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अल्लाह के नाम से शुरू जो बहुत मेहरबान रहमत वाला (1)(1) सूरए मुम्तहिनह मदनी है इसमें दो रूकू, तेरह आयतें, तीन सौ अड़तालीस कलिमें, एक हज़ार पाँच सौ दस अक्षर हैं. ऐ ईमान वालो! मेरे और अपने दुशमनों को दोस्त न बनाओ (2)(2) यानी काफ़िरों को. बनी हाशिम के ख़ानदान की एक बाँदी सारह मदीनए तैय्यिबह में सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम के हुज़ूर में हाज़िर हुई जबकि हुज़ूर मक्के की फ़त्ह का सामान फ़रमा रहे थे. हुज़ूर ने उससे फ़रमाया क्या तू मुसलमान होकर आई हैं? उसने कहा, नहीं फ़रमाया, क्या हिजरत करके आई? अर्ज़ किया, नहीं. फ़रमाया, फिर क्यों आई? उसने कहा, मोहताजी से तंग होकर. बनी अब्दुल मुत्तलिब ने उसकी इमदाद की. कपड़े बनाए, सामान दिया. हातिब बिन अबी बलतह रदियल्लाहो अन्हो उससे मिले. उन्होंने उसको दस दीनार दिये, एक चादर दी और एक ख़त मक्के वालों के पास उसकी मअरिफ़त भेजा जिसका मज़मून यह था कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम तुम पर हमले का इरादा रखते हैं, तुम से अपने बचाव की जो तदबीर हो सके करो. सारह यह ख़त लेकर रवाना हो गई. अल्लाह तआला ने अपने हबीब को इसकी ख़बर दी. हुज़ूर ने अपने कुछ सहाबा को, जिनमें हज़रत अली मुर्तज़ा रदियल्लाहो अन्हो भी थे, घोड़ों पर रवाना किया और फ़रमाया मक़ामे रौज़ा ख़ाख़ पर तुम्हें एक मुसाफ़िर औरत मिलेगी, उसके पास हातिब बिन अबी बलतअह का ख़त है जो मक्के वालों के नाम लिखा गया है. वह ख़त उससे ले लो और उसको छोड़ दो. अगर इन्कार करे तो उसकी गर्दन मार दो. ये हज़रात रवाना हुए और औरत को ठीक उसी जगह पर पाया जहाँ हुज़ूर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने फ़रमाया था. उससे ख़त माँगा. वह इन्कार कर गई और क़सम खा गई. सहाबा ने वापसी का इरादा किया. हज़रत अली मुर्तज़ा रदियल्लाहो अन्हो ने क़सम खाकर फ़रमाया कि सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की ख़बर ग़लत हो ही नहीं सकती और तलवार खींच कर औरत से फ़रमाया या ख़त निकाल या गर्दन रख. जब उसने देखा कि हज़रत बिल्कुल क़त्ल करने को तैयार हैं तो अपने जुड़े में से ख़त निकाला. हुज़ूर सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने हज़रत हातिब को बुलाकर फ़रमाया कि ऐ हातिब इसका क्या कारण. उन्होंने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम मैं जब से इस्लाम लाया कभी मैंने कुफ़्र न किया और जब से हुज़ूर की नियाज़मन्दी मयस्सर आई कभी हुज़ूर की ख़यानत न की और जब से मक्के वालों को छोड़ा कभी उनकी महब्बन न आई लेकिन वाक़िआ यह है कि मैं क़ुरैश में रहता था और उनकी क़ौम से न था मेरे सिवा और जो मुहाजिर हैं उनके मक्कए मुकर्रमा में रिश्तेदार हैं जो उनके घरबार की निगरानी करते हैं. मुझे अपने घरवालों का अन्देशा था इसलिये मैंने यह चाहा कि मैं मक्के वालों पर कुछ एहसान रखूँ ताकि वो मेरे घरवालों को न सताएं और मैं यक़ीन से जानता हूँ कि अल्लाह तआला मक्के वालों पर अज़ाब उतारने वाला है मेरा ख़त उन्हें बचा न सकेगा. सैयदे आलम सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम ने उनका यह उज़्र क़ुबूल फ़रमाया और उनकी तस्दीक़ की. हज़रत उमर रदियल्लाहो अन्हो ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह सल्लल्लाहो अलैका वसल्लम मुझे इजाज़त दीजिये इस मुनाफ़िक़ की गर्दन मार दूँ. हुज़ूर ने फ़रमाया ऐ उमर अल्लाह तआला ख़बरदार है जब ही उसने बद्र वालों के हक़ में फ़रमाया कि जो चाहो करो मैंने तुम्हें बख़्श दिया. यह सुनकर हज़रत उमर रदियल्लाहो अन्हो के आँसू जारी हो गए और ये आयतें उतरीं..तुम उन्हें ख़बरें पहुंचाते हो दोस्ती से हालांकि वो मुन्किर हैं उस हक़ के जो तुम्हारे पास आया (3)(3) यानी इस्लाम और क़ुरआन. घर से अलग करते हैं (4)(4) यानी मक्कए मुकर्रमा से. रसूल को और तुम्हें इस पर कि तुम अपने रब अल्लाह पर ईमान लाए अगर तुम निकले हो मेरी राह में जिहाद करने और मेरी रज़ा चाहने को, तो उनसे दोस्ती न करो तुम उन्हें ख़ुफ़िया संदेश महब्बत का भेजते हो और मैं ख़ूब जानता हूँ जो तुम छुपाओ और जो ज़ाहिर करो, और तुम में जो ऐसा करे बेशक वह सीधी राह से बहका {1} अगर तुम्हें पाएं (5)(5) यानी अगर काफ़िर तुम पर मौक़ा पा जाएं. तो तुम्हारे दुश्मन होंगे और तुम्हारी तरफ़ अपने हाथ (6)(6) ज़र्ब (हमला) और क़त्ल के साथ. और अपनी ज़बानें (7)(7) ज़ुल्म अत्याचार और बुराई के साथ दराज़ करेंगे और उनकी तमन्ना है कि किसी तरह तुम काफ़िर हो जाओ (8){2}(8) तो ऐसे लोगों को दोस्त बनाया और उनसे भलाई की उम्मीद रखना और उनकी दुश्मनी से ग़ाफ़िल रहना हरगिज़ न चाहिये. हरगिज़ काम न आएंगे तुम्हें तुम्हारे रिश्ते और न तुम्हारी औलाद (9)(9) जिनकी वजह से तुम काफ़िरों से दोस्ती और मेलजोल करते हो. क़यामत के दिन तुम्हें उनसे अलग कर देगा (10)(10) कि फ़रमाँबरदार जन्नत में होंगे और काफ़िर नाफ़रमान जहन्नम में. और अल्लाह तुम्हारे काम देख रहा है {3} बेशक तुम्हारे लिये अच्छी पैरवी थी (11)
(11) हज़रत हातिब रदियल्लाहो अन्हो और दूसरे मूमिनों को ख़िताब है और सब को हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का अनुकरण करने का हुक्म है कि दीन के मामले रिश्तेदारों के साथ उनका तरीक़ा इख़्तियार करें. इब्राहीम और उसके साथ वालों में (12)(12) साथ वालों से ईमान वाले मुराद हैं. जब उन्होंने अपनी क़ौम से कहा (13)(13) जो मुश्रिक थी. बेशक हम बेज़ार हैं तुम से और उनसे जिन्हें अल्लाह के सिवा पूजते हो, हम तुम्हारे इन्कारी हुए (14)(14) और हमने तुम्हारे दीन की मुख़ालिफ़त इख़्तियार की. और हम में और तुम में दुश्मनी और अदावत ज़ाहिर हो गई हमेशा के लिये जब तक तुम एक अल्लाह पर ईमान न लाओ मगर इब्राहीम का अपने बाप से कहना कि मैं ज़रूर तेरी मग़फ़िरत चाहूंगा (15)(15) यह अनुकरण के क़ाबिल नहीं है क्योंकि वह एक वादे की बिना पर था और जब हज़रत इब्राहीम को ज़ाहिर हो गया कि वो कुफ़्र पर अटल है तो आपने उससे बेज़ारी की लिहाज़ा यह किसी के लिये जायज़ नहीं कि अपने बेईमान रिश्तेदार के लिये माफ़ी की दुआ करे. और मैं अल्लाह के सामने तेरे किसी नफ़े का मालिक नहीं (16)(16) अगर तू उसकी नाफ़रमानी करे और शिर्क पर क़ायम रहे.{ख़ाज़िन} ऐ हमारे रब ! हमने तुझी पर भरोसा किया और तेरी ही तरफ़ रूजू लाए और तेरी ही तरफ़ फिरना है (17){4}(17) यह भी हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की और उन मूमिनों की दुआ है जो आपके साथ थे और माक़व्ल इस्तस्ना के साथ जुड़ा हुआ है लिहाज़ा मूमिनों को इस दुआ में हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम का अनुकरण करना चाहिये. ऐ हमारे रब ! हमें काफ़िरों की आज़माइश में न डाल (18)
(18) उन्हें हम पर ग़लबा न दे कि वो अपने आपको सच्चाई पर गुमान करने लगें. और हमें बख़्श दे ऐ हमारे रब, बेशक तू ही इज़्ज़त व हिकमत वाला है {5} बेशक तुम्हारे लिये (19)(19) ऐ हबीबे ख़ुदा मुहम्मदे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की उम्मत. उनमें अच्छी पैरवी थी (20)(20) यानी हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम और उनके साथ वालों में. उसे जो अल्लाह और पिछले दिन का उम्मीदवार हो (21)(21) अल्लाह तआला की रहमत और सवाब और आख़िरत की राहत का तालिब हो और अल्लाह के अज़ाब से डरे. और जो मुंह फेरे (22) तो बेशक अल्लाह ही बेनियाज़ है सब ख़ूबियों सराहा {6}(22) ईमान से और काफ़िरों से दोस्ती करे.

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