एक इस्लामी भाई ने हलफ़िया (यानी क़सम खा कर) बयान दिया कि मेरे एक अ़ज़ीज़ की जवान बेटी का अचानक इन्तेक़ाल हो गया, जब हम दफ़्न करके फ़ारिग़ हो कर पल्टे तो मर्हुमा के वालिद को याद आया कि उसका एक हेन्ड बैग जिसमें ज़रूरी काग़ज़ात थे वो गलती से क़ब्र में गिर गया और मय्यित के साथ दफ़्न हो गया!
चुनान्चे मजबूरी में दुबारा क़ब्र खोदनी पड़ी, जैसे ही क़ब्र से सील हटाई ख़ौफ़ के मारे हमारी चीख़ें निकल गई क्यूंकि *जिस जवान लड़की की कफ़न पोश लाश को अभी अभी हमने ज़मीन पर लिटाया था वो कफ़न फाड़ कर उठ बैठी थी और वो भी कमान की त़रह़ टेढ़ी, उसके सर के बालों से उसकी टांगे बंधी हुई थी और कईं ना मालूम अ़जीब से छोटे छोटे ख़ौफ़नाक जानवर उस से चिमटे हुए थे!*
ये दहशत नाक मन्ज़र देखकर ड़र के मारे हमारी घिग्गी बंध गई और वो बैग निकाले बग़ैर जैसे तैसे मिट्टी फेंक कर हम भाग खड़े हुए! घर आकर उसके अ़ज़ीज़ों से उसका जुर्म पूछा तो बताया कि उसमें फी ज़माना मायूब समझा जाने वाला कोई जुर्म तो नही था, अलबत्ता आजकल की लड़कियों की त़रह़ ये भी फैशनेबल थी और पर्दा नही करती थी, अभी इन्तेक़ाल से चन्द रोज़ पहले रिश्तेदारों में शादी थी तो उसने फेन्सी बाल कटवा कर बन संवर कर आ़म औ़रतों की त़रह़ शादियों में बे पर्दा शिरकत की थी!
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*ऐं मेरी बहनों सदा पर्दा करो*
*तुम गली कूचों में मत फिरती रहो*
*वरना सुन लो क़ब्र में जब जाओगी*
*सांप बिच्छू देखकर चिल्लाओगी*
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*👱🏻♀🙎🏻👩🏻👰🏻कमज़ोर बहाने👰🏻👩🏻🙎🏻👱🏻♀*
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👉🏽क्या उस बदनसीब फैशन परस्त लड़की की दास्ताने वहशत निशान पढ़कर हमारी वो इस्लामी बहनें इ़ब्रत का दर्स ह़ासिल नही करेगी जो शैत़ान के उक्साने पर इस त़रह़ के बहाने करती रहती हैं कि:
*👰🏻मेरी तो मजबूरी हैं,*
*🙎🏻हमारे घर में तो कोई पर्दा नही करता,*
*👩🏻घर वाले क्या सोचेंगे,*
*👸🏻खानदान के रिवाज को भी देखना पड़ता हैं,*
*👱🏻♀हमारा सारा खानदान पढ़ा लिखा हैं,*
*💁🏻आजकल कौन पर्दा करता हैं,*
*🙇🏻♀सादा और बा पर्दा लड़कियों के लिए कोई रिश्ता नही भेजता!*
वग़ैरा वग़ैरा!
👉🏼क्या खानदानी रस्मों रिवाज और नफ़्स की मजबूरियां आपको अ़ज़ाबे क़ब्र व जहन्नम से नजात दिला देगी?
👉🏾क्या आप बारगाहे खुदावन्दी عَزَّوَجَلَّ में इस त़रह़ की खोखली मजबूरियां बयान करके छुटकारा ह़ासिल करने में कामयाब हो जाएंगी?
➡अगर नही, और यक़ीनन नही तो फिर आपको हर ह़ाल में बे पर्दगी से तौबा करनी होगी!
*👉याद रखिए,*
लौहे मह़फ़ूज़ पर जिसका जोड़ा जहां लिखा होता हैं वहीं शादी होती हैं और नही लिखा होता तो शादी नही होती, जैसे कि आए दिन कईं पढ़ी लिखी मॉडर्न कुंवारी लड़कियां पलक झपकने में मौत की शिकार होकर रह जाती हैं बल्कि कईं बार ऐसा भी होता हैं कि दुल्हन अपनी रुख्सती से पहले ही मौत के घाट उतर जाती हैं और उसे रौशनी से जगमगाते, ख़ुश्बू से महकाते हुजरए अ़रूसी में पहुंचाने के बजाए कीड़े मकोड़ों से भरी तंग और अंधेरी क़ब्र में उतार दिया जाता हैं!
*तू खुशी के फूल लेगी कब तलक*
*तू यहां ज़िन्दा रहेगी कब तलक*
*मौत आ कर ही रहेगी याद रख*
*जान जाकर ही रहेगी याद रख*
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*अल्लाह عَزَّوَجَلَّ तमाम इस्लामी बहनों को इस इ़ब्रतनाक वाकिए से सबक ह़ासिल करके सच्चे दिल से तौबा की त़ौफ़ीक़ अ़त़ा फ़रमाए!*
*🌴🍂🍁🌾 आमीन 🌾🍁🍂🌴*
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