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माहे रमज़ानुल मुबारक के रोज़ों के1f54c🕌*
*1f575 1f3fb 200d 2642🕵🏻फ़वाइद पर अंग्रेजों के Research1f575 1f3fb 200d 2642🕵🏻*
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*27a1हॉलेंड़ का पादरी Alf Gaal का कहना हैं: 🏻”मैने शूगर, दिल और मे’दे के मरीज़ों को मुसल्सल 30 दिन रोज़े रखवाए तो नतीज़ा ये निकला की शूगरवालों की शूगर कन्ट्रोल हो गई, दिल के मरीज़ों की घबराहट और सांस का फूलना कम हुआ और मे’दे के मरीज़ों को सबसे ज़्यादा फाएदा हुआ”!“`
*27a1एक अंग्रेज माहिरे नफ़्सिय्यात Sigmend Fride का कहना हैं: 🏻”रोज़े से जिस्मानी खिचांव, ज़ेहनी Depression और नफ़्सिय्याती बीमारियों का खात्मा होता हैं”!“`
*27a1एक अख़बारी Report के मुत़ाबिक़ जर्मनी, इंगलैण्ड़ और अमरीका के माहिर डॉक्टरों की तह़क़ीक़ाती टीम ने रमज़ानुल मुबारक में मुसलमानों पर रिसर्च किया और सर्वे करने के बाद उन्होने येह Report पेश की: 1f4bb💻“चूंकि मुसलमान नमाज़ पढ़ते और रमज़ान में इसकी ज़्यादा पाबन्दी करते हैं इसलिए वुज़ू करने से E.N.T. यानी नाक, कान और गले की बीमारियों में कमी हो जाती हैं और मुसलमान रोज़े की वजह से कम खाते हैं इसलिए जिगर, दिल और आ’साब (यानी पठ्ठों) की बीमारियों में कम मुब्तला होते हैं”!“`
*27a1Oxford University के प्रोफेसर Moor Palid का कहना हैं: 🏻”मैं इस्लामी उ़लूम पढ़ रहा था, जब रोज़ो के बारे में पढ़ा तो उछल पड़ा कि इस्लाम ने अपने मानने वालों को इतना अज़ीमुश्शान नुस्ख़ा दिया हैं, मुझे भी शौक हुआ लिहाज़ा मैने भी मुसलमानों की तर्ज़ पर रोज़े रखने शुरू कर दिए, काफी अ़र्से से मुझे मे’दे के वरम की बीमारी थी, कुछ ही दिनों के बाद मुझे तक्लीफ़ में कमी मह़सूस हुई और मैं रोज़े रखता रहा यहां तक कि एक महीने में मेरी बीमारी बिल्कुल ख़त्म हो गई”!“`
*1f4d8📘(फ़ैज़ाने रमज़ान, सफ़ह़ा-60,61)*
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“`270d 1f3fc✍🏼प्यारे आक़ा صَلَّى اللّٰهُ تَعَالٰى عَلَئهِ وَ اٰلِهٖ وَسَلَّم के प्यारे दीवानों, रोज़ों के बारे में ये उन लोगों के बयान हैं जो मुसलमान तो नही मगर इन लोगों ने मुसलमानों की त़रह़ रोज़े रखकर उनके फ़वाइद पर Research किया और दुनिया को बताया कि मुसलमान कितने ख़ुशनसीब हैं कि जिन्हे रमज़ानुल मुबारक जैसा प्यारा महीना मिला जिसकी वजह से कईं बीमारियों से इनकी ह़िफ़ाज़त हो जाती हैं!“`
“`मगर अफ़्सोस, जो वाक़ेई में आज खुद को मुसलमान कहते हैं वो सिर्फ़ मामूली सी वजह के सबब रोज़े को तर्क़ कर देते हैं और उनको इस बात का अफ़्सोस भी नही होता!“`
“`फ़वाइद तो दूर वो फ़ज़ाइल पर भी ग़ौर नही फ़रमाते कि इस माह में किस क़दर रब عَزَّ وَجَلَّ हम पर मेहरबान होकर अपनी रह़मतों के दरवाज़े हम पर खोल देता हैं और अपने गुनहगार बन्दों को बख़्श देता हैं!“`

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