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तो उससे बढ़कर ज़ालिम कौन जो अल्लाह पर झूट बांधे

(1)(1) और उसके लिये शरीक और औलाद क़रार दे और हक़ (सत्य) को झुटलाए

(2)(2) यानी क़ुरआन शरीफ़ को या रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की रिसालत को.जब उसके पास आए, क्या जहन्नम में काफ़िरों का ठिकाना नहीं {32} और वो जो यह सच लेकर तशरीफ़ लाए

(3)(3) यानी रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम, जो तौहीदे इलाही लाए.और वो जिन्होंने उनकी तस्दीक़ (पुष्टि) की

(4)(4) यानी हज़रत अबू बक्र रदियल्लाहो अन्हो या सारे मूमिन लोग यही डर वाले हैं {33} उनके लिये है जो वो चाहें अपने रब के पास, नेकों का यही सिला है {34} ताकि अल्लाह उनसे उतार दे बुरे से बुरा काम जो उन्होंने किया और उन्हें उनके सवाब का सिला दे अच्छे से अच्छे काम पर

(5)(5) यानी उन की बुराईयों पर पकड़ न करे और नेकियों की बेहतरीन जज़ा अता फ़रमाए.जो वो करते थे {35} क्या अल्लाह अपने बन्दों को काफ़ी नहीं

(6),(6) यानी सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के लिये, और एक क़िरअत में “इबादहू” भी आया है. उस सूरत में नबी अलैहमुस्सलाम मुराद हैं, जिन के साथ उनकी क़ौम ने ईज़ा रसानी के इरादे किये. अल्लाह तआला ने उन्हें दुश्मनों की शरारत से मेहफ़ूज़ रखा और उनकी मदद फ़रमाई.और तुम्हें डराते हैं उसके सिवा औरों से

(7)(7) यानी बुतों से, वाक़िआ यह था कि अरब के काफ़िरों ने नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम को डराना चाहा और आपसे कहा कि आप हमारे मअबूदों यानी बुतों की बुराइयाँ बयान करने से बाज़ आइये वरना वो आप को नुक़सान पहुंचाएंगे,हलाक कर देंगे, या अक़्ल को ख़राब कर देंगे.और जिसे अल्लाह गुमराह करे उसकी कोई हिदायत करने वाला नहीं {36} और जिसे अल्लाह हिदायत दे उसे कोई बहकाने वाला नहीं, क्या अल्लाह इज़्ज़त वाला बदला लेने वाला नहीं?(8){37}

(8) बेशक वह अपने दुश्मनों से बदला लेता है.और अगर तुम उनसे पूछो आसमान और ज़मीन किसने बनाए? तो ज़रूर कहेंगे अल्लाह ने(9),(9) यानी ये मुश्रिक लोग हिकमत, क़ुदरत और इल्म वाले ख़ुदा की हस्ती को तो मानते हैं और यह बात तमाम ख़ल्क़ के नज़्दीक़ मुसल्लम है और ख़ल्क़ की फ़ितरत इसकी गवाह है और जो व्यक्ति आसमान और ज़मीन के चमत्कारों में नज़र करे उसको यक़ीनी तौर पर मालूम हो जाता है कि ये मौजूदात एक क़ादिर हकीम की बनाई हुई हैं. अल्लाह तआला अपने नबी अलैहिस्सलाम को हुक्म देता है कि आप इन मुश्रिकों पर हुज्जत क़ायम कीजिये चुनांन्चे फ़रमाता है.तुम फ़रमाओ भला बताओ तो वो जिन्हें तुम अल्लाह के सिवा पूजते हो

(10)(10) यानी बुतों को, यह भी तो देखो कि वो कुछ भी क़ुदरत रखते हैं और किसी काम भी आ सकते हैं.अगर अल्लाह मुझे कोई तकलीफ़ पहुंचाना चाहे

(11)(11) किसी तरह की बीमारी की या दुष्काल की या नादारी की या और कोई.तो क्या वो उसकी भेजी तकलीफ़ टाल देंगे या वह मुझ पर मेहर (रहम) फ़रमाना चाहे तो क्या वो उसकी मेहर को रोक रखेंगे

(12)(12) जब नबीये करीम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने मुश्रिकों से यह सवाल फ़रमाया तो वो लाजवाब हुए और साकित रह गए अब हुज्जत तमाम हो गई और उनकी इस ख़ामोशी वाली सहमति से साबित हो गया कि बुत मात्र बेक़ुदरत हैं, न कोई नफ़ा पहुंचा सकते हैं, न कुछ हानि, उनको पूजना निरी जिहालत है. इसलिये अल्लाह तआला ने अपने हबीब सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम से इरशाद फ़रमाया तुम फ़रमाओ अल्लाह मुझे बस है

(13),(13) मेरा उसी पर भरोसा है और जिसका अल्लाह तआला हो वह किसी से भी नहीं डरता. तुम जो मुझे बुत जैसी बेक़ुदरत व बेइख़्तियार चीज़ों से डराते हो, यह तुम्हारी बहुत ही मूर्खता और जिहालत है भरोसे वाले उस पर भरोसा करें {38} तुम फ़रमाओ ऐ मेरी क़ौम अपनी जगह काम किये जाओ

(14)(14)और जो जो छलकपट और बहाने तुम से हो सकें, मेरी दुश्मनी में सब ही कर गुज़रो.मैं अपना काम करता हूँ

(15)(15) जिसपर मामूर हूँ, यानी दीन का क़ायम करना और अल्लाह तआला मेरा मददगार है और उसी पर मेरा भरोसा है.तो आगे जान जाओगे {39} किस पर आता है वह अज़ाब कि उसे रूस्वा करेगा

(16)(16) चुनांन्चे बद्र के दिन वो रूस्वाई के अज़ाब में जकड़े गए.और किस पर उतरता है अज़ाब कि रह पड़ेगा

(17){40}(17) यानी हमेशा होगा और वह जहन्नम का अज़ाब है.बेशक हमने तुम पर यह किताब लोगों की हिदायत को, हक़ के साथ उतारी (18)(18)ताकि उससे हिदायत हासिल करें.तो जिसने राह पाई तो अपने भले को

(19),(19)कि इस राह पाने का नफ़ा वही पाएगा और जो बहका वह अपने ही बुरे को बहका

(20)(20) उसकी गुमराही का ज़रर और वबाल उसी पर पड़ेगा.और तुम कुछ उनके ज़िम्मेदार नहीं (21){41}

(21) तुम से उनके गुनाहों की पकड़ न की जाएगी.

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