आप सल्लल्लाहु अलैहि व् सल्लन अपशब्द बेहयाई व् बेशर्मी से दूर थे,
बाजार में कभी आप ज़ोर से न बोलते,बुराई का बदला बुराई से न देते बल्कि क्षमा कर देते, आप ने कभी किसी सेवक या औरत पर पर हाथ नहीं उठाया, कभी किसी पर ज़ुल्म ज़्यादती नहीं की ,
दो चीज़े सामने होती तो आसान चीज़ को पसंद फरमाते ,
जब प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व् सल्लम घर पर होते तो साधारण इंसान की तरह रेहते, बकरी का दूध डोह लेते ,अपने कपडे साफ कर लेते, अपने सारे काम खुद ही कर लेते,
आप अपनी ज़बान सुरक्षित रखते बे फायदा चीजो में अपनी ज़बान न चलाते,
लोगों को हिम्मत देते दिलासा देते,
किसी कोम या धर्म का प्रतिश्ठित व्यक्ति आता तो उसको सम्मान देते,
अपने साथियों के हालात की पूरी खबर रखते, लोगो की खेरखबर लेते रेहते,
अच्छी बात की अच्छी बयान करते और उसे सशकत बनाते, बुरी बात की बुराई बयां फरमाते और उसको कमज़ोर करते,
हक़ बात केहने में आगे पीछे न होते,
आप सल्लल्लाहु अलैहि व् सल्लम को सबसे ज़्यादा वो आदमी पसंद था जो दूसरे के गम में साथ दे किसी के काम आये,
हरेक की बात ध्यान से सुनते और जबतक वो अपनी बात पूरी न करता आप उठते नहीं थे,
आप सल्लल्लाहु की बैठक में कोई ज़ोर से न बोलता न किसी की बुराई की जाती, न किसी की आघात पोहचाया जाता,और न किसी की कमजोरियो का प्रचार किया जाता,
सबके साथ बराबरी का मामला होता,
बड़ो का आदर छोटो से मुहब्बत सिखाई जाती,
यात्रियों की सुरक्षा करते और उनकी सुख सुविधा का पूरा ध्यान रखते,
” प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व् सल्लम का सत्संग ज्ञान ,भक्ति, हया,और शर्म ध्येय व् अमानतदारी का सत्संग था “
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