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शब-ए-बारात दो शब्दों, शब[1] और बारात [2]से मिलकर बना है, जहाँ शब का अर्थ रात होता है वहीं बारात का मतलब बरी होना होता है। इस्लामी उर्दू कैलेंडर के अनुसार यह रात साल में एक बार शाबान महीने की 14 तारीख के सूरज डूबने के बाद शुरू होती है। मुसलमानों के लिए यह रात बेहद फज़ीलत वाली रात मानी जाती है, इस दिन विश्व के सारे मुसलमान अल्लाह की इबादत करते हैं। वे अल्लाह से दुआएं मांगते हैं,और अपने गुनाहों की तौबा करते हैं।[4]

शब-ए-बारात की रात हम मुस्लमान क्यों मानते हैं|

शब्-ए -बरात की रात में अल्लाह के बन्दे अपने अल्लाह से यही दुआ करते है की हमरे किये गए गुनाहों को माफ़ कर दे, शब्-ए -बरात की रात को ही हमरे किये गए खतायें, ग़ुनाहों का फ़ैसला होता है और कई सरे अल्लाह अपने बन्दों को दोज़ख/ज़ह्नुम से आज़ाद भी कर देता है,इसी वजह से अल्लाह के बन्दे शब्-ए-बरात वाले दिन रात भर जागकर अल्लाह की इबादत करते है|

शब-ए-बारात की रातमें क्या पढ़ा जाता है| 

इस रात को की जाने वाली हर जायज दुआ को अल्लाह जरूर कुबूल करते हैं, इस पूरी रात लोगों पर अल्लाह की रहमतें बरसती हैं. इसीलिए मुस्लिम के लोग रात भर जागकर नमाज और कुरान पढ़ते हैं.

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