अगर आप दहेज देकर बेटी की शादी कर रहे हैं तो यक़ीन मानिए आप अपनी बेटी के लिए सौहर नहीं ग़ुलाम ढूँढ रहे हैं,
अगर आप दहेज लेकर अपने बेटे को बेच रहे हैं तो यक़ीन मानिए आप अपने बेटे के लिए बीवी नहीं सौदागर ढूँढ रहे हैं,
कितने ग़रीब बाप के सरों पर आफ़त आ पड़ती है जब उनकी बिटिया जवान होती हैं ! अपनी ज़िन्दगी की कमाई लूटा देते हैं उनके आशियाने को सजाने में इसलिए के कहीं मेरी बिटिया को बाद में ताने न सुनने पड़े, कहीं मेरी बिटिया और दामाद को कुछ कमी न पड़ जाए, कहींमेरी बिटिया के साथ नौकरों वाला रवईया इख़्तियार न हो जाए…कभी आप सोचे हैं ? उस ग़रीब बाप( ससुर ) पर क्या बीतती होगी जिसके हाथ से ज़मीन भी गई और बेटी भी सिर्फ़ आपकी ख़्वाईश को पूरी करने में ।
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आप सुअर नहीं खाएँगे क्योंकि यह दीन ए इस्लाम में हराम है, आप गाय का माँस नहीं खाएँगे क्योंकि यह हिन्दु/सनातन में पाप है पर आप दहेज ज़रूर लेंगे अगर न मिले तो घर की बहु को ज़िंदा ज़रूर जलाएँगे क्योंकि यह जायज़ है आपके मजहब में यह सवाब और पुण्य का काम है आपके मजहब में ?
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कंबख़्तों ! सुधर जाओ ! कोई मजहब या मुक़द्दस किताब नहीं कहता के दहेज लेकर ही निकाह या विवाह करो बल्कि दहेज लेना तो हराम और नाजायज़ ठहराया गया…यह तुमलोगों का ख़ुद का गढ़ा हुआ रिवाज है या साफ़ शब्द में कहे लड़की वालों से पैसे ऐठने का ज़रिया और अब भी ना माने तो ऐसे लोगों पे पुरा हक़ है उनकी बीवियों का; के उनके साथ कुत्ता सा बर्ताव करे या नौकर सा क्योंकि उनको दहेज की क़ीमत देकर ख़रीदा जा चुका है ॥
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नोट : इस मुल्क के हुक्ममरानों को कौन समझाए के गौ माँस और नोट बंदी के साथ साथ दहेज पर भी बैन लगाना ज़रूरी था जिससे देश और देश की बिटियों का भला हो और दहेज माँगने वाले हराम के ढक्कनों का कमर टूटे ।
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