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*34 सूरए सबा- दूसरा रूकू*
और बेशक हमने दाऊद को अपना बड़ा फ़ज़्ल (कृपा) दिया

(1)(1) यानी नबुव्वत और किताब, और कहा गया है कि मुल्क और एक क़ौल यह है कि सौंदर्य वग़ैरह तमाम चीज़ें जो आपको विशेषता के साथ अता फ़रमाई गई, और अल्लाह तआला ने पहाड़ों और पक्षियों को हुक्म दिया.ऐ पहाड़ों उस के साथ अल्लाह की तरफ़ रूजू करो और ऐ परिन्दो

(2)(2) जब वो तस्बीह करें, उनके साथ तस्बीह करो. चुनांन्चे जब हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम तस्बीह करते तो पहाड़ों से भी तस्बीह सुनी जाती थी और पक्षी झुक आते, यह आपका चमत्कार था.और हमने उसके लिये लोहा नर्म किया

(3){10}(3) कि आपके मुबारक हाथ में आकर मोम या गूंधे आटे की तरह नर्म हो जाता हो और आप उससे जो चाहते बग़ैर आग और बिना ठोँके पीटे बना लेते. इसका कारण यह बयान किया गया है कि जब आप बनी इस्राईल के बादशाह हुए तो आपका तरीक़ा यह था कि आप लोगों के हालात की खोज में इस तरह निकलते कि वो आपको पहचानें नहीं और जब कोई मिलता और आपको न पहचानता तो उससे आप पूछते कि दाऊद कैसा व्यक्ति है. सब लोग तारीफ़ करते. अल्लाह तआला ने एक फ़रिश्ता इन्सान की सूरत भेजा. हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम ने अपनी आदत के अनुसार उससे भी यही सवाल किया तो फ़रिश्ते ने कहा कि दाऊद हैं तो बहुत अच्छे, काश उनमें एक ख़सलत न होती. इसपर आप चौकन्ने हुए और फ़रमाया ऐ ख़ुदा के बन्दे कौन सी ख़सलत ? उसने कहा कि वह अपना और अपने घर वालों का खर्च बेतुलमाल यानी सरकारी ख़ज़ाने से लेते हैं यह सुनकर आपके ख़याल में आया कि अगर आप बैतूल माल से वज़ीफ़ा न लेते तो ज़्यादा बेहतर होता. इसलिये आपने अल्लाह की बारगाह में दुआ की कि उनके लिये कोई ऐसा साधन कर दे जिससे आप अपने घर वालों का गुज़ारा करें और शाही ख़ज़ाने से आपको बेनियाज़ी हो जाए. आपकी यह दुआ क़ुबूल हुई और अल्लाह तआला ने आपके लिये लौहे को नर्म कर दिया और आपको ज़िरह बनाने का इल्म दिया. सबसे पहले ज़िरह बनाने वाले आप ही हैं. आप रोज़ एक ज़िरह बनाते थे. वह चार हज़ार की बिकती थी. उसमें से अपने और घर वालों पर भी ख़्रर्च फ़रमाते और फ़क़ीरों और दरिद्रों पर भी सदक़ा करते. इसका बयान आयत में है, अल्लाह तआला फ़रमाता है कि हमने दाऊद के लिये लोहा नर्म करके उनसे फ़रमाया.कि वसीअ (बड़ी) ज़िरहें बना और बनाने में अन्दाज़े का लिहाज़ रख

(4)(4) कि उसके छल्ले एक से और मध्यम हो, न बहुत तंग न बहुत चौड़े और तुम सब नेकी करो, बेशक मैं तुम्हारे काम देख रहा हूँ {11} और सुलैमान के बस में हवा कर दी उसकी सुब्ह की मंज़िल एक महीने की राह और शाम की मंज़िल एक महीने की राह

(5)(5) चुनांन्चे आप सुब्ह को दमिश्क़ से रवाना होते तो दोपहर को खाने के बाद का आराम उस्तख़ूर में फ़रमाते जो फ़ारस प्रदेश में है और दमिश्क़ से एक महीने की राह पर और शाम को उस्तख़ूर से रवाना होते तो रात को काबुल में आराम फरमाते, यह भी तेज़ सवार के लिये एक माह का रस्ता है और हमने उसके लिये पिघले हुए तांबे का चश्मा बहाया

(6)(6) जो तीन रोज़ यमन प्रदेश में पानी की तरह जारी रहा और एक क़ौल् यह है कि हर माह में तीन रोज़ जारी रहता और एक क़ौल यह है कि अल्लाह तआला ने हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम के लिये तांबे को पिघला दिया जैसा कि हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम के लिये लौहे को नर्म किया था.और जिन्नों में से वो जो उसके आगे काम करते उसके रब के हुक्म से

(7)(7) हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि अल्लाह तआला ने हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम के लिये जिन्नों को मुतीअ किया.और उनमें जो हमारे हुक्म से फिरे

(8)(8) और हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम की फ़रमाँबरदारी न करे.हम उसे भड़कती आग का अज़ाब चखाएंगे {12} उसके लिये बनाते जो वह चाहता ऊंचे ऊंचे महल

(9)(9) और आलीशान इमारतें और मस्जिदें, और उन्हीं में से बैतुल मक़दिस भी है.और तस्वीरें

(10)(10) दरिन्दों और पक्षियों वग़ैरह की तांबे और बिल्लौर और पत्थर वग़ैरह से, और उस शरीअत में तस्वीरें बनाना हराम न था और बड़े हौज़ों के बराबर लगन

(11)(11) इतने बड़े कि एक लगन में हज़ार हज़ार आदमी खाते.और लंगरदार देंगे

(12)(12) जो अपने पायों पर क़ायम थीं और बहुत बड़ी थीं, यहाँ तक कि अपनी जगह से हटाई नहीं जा सकती थी. सीढियाँ लगाकर उनपर चढ़ते थे. ये यमन में थीं. अल्लाह तआला फ़रमाता है कि हमने फ़रमाया कि ऐ दाऊद वालो शुक्र करो

(13)(13) अल्लाह तआला का उन नेअमतों पर जो उसने तुम्हें अता फ़रमाई, उसकी फ़रमाँबरदारी करके और मेरे बन्दों में कम हैं शुक्र वाले {13} फिर जब हमने उस पर मौत का हुक्म भेजा

(14)(14) हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम ने अल्लाह की बारगाह में दुआ की थी कि उनकी वफ़ात का हाल जिन्नों पर ज़ाहिर न हो ताकि इन्सानों को मालूम हो जाए कि जिन्न ग़ैब नहीं जानते. फिर आप मेहराब में दाख़िल हुए और आदत के अनुसार नमाज़ के लिये अपनी लाठी पर टेक लगाकर खड़े हो गए. जिन्नात हस्बे दस्तूर अपने कामें में लगे रहे और समझते रहे कि हज़रत जिन्दा हैं. और हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम का लम्बे अर्से तक उसी हालत पर रहना उनके लिये कुछ आश्चर्य का कारण न हुआ क्योंकि वो अक्सर देखते थे कि आप एक माह दो माह और इससे ज़्यादा समय तक इबादत में मशग़ूल रहते हैं और आपकी नमाज़ लम्बी होती है यहाँ तक कि आपकी वफ़ात का पता न चला और अपनी ख़िदमतों में लगे रहे यहाँ तक कि अल्लाह के हुक्म से दीमक ने आपकी लाठी खा ली और आपका मुबारक जिस्म, जो लाठी के सहारे से क़ायम था, ज़मीन पर आ रहा. उस वक़्त जिन्नात को आपकी वफ़ात की जानकारी हुई.जिन्नों को उसकी मौत न बताई मगर ज़मीन की दीमक ने कि उसका असा खाती थी, फिर जब सुलैमान ज़मीन पर आया जिन्नों की हक़ीक़त खुल गई

(15)(15) कि वो ग़ैब नहीं जानते.अगर ग़ैब जानते होते

(16)(16) तो हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम की वफ़ात से सूचित होते.तो इस ख़्वारी के अज़ाब में न होते

(17){14}(17) और एक साल तक इमारत के कामों में कठिन परिश्रम न करते रहते.रिवायत है कि हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम ने बैतुल मक़दिस की नीव उस स्थान पर रखी थी जहाँ हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का ख़ैमा लगाया गया था. इस इमारत के पूरा होने से पहले हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम की वफ़ात का वक़्त आ गया तो आपने अपने सुपुत्र हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम को इसके पूरा करने की वसीयत फ़रमाई. चुनांन्चे आपने शैतानों को इसके पूरा करने का हुक्म दिया. जब आपकी वफ़ात का वक़्त क़रीब पहुंचा तो आपने दुआ की कि आपकी वफ़ात शैतानों पर ज़ाहिर न हो ताकि वो इमारत के पूरा होने तक काम में लगे रहे और उन्हें जो इल्मे ग़ैब का दावा है वह झूठा हो जाए. हज़रत सुलैमान अलैहिस्सलाम की उम्र शरीफ़ तिरपन साल की हुई. तेरह साल की उम्र में आप तख़्त पर जलवा अफ़रोज़ हुए, चालीस साल राज किया बेशक सबा

(18)(18) सबा अरब का एक क़बीला है जो अपने दादा के नाम से मशहूर है और वह दादा सबा बिन यशजब बिन यअरब बिन क़हतान हैं.के लिये उनकी आबादी में

(19)(19) जो यमन की सीमाओं में स्थित थी.निशानी थी

(20)(20) अल्लाह तआला की वहदानियत और क़ुदरत पर दलील लाने वाली और वह निशानी क्या थी इसका आगे बयान होता है.दो बाग़ दाएं और बाएं

(21)(21) यानी उनकी घाटी के दाएं और बाएं दूर तक चले गए और उनसे कहा गया था.अपने रब का रिज़्क़ खाओ

(22)(22) बाग़ इतने अधिक फलदार थे कि जब कोई व्यक्ति सर पर टोकरा लिये गुज़रता तो बग़ैर हाथ लगाए तरह तरह के मेवों से उसका टोकरा भर जाता और उसका शुक्र अदा करो

(23)(23) यानी इस नेअमत पर उसकी ताअत बजा लाओ- पाकीज़ा शहर और

(24)(24) अच्छी जलवायु, साफ़ सुथरी ज़मीन, न उसमें मच्छर, न मक्खी, न खटमल, न साँप, न बिच्छू, हवा की पाकीज़गी ऐसी कि अगर कहीं और का कोई व्यक्ति इस शहर में गुज़र जाए और उसके कपड़ों में जुएं हों तो सब मर जाएं. हज़रत इब्ने अब्बास रदियल्लाहो अन्हुमा ने फ़रमाया कि सबा शहर सनआ से तीन फ़रसंग के फ़ासले पर था.बख़्शने वाला रब

(25) {15}(25) यानी अगर तुम रब की रोज़ी पर शुक्र करो और ताअत बजा लाओ तो वह बख़्शिश फ़रमाने वाला है.तो उन्हों ने मुंह फेरा

(26)(26)उसकी शुक्रगुज़ारी से और नबियों को झुटलाया. वहब का क़ौल है कि अल्लाह तआला ने उनकी तरफ़ तेरह नबी भेजे जिन्होंने उनको सच्चाई की तरफ़ बुलाया और अल्लाह तआला की नेअमतें याद दिलाई और उसके अज़ाब से डराया मगर वो ईमान न लाए और उन्होंने नबियों को झुटलाया और कहा कि हम नहीं जानते कि हम पर ख़ुदा की कोई भी नेअमत हो. तुम अपने रब से कह दो कि उस से हो सके तो वो इन नेअमतों को रोक ले.तो हमने उनपर ज़ोर का अहला (सैलाब) भेजा

(27)(27) बड़ी बाढ़ जिससे उनके बाग़,अमवाल, सब डूब गए और उनके मकान रेत में दफ़्न हो गए और इस तरह तबाह हुए कि उनकी तबाही अरब के लिये कहावत बन गई.और उनके बाग़ों के एवज़ दो बाग़ उन्हें बदल दिये जिन में बकटा मेवा

(28)(28) अत्यन्त बुरे मज़े का.और झाऊ और थोड़ी सी बेरियां

(29) {16}(29) जैसी वीरानों में जम आती हैं. इस तरह की झाड़ियों और भयानक जंगल को जो उनके सुन्दर बाग़ों की जगह पैदा हो गया था. उपमा के तौर पर बाग़ फ़रमाया हमने उन्हें यह बदला दिया उनकी नाशुक्री

(30)(30) और उनके कुफ्र.की सज़ा, और हम किसे सज़ा देते हैं उसी को जो नाशुक्रा है {17} और हमने किये थे उनमें (31)(31)यानी सबा शहर में और उन शहरों में जिन में हमने बरकत रखी

(32)(32) कि वहाँ रहने वालों को बहुत सी नेअमतें और पानी और दरख़्त और चश्मे इनायत किये. उन से मुराद शाम के शहर हैं.सरे राह कितने शहर

(33)(33) क़रीब क़रीब,सबा से शाम तक के सफ़र करने वालों को उस राह में तोशे और पानी साथ लेजाने की ज़रूरत न होती.और उन्हें मंज़िल के अन्दाज़े पर रखा

(34)(34) कि चलने वाला एक जगह से सुबह चले तो दोपहर को एक आबादी में पहुंच जाए जहाँ ज़रूरत के सारे सामान हों और जब दोपहर को चले तो शाम को एक शहर में पहुंच जाए.यमन से शाम तक का सारा सफ़र इसी आसायश के साथ तय हो सके और हमने उनसे कहा कि उनमें चलो रातों और दिनों अम्न व अमान से

(35) {18}(35) न रातों में कोई खटका, न दिनों में कोई तकलीफ़. न दुश्मन का अन्देशा, न भूख प्यास का ग़म, मालदारों में हसद पैदा हुआ कि हमारे और ग़रीबों के बीच कोई फ़र्क़ ही न रहा, क़रीब क़रीब की मंज़िलें हैं, लोग धीमे हवा खोरी करते चले आते है. थोड़ी देर के बाद दूसरी आबादी आ जाती है. वहाँ आराम करते हैं, न सफ़र में थकन है, न कोफ़्त, अगर मंज़िलें दूर होतीं, सफ़र की मुद्दत लम्बी होती, राह में पानी न मिलता, जंगलों और बयाबानों में गुज़र होता, तो हम तोशा साथ लेते, पानी का प्रबन्ध करते, सवारियाँ और सेवक साथ रखते, सफ़र का मज़ा आता और अमीर ग़रीब का फर्क़ ज़ाहिर होता. यह ख़्याल करके उन्होंने कहा.तो बोले ऐ हमारे रब हमारे सफ़र में दूरी डाल

(36)(36) यानी हमारे और शाम के बीच जंगल और बयाबान कर दे कि बग़ैर तोशे और सवारी के सफ़र न हो सके.और उन्होंने ख़ुद अपना ही नुक़सान किया तो हमने उन्हें कहानियां कर दिया

(37)(37) बाद वालों के लिये कि उन के हालात से इब्रत हासिल करें.और उन्हें पूरी परेशानी से परागन्दा कर दिया

(38)(38) क़बीला क़बीला बिखर गया, वो बस्तियाँ डूब गई और लोग बेघर होकर अलग अलग शहरों में पहुंचे. ग़स्सान शाम में और अज़ल अम्मान में और ख़ुज़ाजह तिहामा में और आले ख़ुज़ैमह इराक़ में और औस ख़जरिज का दादा अम्र बिन आमिर मदीने में.बेशक उसमें ज़रूर निशानियां हैं हर बड़े सब्र वाले हर बड़े शुक्र वाले के लिये

(39){19)(39) और सब्र और शुक्र मूमिन की सिफ़त है कि जब वह बला में गिरफ़्तार होता है, सब्र करता है और जब नेअमत पाता है, शुक्र बजा लाता है.और बेशक इबलीस ने उन्हें अपना गुमान सच कर दिखाया

(40)(40) यानी इब्लीस जो गुमान रखता था कि बनी आदम को वह शहवत, लालच और ग़ज़ब के ज़रीये गुमराह कर देगा. यह गुमान उसने सबा प्रदेश वालों पर बल्कि सारे काफ़िरों पर सच्चा कर दिखाया कि वो उसके मानने वाले हो गए और उसकी फ़रमाँबरदारी करने लगे. हसन रदियल्लाहो अन्हो ने फ़रमाया कि शैतान ने ना किसी पर तलवार खींची ना किसी पर कोड़े मारे, झूटे वादों और बातिल आशाओ से झूट वालों को गुमराह कर दिया.तो वो उसके पीछे हो लिये मगर एक गिरोह कि मुसलमान था

(41){20}(41) उन्होंने उसका अनुकरण न किया.और शैतान का उनपर

(42)(42) जिनके हक़ में उसका गुमान पूरा हुआ.कुछ क़ाबू न था मगर इसलिये कि हम दिखा दें कि कौन आख़िरत पर ईमान लाता है और कौन इससे शक में है, और तुम्हारा रब हर चीज़ पर निगहबान है {21}

Asalam-o-alaikum , Hi i am noor saba from Jharkhand ranchi i am very passionate about blogging and websites. i loves creating and writing blogs hope you will like my post khuda hafeez Dua me yaad rakhna.
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