सूरए अनआम चौदहवाँ रूकू
अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला
आठवाँ पारा- वलौ-अन्नना (सूरए अनआम जारी) चौदहवाँ रूकू और अगर हम उनकी तरफ़ फ़रिश्ते उतारते (1) और उनसे मुर्दे बातें करते और हम हर चीज़ उनके सामने उठा लाते जब भी वो ईमान लाने वाले न थे (2)
मगर यह कि ख़ुदा चाहता (3) मगर उनमें बहुत निरे जाहिल हैं (4) (111) और इसी तरह हमने हर नबी के दुश्मन किये हैं आदमियों और जिन्नों में के शैतान कि उनमें से एक दूसरे पर छुपवां डालता है बनावट की बात (5) धोखे को और तुम्हारा रब चाहता तो वो ऐसा न करते (6) तो उन्हें उनकी बनावटों पर छोड़ दो (7) (112) और इसलिये कि उस (8) की तरफ़ उनके दिल झुकें जिन्हें आख़िरत पर ईमान नहीं और उसे पसन्द करें और गुनाह कमाएं जो उन्हें गुनाह कमाना है (113) तो क्या अल्लाह के सिवा मैं किसी और का फ़ैसला चाहूँ और वही है जिसने तुम्हारी तरफ़ मुफ़स्सल (विस्तार से) किताब उतारी (9) और जिनको हमने किताब दी वो जानते हैं कि यह तेरे रब की तरफ़ से सच उतरा है (10) तो ऐ सुनने वाले तू कभी शक वालों में न हो (114) और पूरी है तेरे रब की बात सच और इन्साफ़ में उसकी बातों का कोई बदलने वाला नहीं (11) और वही है सुनता जानता (115) और ऐ सुनने वाले ज़मीन में अक्सर वो हैं कि तू उनके कहे पे चले तो तुझे अल्लाह की राह से बहकादें, वो सिर्फ़ गुमान के पीछे हैं (12) और निरी अटकलें दौड़ाते हैं (13)(116) तेरा रब ख़ूब जानता है कि कौन बहका उसकी राह से और ख़ूब जानता है हिदायत वालों को (117) तो खाओ उसमें से जिसपर अल्लाह का नाम लिया गया (14) अगर तुम उसकी आयतें मानते हो (118) और तुम्हें क्या हुआ कि उसमें से न खाओ जिस (15) पर अल्लाह का नाम लिया गया वह तुम से मुफ़स्सल (स्पष्ट) बयान कर चुका जो कुछ तुमपर हराम हुआ (16) मगर जब तुम्हें उससे मजबूरी हो (17) और बेशक बहुतेरे अपनी ख़्वाहिशों से गुमराह करते हैं बे जाने, बेशक तेरा रब हद से बढ़ने वालों को ख़ूब जानता है (119) और छोड़दो खुला और छुपा गुनाह, वो जो गुनाह कमाते हैं जल्द ही अपनी कमाई की सज़ा पाएंगे (120) और उसे न खाओ जिस पर अल्लाह का नाम न लिया गया (18) और वह बेशक नाफ़रमानी है, और बेशक शैतान अपने दोस्तों के दिलों में डालते हैं कि तुम से झगड़ें और अगर तुम उनका कहना मानो (19) तो उस वक़्त तुम मुश्रिक हो (20)(121)
तफसीर सूरए अनआम चौदहवाँ रूकू
(1) इब्ने जरीर का क़ौल है कि यह आयत हंसी बनाने वाले क़ुरैश के बारे में उतरी, उन्होंने सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से कहा था कि ऐ मुहम्मद, आप हमारे मुर्दों को उठा लाइये, हम उनसे पूछ लें कि आप जो कहते हैं वह सच है या नहीं. और हमें फ़रिश्ते दिखाइये जो आपके रसूल होने की गवाही दें या अल्लाह और फ़रिश्तों को हमारे सामने लाइये, इसके जवाब में यह आयत उतरी. (2) वो सख़्त दिल वाले हैं. (3) उसकी मर्ज़ी जो होती है वही होता है. जो उसके इल्म में ख़ुशनसीब हैं वो ईमान से माला माल होते हैं. (4) नहीं जानते कि ये लोग वो निशानियाँ बल्कि इससे भी ज़्यादा देखकर ईमान लाने वाले नहीं. (जुमल व मदारिक)(5) यानी वसवसे और छलकपट की बातें बहकाने के लिये.
(6) लेकिन अल्लाह तआला अपने बन्दों में से जिसे चाहता है परीक्षा में डालता है ताकि उसके मेहनत पर सब्र करने से ज़ाहिर हो जाए कि यह बड़े सवाब पाने वाला है.
(7) अल्लाह उन्हें बदला देगा, रूस्वा करेगा और आपकी मदद फ़रमाएगा. (8) बनावट की बात. (9) यानी क़ुरआन शरीफ़ जिसमें अच्छे कामों का हुक्म, बुरे कामों से दूर रहने के आदेश, सवाब के वादे, अज़ाब की चेतावनी, सच और झूट का फ़ैसला और मेरी सच्चाई की गवाही और तुम्हारे झूटे इल्ज़ामों का बयान है. सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से मुश्रिक कहा करते थे कि आप हमारे और अपने बीच एक मध्यस्थ मुक़र्रर कर लीजिये. उनके जवाब में यह आयत उतरी. (10) क्योंकि उनके पास इसकी दलीलें हैं. (11) न कोई उसके निश्चय को बदलने वाला, न हुक्म को रद करने वाला, न उसका वादा झूठा हो सके. कुछ मुफ़स्सिरों ने फ़रमाया कि कलाम जब सम्पूर्ण है तो उसमें दोष या तबदीली हो ही नहीं सकती और वह क़यामत तक हर क़िस्म के रद्दोंबदल से मेहफ़ूज़ है. कुछ मुफ़स्सिर फ़रमाते हैं मानी ये हैं कि किसी की क़ुदरत नहीं कि क़ुरआने पाक में तहरीफ़ यानी रद्दोबदल कर सके क्योंकि अल्लाह तआला ने इसकी हिफ़ाज़त की ज़मानत अपने करम के ज़िम्मे ले ली है. (तफ़सीरे अबू सऊद) (12) अपने जाहिल और गुमराह बाप दादा का अनुकरण करते है, दूरदृष्टि और सच्चाई को पहचानने से मेहरूम हैं. (13) कि यह हलाल है और यह हराम और अटकल से कोई चीज़ हलाल हराम नहीं हो जाती जिसे अल्लाह और उसके रसूल ने हलाल किया वह हलाल, और जिसे हराम किया वह हराम. (14) यानी जो अल्लाह के नाम पर ज़िब्ह किया गया, न वह जो अपनी मौत मरा या बुतों के नाम पर ज़िब्ह किया गया, वह हराम है. हलाल होना अल्लाह के नाम पर ज़िब्ह होने से जुड़ा हुआ है. यह मुश्रिकों के उस ऐतिराज़ का जवाब है जो उन्होंने मुसलमानों पर किया था तुम अपना क़त्ल किया हुआ खाते हो और अल्लाह का मारा हुआ यानी जो अपनी मौत मरे, उसको हराम जानते हो. (15) ज़बीहा.
(16) इससे साबित हुआ कि हराम चीज़ों का तफ़सील से ज़िक्र होता है और हराम होने के सुबूत के लिये हराम किये जाने का हुक्म दरकार है और जिस चीज़ पर शरीअत में हराम होने का हुक्म न हो वह मुबाह यानी हलाल है. (17) तो बहुत ही मजबूरी की हालत में या अगर जान जाने का ख़ौफ़ है तो जान बचाने भर की ज़रूरत के लिये जायज़ है.(18) ज़िब्ह के वक़्त. चाहे इस तरह कि वह जानवर अपनी मौत मर गया हो या इस तरह कि उसको बग़ैर बिस्मिल्लाह के या ग़ैर ख़ुदा के नाम पर ज़िब्ह किया गया हो, ये सब हराम हैं. लेकिन जहाँ मुसलमान ज़िब्ह करने वाला ज़िब्ह के वक़्त “बिस्मिल्लाहे अल्लाहो अकबर” कहना भूल गया, वह ज़िब्ह जायज़ है.
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