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हज़रत ईब्राहीम अलैहिस्सलाम की आदत थी की वो मेहमान के बगैर खाना नहीं
खाते थे, (और जो खाना मेहमान के साथ खाया जाये उसका हिसाब भी नहीं
होता ) एक दिन भूख लगी घरवालों को खाना पकाने का कहा और खुद मेहमान
ढूढ़ने निकले…!!!
एक शख़्स को जो के बूढ़ा था उसे ले आये और दस्तरख़्वान पे बिठाया ..!!
खाना जब लग गया तो उसको कहा ” अल्लाह का नाम लेकर शुरू करो ” उसने
कहा मैं तो अल्लाह को नहीं मानता ..!!
आप अलैहिस्सलाम ने फरमाया में तुझसे कोई रिश्ता या तअल्लुक नहीं रखता!
अल्लाह ही के नाम तुझे खीला रहा हूं..! तो कम स कम मेरे रब का नाम तो तुझे
लेना चाहिए ..!
उसने कहा ” में तो बूतों का पूजारी हूं ” .!!
और रोटी के चंद टूकडो के लिए अपने बूतों से बेवफाई नहीं कर सकता ..!
हज़रत ईब्राहीम अलैहिस्सलाम बोले ” जब तक इतना गैरत मंद है की तु मेरे रब का
नाम नहीं लेता और अपने बूतों से भी बेेवफाई नहीं कर सकता, तो तु मेरा क्या
लगता है ? अगर मेरे रब को नहीं मानता पर में तो खाना उस रब के नाम
खिलाऊगा खाता है तो ठीक वरना तेरी मर्जी ..!!!
वो हज़रत ईब्राहीम अलैहिस्सलाम के दस्तरख़्वान से उठकर चल पडा ..! वो गया
तो जिब्रईल अलैहिस्सलाम हाजिर हुए और सलाम दिया संदेशा सुनाया..!!
अल्लाह तआला फरमाते है :- ” ऐ मेरे ख़लील तुने मेरा एक बंन्दा नाराज कर दिया
” ..!
या अल्लाह ! वो तेरा बंदा था ..?
वो तो तेरा नाम लेना गवारा नहीं करता था, और तु फरमा रहा है कि वो मेरा
बंदा था ?
इरशाद हुआ :- ऐ ईब्राहीम ! बताओ उसकी उम्र कितनी होगी ?
या अल्लाह 80 साल के करीब होगी..!
फरमाया :- इतना अर्सा हो गया ना ! मे उसको रिज्क़ दे रहा हूं..!! तुम एक दिन न
खीला सके ?
अब हज़रत ईब्राहीम अलैहिस्सलाम उसको ढ़ूढने निकले वो दूर पगोडा तर पहुंच गया
था..! उसे पुकारा और फरमाया ” खाना ठंडा हो रहा है जल्दी आओ ”
उसने कहा एक शर्त है..! तुम्हारे रब का नाम नहीं लूंगा
फरमाया :- ” ना लेना ”
कहने लगा लहजे में इतनी नर्मी कैसे आ गई ? तुम तो कहते थे रब के नाम के सिवा
खिलाऊंगा नहीं ..!!
फरमाया :- ” ऊसी रब का ही तो पैगाम आया है ” की में भी तो इसको इतने
साल से खिला रहा हूं तुम एक दिन न खिला सके ?
उसने कहां :- ” तेरा रब इतना अच्छा है तो खाना बाद में पहले उस रब का मुझे
गुलाम बना दे ”
सबक :- वो रब है सबका ..! तो हमारा हक़ बनता है की हम उस एक रब की ईबादत
करे..!
अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है : – अपने रब की ईबादत करो एक तो वो
( अल्लाह ) तुम्हारा रब है और उसने तुम्हें पैदा भी किया |
कितनी शान है अल्लाह की उसने तख़्लिक भी कीया और फिर तर्बियत भी
की..! जो तख़्लिक करे औऱ फिर हमारी तर्बियत भी करे..! तो क्या रब का हक़
नहीं है कि अल्लाह के आगे सज्दा किया जाए ..?
माँ – बाप के इतने हक़ क्यू है ? इसलिए की मां ने बेटे या बेटी को जन्म दिया..!
तो जिसने जन्म दिया है उसके इतने हक़ है..! तो जिस रब ने ख़लक किया है उसके
कितने हक़ होगें ?
वो रब है जो तुम्हें पैदा करने वाल है..! मां के पेट के अंदर कौन नक्श बनात है ?
किसने गोश्त के लूथडे को बोलना सिखाया है ? किसने सर के अंदर दिमाग रख
दिया है ? किसने हाथों को पकडने की कुवव्त दी ? कान को सुन ने कि ताकत
दी, वो कौन है जिसने इन्सान को सब से बेहतर मख़लूक बनाया ?
ऐ इन्सान..!! क्या तेरा हक़ है ? जब तु मस्जिद के पास से गुज़र जाए और मस्जिद से
अवाज आ रही हो ” आजा नेकी की तरफ आजा नमाज की तरफ ” और तु उसको
सुनने के बाव जूद वहा से गुज़र जाए ? ये बद नसीबी नहीं तो और क्या है ?
• अल्लाह तआला हमें अपनी इबादत की तौफिक नसीब फरमाये •
आमीन

Aafreen Seikh is an Software Engineering graduate from India,Kolkata i am professional blogger loves creating and writing blogs about islam.
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