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*29 – सूरए अंन्कबूत- तीसरा रूकू*
और वो जिन्होंने मेरी आयतों और मेरे मिलने को न माना (1)

(1) यानी कु़रआन शरीफ़ और मरने के बाद ज़िन्दा किये जाने पर ईमान न लाए वो हैं जिन्हें मेरी रहमत की आस नहीं और उनके लिये दर्दनाक अज़ाब है (2){23}

(2) इस नसीहत के बाद फिर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के वाक़ए का बयान फ़रमाया जाता है कि जब आपने अपनी क़ौम को ईमान की दावत दी और तर्क क़ायम किये और नसीहतें फ़रमाई.तो उसकी क़ौम को कुछ जवाब बन न आया मगर ये बोले उन्हें क़त्ल कर दो या जला दो (3)

(3) यह उन्होंने आपस में एक दूसरे से कहा या सरदारों ने अपने अनुयाइयों से. बहरहाल कुछ कहने वाले थे, कुछ उस पर राज़ी होने वाले थे, सब सहमत. इसलिये वो सब क़ायल लोगों के हुक्म में हैं तो अल्लाह ने उसे

(4)(4) यानी हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को, जबकि उनकी क़ौम ने आग में डाला आग से बचा लिया

(5)(5) उस आग को ठण्डा करके और हज़रत इब्राहीम के लिये सलामती बनाकर.बेशक उसमें ज़रूर निशानियाँ हैं ईमान वालों के लिये

(6){24}(6) अजीब अजीब निशानियाँ आग का इस बहुतात के बावुजूद असर न करना और ठण्डा हो जाना और उसकी जगह गुलशन पैदा हो जाना और यह सब पल भर से भी कम में होना और इब्राहीम ने

(7)(7)अपनी क़ौम से.फ़रमाया तुम ने तो अल्लाह के सिवा ये बुत बना लिये हैं जिनमें तुम्हारी दोस्ती यह दुनिया की ज़िन्दगी तक है

(8)(8) फिर टूट जाएगी और आख़िरत में कुछ काम न आएगी.फिर क़यामत के दिन तुम में एक दूसरे के साथ कुफ़्र करेगा और एक दूसरे पर लानत डालेगा

(9)(9)बुत अपने पुजारियों से बेज़ार होंगे और सरदार अपने मानने वालों से और मानने वाले सरदारों पर लअनत करेंगे और तुम सब का ठिकाना जहन्नम है

(10)(10) बुतों का भी और पुजारियों का भी. उनमें सरदारों का भी और उनके फ़रमाँबरदारों का भी.और तुम्हारा कोई मददगार नहीं

(11){25}(11) जो तुम्हें अज़ाब से बचाए. और जब हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम आग से सलामत निकले और उसने आपको कोई हानि न पहुंचाई तो लूत उस पर ईमान लाया

(12)(12) यानी हज़रत लूत अलैहिस्सलाम ने यह चमत्कार देखकर आपकी रिसालत की तस्दीक़ की. आप हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के सबसे पहले तस्दीक़ करने वाले हैं. ईमान से रिसालत की तस्दीक़ ही मुराद है क्योंकि अस्ल तौहीद का अक़ीदा तो उन्हें हमेशा से हासिल है इसलिये कि नबी हमेशा ही ईमान वाले होते हैं और कुफ़्र का उनके साथ किसी हाल में तसव्वुर नहीं किया जा सकता.और इब्राहीम ने कहा मैं

(13)(13) अपनी क़ौम को छोड़ कर.अपने रब की तरफ़ हिजरत करता हूँ

(14)(14) जहाँ उसका हुक्म हो.चुनांन्चे आपने ईराक़ प्रदेश से शाम की तरफ़ हिजरत की. इस हिजरत में आपके साथ आपकी बीबी सारा और हज़रत लूत अलैहिस्सलाम थे.बेशक वही इज़्ज़त व हिकमत (बोध) वाला है {26} और हमने उसे

15)(15) हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम के बाद इस्हाक़ और यअक़ूब अता फ़रमाए और हमने उसकी औलाद में नबुव्वत

(16)(16) कि हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के बाद जितने नबी हुए सब आपकी नस्ल से हुए.और किताब रखी

(17)(17) किताब से तौरात इन्जील, ज़ुबूर और क़ुरआन शरीफ़ मुराद हैं.और हमने दुनिया में उसका सवाब उसे अता फ़रमाया

(18)(18) कि पाक सन्तान अता फ़रमाई. पैग़म्बरी उनकी नस्ल में रखी, किताबें उन पैग़म्बरों को अता कीं जो उनकी औलाद में हैं और उनको सृष्टि में सबका प्यारा और चहीता किया कि सारी क़ौमें और दीन वाले उनसे महब्बत रखते हैं और उनकी तरफ़ अपनी निस्बत पर गर्व करते हैं और उनके लिये संसार के अन्त तक दुरूद मुक़र्रर कर दिया. यह तो वह है जो दुनिया में अता फ़रमाया.और बेशक आख़िरत में वह हमारे ख़ास समीपता के हक़दारों में है

(19){27}(19) जिनके लिये बड़े ऊंचे दर्जे हैं.और लूत को निजात दी जब उसने अपनी क़ौम से फ़रमाया तुम बेशक बेहयाई का काम करते हो कि तुमसे पहले दुनिया भर में किसी ने न किया

(20){28}(20)इस बेहयाई की व्याख्या इससे अगली आयत में बयान होती है.क्या तुम मर्दों से बुरा काम करते हो और राह मारते हो

(21)(21) राहगीरों को क़त्ल करके, उनके माल लूट कर, और यह भी कहा गया है कि वो लोग मुसाफ़िरों के साथ बुरा काम करते थे यहाँ तक कि लोगों ने उस तरफ़ से गुज़रना भी बन्द कर दिया था और अपनी मजलिस (बैठक) में बुरी बात करते हो

(22)(22) जो समझदारी के ऐतिबार से बुरा और मना है जैसे गाली देना, बुरी बातें कहना, ताली और सीटी बजाना, एक दूसरे के कंकरियाँ मारना, रास्ता चलने वालों पर पत्थर वग़ैरह फैंकना, शराब पीना, हंसी उड़ाना, गन्दी बातें करना, एक दूसरे पर थूकना वग़ैरह नीच कर्म जिनकी क़ौमे लूत आदी थी. हज़रत लूत अलैहिस्सलाम ने इसपर उनको मलामत की.तो उसकी क़ौम का कुछ जवाब न हुआ मगर यह कि बोले हम पर अल्लाह का अज़ाब लाओ अगर तुम सच्चे हो

(23){29}(23) इस बात में कि ये बुरे काम हैं और ऐसा करने वाले पर अज़ाब उतरेगा. यह उन्होंने हंसी के अन्दाज़ में कहा. जब हज़रत लूत अलैहिस्सलाम को उस क़ौम के सीधी राह पर आने की कुछ उम्मीद न रही तो आपने अल्लाह की बारगाह में अर्ज़ की ऐ मेरे रब मेरी मदद कर

(24)(24) अज़ाब उतारने के बारे में मेरी बात पूरी करके इन फ़सादी लोगों पर

(25){30}(25) अल्लाह तआला ने आपकी दुआ क़ुबूल फ़रमाई.

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