तुम काफ़िरों से फ़रमाओ अगर वो बाज़ रहे तो जो हो गुज़रा वह उन्हें माफ़ कर दिया जाएगा
(1) और अगर फिर वही करें तो अगलों का दस्तूर (तरीक़ा) गुज़र चुका
(2){38} और अगर उनसे लड़ो यहाँ तक कि कोई फ़साद
(3) बाक़ी न रहे और सारा दीन अल्लाह का होजाए फिर अगर वो बाज़ रहें तो अल्लाह उनके काम देख रहा है {39} और अगर वो फिरें
(4) तो जान लो कि अल्लाह तुम्हारा मौला है
(5) तो क्या ही अच्छा मौला और क्या ही अच्छा मददगार {40} *दसवाँ पारा – वअलमू (सूरए अनफ़ाल जारी)* और जान लो कि जो कुछ ग़नीमत (युद्ध के बाद हाथ आया माल) लो
(6) तो उसका पांचवाँ हिस्सा ख़ास अल्लाह और रसूल और क़राबत (रिशतेदार) वालों और यतीमों और मोहताजों और मुसाफ़िरों का है
(7) अगर तुम ईमान लाए हो अल्लाह पर और उसपर जो हमने अपने बन्दे पर फ़ैसले के दिन उतारा जिसमें दोनों फ़ौजें मिली थीं
(8) और अल्लाह सब कुछ कर सकता है {41} जब तुम नाले के किनारे थे
(9) और काफ़िर परले किनारे और क़ाफ़िला
(10) तुमसे तराई में
(11) और अगर तुम आपस में कोई वादा करते तो ज़रूर वक़्त पर बराबर न पहुंचते
(12) लेकिन यह इसलिये कि अल्लाह पूरा करे जो काम होना है
(13) कि जो हलाक हो दलील से हलाक हो
(14) और जो जिये दलील से जिये
(15) और बेशक अल्लाह ज़रूर सुनता है {42} जब कि ऐ मेहबूब अल्लाह तुम्हें काफ़िरों को तुम्हारे ख़्वाब में थोड़ा दिखाता था
(16) और ऐ मुसलमानो अगर वह तुम्हें बहुत करके दिखाता तो ज़रूर तुम बुज़दिली करते और मामले में झगड़ा डालते
(17) मगर अल्लाह ने बचा लिया
(18)बेशक वह दिलों की बात जानता है {43} और जब लड़ते वक़्त
(19) तुम्हें करके दिखाए
(20)और तुम्हें उनकी निगाहों में थोड़ा किया
(21) कि अल्लाह पूरा करे जो काम होना है
(22) और अल्लाह की तरफ़ सब काम पलटने वाले हैं {44}
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