जब में चार साल का था…
मेरे अब्बू सबसे अच्छे हैं…।
जब मैं छः साल का था…
लगता है मेरे अब्बू सब कुछ जानते हैं…।
जब मैं दस साल का था…
मेरे अब्बू बहुत अच्छे हैं, लेकिन बस ज़रा ग़ुस्से के तेज़ हैं…।
जब मैं बारह साल का था…
मेरे अब्बू तब बहुत अच्छे थे, जब मैं छोटा था…।
जब मैं चौदह साल का था…
लगता है मेरे अब्बू बहुत हस्सास हो गए हैं…।
जब मैं सोलह साल का था…
मेरे अब्बू ज़दीद दौर के तक़ाज़ों से आश्ना नहीं हैं…।
जब मैं अठ्ठारह साल का था…
मेरे अब्बू में बर्दाश्त की कमी बढ़ती जा रही है…।
जब मैं बीस साल का था…
मेरे अब्बू के साथ तो वक़्त गुज़ारना बहुत ही मुश्किल काम है, पता नहीं अम्मी बेचारी कैसे उनके साथ इतनी मुद्दत से गुज़ारा कर रही हैं…।
जब मैं पच्चीस साल का था…
लगता है मेरे अब्बू को हर उस चीज़ पर एतराज़ है, जो मैं करता हूँ…।
जब मैं तीस साल का था…
मेरे अब्बू के साथ बाहमी रजामंदी बहुत ही मुश्किल काम है… शायद दादा-जान को भी अब्बू से यही शिकायत होती होगी जो मुझे है…।
जब मैं चालीस साल का था…
अब्बू ने मेरी परवरिश बहुत ही अच्छे उसूलों के ज़रिये की, मुझे भी अपने बच्चों की परवरिश ऐसी ही करनी चाहिए…।
जब मैं पैंतालीस साल का था…
मुझे हैरत है कि अब्बू ने हम सबको कैसे इतने अच्छे तरीक़े से पाला पोसा…।
जब मैं पच्चास साल का था…
मेरे लिए तो बच्चों की तर्बियत बहुत ही मुश्किल काम है, पता नहीं अब्बू हमारी तालीम-ओ-तर्बियत और परवरिश में कितनी अज़ीयत से गुज़रे होंगे…।
जब मैं पचपन साल का था…
मेरे अब्बू बहुत दाना और दूर-अंदेश थे और उन्होंने हमारी परवरिश और तालीम-ओ-तर्बियत के लिए बहुत ही ज़बरदस्त मंसूबा बंदी की थी…।
जब मैं साठ साल का हुआ
मेरे अब्बू सबसे अच्छे हैं…।
ग़ौर कीजिए की इस दायरे को मुकम्मल होने में छप्पन साल लगे, और बात आख़िर में फिर पहले वाले क़दम पर आ गई कि मेरे अब्बू सबसे अच्छे हैं…।
आईये! हम अपने वालदैन से बेहतरीन सुलूक करें, उनके सामने उफ्फ़! तक न करें, उनकी ख़ूब ख़िदमत करें, और उनसे बहोत सा प्यार करें, क़ब्ल इसके कि बहुत देर हो जाए…।
[अल्लाह हम सबके वालदैन या उनमें से कोई एक जो ब-क़ैद-ए-हयात हैं, को अच्छी सेहत और लंबी उम्र दे, और उनका साया हमारे सर पर सलामत रखे, आमीन या रब्बुल आलमीन!] और ये दुआ करें कि ऐ अल्लाह! मेरे वालदैन पर उस तरह रहम फ़र्मा, जैसे उन्होंने मुझ पर उस वक़्त मेहरबानी की जब मैं कमसिन था…।
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