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*39 सूरए ज़ुमर -चौथा रूकू*

तो उससे बढ़कर ज़ालिम कौन जो अल्लाह पर झूट बांधे (1)(1) और उसके लिये शरीक और औलाद क़रार दे और हक़ (सत्य) को झुटलाए (2)(2) यानी क़ुरआन शरीफ़ को या रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की रिसालत को.जब उसके पास आए, क्या जहन्नम में काफ़िरों का ठिकाना नहीं {32} और वो जो यह सच लेकर […]

*39 सूरए ज़ुमर – पाँचवां रूकू*

अल्लाह जानों को वफ़ात देता है उनकी मौत के वक़्त और जो न मरें उन्हें उनके सोते में. फिर जिस पर मौत का हुक्म फ़रमा दिया उसे रोक रखता है (1)(1) यानी उस जान को उसके जिस्म की तरफ़ वापस नहीं करता और दूसरी (2)(2) जिसकी मौत मुक़द्दर नहीं फ़रमाई, उसको एक निश्चित मीआद तक […]

*40 सूरए मूमिन-पहला रूकू*

अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला (1)(1)सूरए मूमिन का नाम सूरए ग़ाफ़िर भी है. यह सूरत मक्के में उतरी सिवाय दो आयतों के जो “अल्लज़ीना युजादिलूना फ़ी आयातिल्लाहे” से शुरू होती हैं. इस सूरत में नौ रूकू, पचासी आयतें, एक हज़ार एक सौ निनानवे कलिमे और चार हज़ार नौ सौ साठ […]