ऐ ईमान वालो (1)(1) नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का अदब और आदर करो और कोई ऐसा काम न करना जो उनके दुख का कारण हो, और उन जैसे न होना जिन्हों ने मूसा को सताया (2)(2) यानी उन बनी इस्राईल की तरह न होना जो नंगे नहाते थे. और हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम पर तअना करते थे कि हज़रत हमारे साथ क्यों नहीं नहाते. उन्हें सफ़ेद दाग़ वग़ैरह की कोई बीमारी जान पड़ती है. तो अल्लाह ने उसे बरी फ़रमा दिया उस बात से जो उन्होंने कही (3)(3) इस तरह कि जब एक दिन हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने नहाने के लिये एक एकान्त की जगह में पत्थर पर कपड़े उतार कर रखे और नहाना शुरू किया, तो पत्थर आपके कपड़े ले भागा. आप कपड़े लेने के लिये उसकी तरफ़ बढ़े तो बनी इस्राईल ने देख लिया कि बदने मुबारक पर कोई दाग़ और कोई ऐब नहीं है. और मूसा अल्लाह के यहाँ आबरू वाला है (4) {69}(4) शान वाले, बुज़ुर्गी वाले और दुआ की क़ुबूलियत वाले. ऐ ईमान वालो अल्लाह से डरो और सीधी बात कहो (5){70}(5) यानी सच्ची और दुरूस्त, हक़ और इन्साफ़ की, और अपनी ज़बान और बोल की हिफ़ाज़त रखो. यह भलाइयों की जड़ है. ऐसा करोगे तो अल्लाह तआला तुमपर करम फ़रमाएगा. और तुम्हारे अअमाल (कर्म) तुम्हारे लिये संवार देगा (6)(6) तुम्हें नेकियों की रूचि देगा और तुम्हारी फ़रमाँबरदारीयाँ क़ुबूल फ़रमाएगा. और तुम्हारे, गुनाह बख़्श देगा, और जो अल्लाह और उसके रसूल की फ़रमाँबरदारी करे उसने बड़ी कामयाबी पाई {71} बेशक हमने अमानत पेश फ़रमाई (7)(7) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि अमानत से मुराद फ़रमाँबरदारी और कर्तव्य निष्ठा है. जिन्हें अल्लाह तआला ने अपने बन्दों पर पेश किया, उन्हें आसमानों और ज़मीनों और पहाड़ों पर पेश किया था कि अगर वो उन्हें अदा करेंगे तो सवाब दिये जाएंगे, नहीं अदा करेंगे तो अज़ाब किये जाएंगे. हज़रत इब्ने मसऊद रदियल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया कि अमानत नमाज़ें अदा करना, ज़कात देना, रमज़ान के रोज़े रखना, ख़ानए काबा का हज, सच बोलना, नाप तौल में और लोगों के साथ व्यवहार में इन्साफ़ करना है. कुछ ने कहा कि अमानत से मुराद वो तमाम चीज़ें हैं जिनका हुक्म दिया गया है और जिनसे मना फ़रमाया गया है. हज़रत अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस ने फ़रमाया कि तमाम अंग, कान हाथ और पाँव वग़ैरह सब अमानत हैं. उसका ईमान ही क्या जो अमानतदार न हो. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि अमानत से मुराद लोगों के हुक़ूक़ और एहदों को पूरा करना है. तो हर ईमान वाले पर फ़र्ज़ है कि न किसी मूमिन की ख़यानत करे न काफ़िर से किया गया एहद तोड़े, न कम न ज़्यादा. अल्लाह तआला ने यह अमानत आसमानों ज़मीनों और पहाड़ों पर पेश फ़रमाई फिर उनसे फ़रमाया क्या तुम इन अमानतों को उनकी जिम्मेदारियों के साथ उठाओगे. उन्होंने अर्ज़ किया ज़िम्मेदारी क्या है. फ़रमाया यह कि अगर तुम उन्हें अच्छी तरह अदा करो तो तुम्हें इनाम दिया जाएगा. उन्होंने अर्ज़ किया नहीं ऐ रब, हम तेरे हुक्म के मुतीअ हैं न सवाब चाहें न अज़ाब और उनका यह अर्ज़ करना ख़ौफ़ और दहशत की वजह से था. और अमानत पेश करके उन्हें इख़्तियार दिया गया था कि अपने क़ुव्वत और हिम्मत पाएं तो उठाएं वरना मजबूरी ज़ाहिर कर दें, उसका उठाना लाज़िम नहीं किया गया था और अगर लाज़िम किया जाता तो वो इन्कार न करते. आसमानों और ज़मीन और पहाड़ों पर तो उन्होंने उसके उठाने से इन्कार किया और उससे डर गए (8)
(8) कि अगर अदा न कर सके तो अज़ाब किये जाएंगे. तो अल्लाह तआला ने वह अमानत हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के सामने पेश की और फ़रमाया कि मैं ने आसमानों और ज़मीनों और पहाड़ों पर पेश की थी वो न उठा सके तो क्या तू इसको ज़िम्मेदारी के साथ उठा सकेगा. हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने इक़रार किया. और आदमी ने उठा ली, बेशक वह अपनी जान को मशक़्क़त (परिश्रम) में डालने वाला बड़ा नादान है {72} ताकि अल्लाह अज़ाब दे मुनाफ़िक़ (दोग़ले) मर्दों और मुनाफ़िक़ औरतों और मुश्रिक मर्दो और मुश्रिक औरतों को (9)(9) कहा गया है कि मानी ये हैं कि हमने अमानत पेश की ताकि मुनाफ़िक़ों की दोहरी प्रवृत्ति, मुश्रिकों का शिर्क ज़ाहिर हो और अल्लाह तआला उन्हें अज़ाब फ़रमाए और ईमान वाले, जो अमानत के अदा करने वाले हैं उनके ईमान का इज़हार हो और अल्लाह तआला उनकी तौबह क़ुबूल फ़रमाए और उनपर रहमत और मग़फ़िरत करे, अगरचे उनसे कुछ ताअतों में कुछ कमी भी हुई हो.(ख़ाज़िन) और अल्लाह तौबह क़ुबूल फ़रमाए मुसलमान मर्दों और मुसलमान औरतों की और अल्लाह बख़्शने वाला मेहरबान है {73}
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