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अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला (1)
(1) सूरए सबा मक्का में उतरी सिवाय आयत “व यरल्लज़ीना ऊतुल इल्मो” (आयत -6). इसमें छ रूकू चौवन आयतें, आठ सौ, तैंतीस कलिमे और एक हज़ार पाँच सौ बारह अक्षर हैं. सब ख़ूबियाँ अल्लाह को कि उसी का माल है जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में (2)(2) यानी हर चीज़ का मालिक, ख़ालिक़ और हाकिम अल्लाह तआला है और हर नेअमत उसी की तरफ़ है तो वही तारीफ़, प्रशंसा और स्तुति के लायक़ है. और आख़िरत में उसी की तारीफ़ है (3)(3) यानी जैसा दुनिया में प्रशंसा का मुस्तहिक़ अल्लाह तआला है वैसा ही आख़िरत में भी हम्द का मुस्तहिक़ वही है क्योंकि दोनों जगत उसी की नेअमतों से भरे हुए हैं. दुनिया में तो बन्दों पर उसकी प्रशंसा और स्तुति वाजिब है क्योंकि यह दारूल तकलीफ़ हैं. और आख़िरत में जन्नत वाले नेअमतें की ख़ुशी और राहतों की प्रसन्नता में उसकी प्रशंसा करेंगे. और वही है हिकमत (बोध) वाला ख़बरदार {1} जानता है जो कुछ ज़मीन में जाता है (4)(4) यानी ज़मीन के अन्दर दाख़िल होता है जैसे कि बारिश का पानी और मुर्दे और दफ़ीने. और जो ज़मीन से निकलता है (5)(5) जैसे कि सब्ज़ा और दरख़्त और चश्मे और खानें और हश्र के वक़्त मुर्दे. और जो आसमान से उतरता है (6)(6) जैसे कि बारिश, बर्फ़, औले और तरह तरह की बरकतें और फ़रिश्ते. और जो उसमें चढ़ता है (7)(7) जैसे कि फ़रिश्ते, दुआएं और बन्दों के कर्म. और वही है मेहरबान बख़्शने वाला {2} और काफ़िर बोले हम पर क़यामत न आएगी (8)(8) यानी उन्होंने क़यामत के आने का इन्कार किया. तुम फ़रमाओ क्यों नहीं मेरे रब की क़सम बेशक ज़रूर तुम पर आएगी ग़ैब जानने वाला (9)(9) यानी मेरा रब ग़ैब का जानने वाला है उससे कोई चीज़ छुपी नहीं, तो क़यामत का आना और उसके क़ायम होने का वक़्त भी उसके इल्म में है.
उससे ग़ायब नहीं ज़र्रा भर कोई चीज़ आसमानों में और न ज़मीन में और न उससे छोटी और न बड़ी मगर एक साफ़ बताने वाली किताब में है (10){3}(10) यानी लौहे मेहफ़ूज़ में.
ताकि सिला दे उन्हें जो ईमान लाए और अच्छे काम किये, ये हैं जिनके लिये बख़्शिश है और इज़्ज़त की रोज़ी (11) {4}(11) जन्नत में. और जिन्होंने हमारी आयतों में हराने की कोशिश की (12)(12) और उनमें तअने करके और उनको शायरी और जादू वग़ैरह बता कर लोगों को उनसे रोकना चाहा. (इसका अधिक बयान इसी सूरत के आख़िरी रूकू पाँच में आएगा.)
उनके लिये सख़्त अज़ाब दर्दनाक में से अज़ाब है {5} और जिन्हें इल्म मिला (13)(13) यानी रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के सहाबा या किताब वालों के ईमान वाले, जैसे अब्दुल्लाह बिन सलाम और उनके साथियों. वो जानते हैं कि जो कुछ तुम्हारी तरफ़ रब के पास से उतरा (14)(14) यानी क़ुरआने मजीद. वही हक़ (सत्य) है और इज़्ज़त वाले सब ख़ूबियों सराहे की राह बताता है {6} और काफ़िर बोले (15)
(15) यानी काफ़िरों ने आपस में आश्चर्य चकित होकर कहा.
क्या हम तुम्हें ऐसा मर्द बता दें (16)(16) यानी सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम. जो तुम्हें ख़बर दे कि जब तुम पूर्जा होकर बिल्कुल रेज़ा रेज़ा (कण कण) हो जाओ तो फिर तुम्हें नया बनना है {7} क्या अल्लाह पर उसने झूट बांधा या उसे सौदा (पागलपन) है (17)(17) जो वो ऐसी अजीबो ग़रीब बातें कहते है।. अल्लाह तआला ने काफ़िरों के इस क़ौल का रद फ़रमाया कि ये दोनों बातें नहीं. हुज़ूर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम इन दोनों से पाक है. बल्कि वो जो आख़िरत पर ईमान नहीं लाते (18)(18) यानी काफ़िर, मरने के बाद उठाए जाने और हिसाब का इन्कार करने वाले. अज़ाब और दूर की गुमराह में है {8} तो क्या उन्होंने न देखा जो उनके आगे और पीछे है आसमान और ज़मीन (19)(19) यानी क्या वो अन्धे हैं कि उन्हों ने आसमान व ज़मीन की तरफ़ नज़र ही नहीं डाली और अपने आगे पीछे देखा ही नहीं जो उन्हें मालूम होता कि वो हर तरफ़ से घेरे में हैं और ज़मीन व आसमान के दायरे या घेरे से बाहर नहीं जा सकते और अल्लाह की सल्तनत से नहीं नि कल सकते और उन्हें भागने की कोई जगह नहीं. उन्हों ने आयतों और रसूल को झुटलाया और इन्कार के भयानक जुर्म को करते हुए ख़ौफ़ न ख़ाया और अपनी इस हालत का ख़याल करके न डरे. हम चाहें तो उन्हें (20) उनका झुटलाना और इन्कार की सज़ाएं क़ारून की तरह. ज़मीन में धंसा दें या उनपर आसामान का टुकड़ा गिरा दे, बेशक उसमें (21)(21) नज़र और फ़िक्र, दृष्टि और सोच.
निशानी है हर रूजू लाने वाले बन्दे के लिये (22){9}(22) जो प्रमाण है कि अल्लाह तआला मरने के बाद दोबारा उठाने और इसका करने वाले के अज़ाब पर और हर चीज़ पर क़ादिर है.

As-salam-o-alaikum my selfshaheel Khan from india , Kolkatamiss Aafreen invite me to write in islamic blog i am very thankful to her. i am try to my best share with you about islam.
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