वो खास बंदो को चून लेता है और जब कोई शख़्स इस काम में दख़ल देता है, रोकने की कोशिश करता है या इस काम के करने वालों को नफ़रत की निगाह से देखता है तो कुछ ही मुद्दत के बाद वो मुसीबतों में गिरफ़्त हो जाता है |
*(नमाज़ पढ़ना फर्ज़ है और इसका इन्कार करने वाला क़ुफ्र में मुब्तला है)*
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