हज़रत यूसुफ़ علیہ السلام का एक दोस्त बड़ी मुद्दत के बाद मिला..वो बड़े मुल्कों की सैर और तजुर्बा हासिल कर आया था- हज़रत के सामने उसने बहरो बर के तमाम अजायब व गरायब बयान किए- जब बातें हो चुकीं तो आपने फ़रमाया कि:
“मेरे लिए तुम क्या सौग़ात लाए हो…?”
वो बोला:
“आप दीनों दुनियां के बादशाह… मैं आपके लिए क्या तोहफा लाता…क़तरा दरिया के पास और ज़र्रा सहरा के पास क्या हदिया पेश कर सकता है-“
अय मेरे सिद्दीक़ यूसुफ आपका हुस्नो जमाल लासानी है-
हर एक उसकी दीद से बहरावर होता है- मगर आप खुद उसका मुशाहिदा नहीं कर सकते- मैं एक ऐसी चीज़ लाया हूं जिससे आप अपने हुस्न का नज़ारा कर सकेंगे-
ये कहकर उसने आईना निकाल कर हज़रत यूसुफ़ के सामने कर दिया- आप अपने हुस्न का जल्वा देखकर गिर पड़े- बीबी ज़ुलैख़ा ने सुना तो कहा:
“अब तू मेरी क़द्र पहचानेगा..तू आशिकों के दर्द को जानेगा..तू तो कहा करता था सौदाई मुझे… मैं नज़र आती थी दीवानी तुझे…अब पता तुझ को लगा अय बेखबर…….. हुस्न का होता है क्या दिल पर असर…!!”
(کتاب ’’حکایاتِ رومی:مثنوی معنوی مولانا جلال الدین رومیؒ)
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