नमाज़ के फ़राइज़ में से एक फ़र्ज़ क़ियाम भी हैं, इसके कुछ मसाइल हैं!
*1-* कमी की जानिब क़ियाम की हद ये हैं कि हाथ बढ़ाए तो घुटनों तक न पहुंचे और पूरा क़ियाम ये हैं कि सीधा खड़ा हो!
*📗(दुर्रे मुख़्तार, रद्दुल मुह़तार, 2/163)*
*2-* क़ियाम इतनी देर तक हैं जितनी देर तक किराअ़त हैं! ब क़दरे किराअ़ते फ़र्ज़ क़ियाम भी फ़र्ज़, ब क़दरे वाजिब वाजिब और ब क़दरे सुन्नत सुन्नत!*📕(ऐज़न)*
*3-* फ़र्ज़, वित्र, ई़दैन और सुन्नते फ़ज्र में क़ियाम फ़र्ज़ हैं! अगर बिना शरई़ मजबूरी कोई ये नमाज़े बैठकर अदा करेगा तो नमाज़ नही होगी!*📔(ऐज़न)*
*4-* खड़े होने से सिर्फ़ कुछ तक्लीफ़ होना उज्र नही बल्कि क़ियाम उस वक़्त साक़ित होगा कि खड़ा न हो सके या सज्दा न कर सके या खड़ा होने या सज्दा करने में ज़ख़्म बहता हैं या खड़े होने में क़त़रा आता हैं या चौथाई सित्र खुलता हैं या किराअ़त से मजबूर महज़ हो जाता हैं!
यूं ही खड़ा हो सकता हैं मगर उससे मरज़ में ज़्यादती होती हैं या देर में अच्छा होगा या ना क़ाबिले बरदाश्त तक्लीफ़ होगी तो बैठकर पढ़े! *📙(नमाज़ के अह़काम, सफ़ह़ा-204)*
*5-* अगर अ़सा (या बैसाख़ी) ख़ादिम या दिवार पर टेक लगा कर खड़ा होना मुम्किन हैं तो फ़र्ज़ हैं कि खड़ा हो कर पढ़े!
*📘(नमाज़ के अह़काम, सफ़ह़ा-204)*
*6-* अगर सिर्फ़ इतना खड़ा होना मुम्किन हैं कि खड़े खड़े तक्बीरे तह़रीमा कह लेगा तो फ़र्ज़ हैं कि खड़ा होकर अल्लाहु अक्बर कहे और अब खड़ा रहना मुम्किन नही तो बैठ जाए!
*📓(नमाज़ के अह़काम, सफ़ह़ा-204)*
👉🏼ख़बरदार, कुछ लोग मामूली सी तक्लीफ़ (या ज़ख़्म की वजह से फ़र्ज़ नमाज़ें बैठकर पढ़ते हैं वो इस हुक्में शरई़ पर ग़ौर फ़रमाएं, जितनी नमाज़े कुदरते क़ियाम के बावुजूद बैठ कर अदा कि हो उनको लौटाना फ़र्ज़ हैं! इसी त़रह़ वैसे ही खड़े न रह सकते थे मगर अ़सा या दिवार या आदमी के सहारे खड़ा होना मुम्किन था मगर बैठ कर पढ़ते रहे तो उनकी भी नमाज़ें न हुई उन का लौटाना फ़र्ज़ हैं!
*📗(बहारे शरीअ़त, ह़िस्सा-3, सफ़ह़ा-64)*
👉🏼औ़रतों के लिए भी येही हुक्म हैं ये भी बग़ैर शरई़ इजाज़त के बैठकर नमाज़े नही पढ़ सकती!
*7-* खड़े होकर पढ़ने की कुदरत हो जब भी बैठ कर नफ़्ल पढ़ सकते हैं मगर खड़े होकर पढ़ना अफ़ज़ल हैं कि प्यारे आक़ा صَلَّى اللّٰهُ تَعَالٰى عَلَئهِ وَ اٰلِهٖ وَسَلَّم ने इर्शाद फ़रमाया:
🌹“बैठ कर पढ़ने वाले की नमाज़ खड़े होकर पढ़ने वाले की निस्फ़ (यानी आधा सवाब) हैं”!📕(सह़ीह़ मुस्लिम, 1/253)*
➡अलबत्ता उज्र की वजह से बैठकर पढ़े तो सवाब में कमी न होगी!
👉🏼ये जो आजकल रिवाज पड़ गया हैं कि नफ़्ल बैठ कर पढ़ा करते हैं, ब ज़ाहिर ऐसा मालूम होता हैं कि शायद बैठ कर पढ़ने को अफ़ज़ल समझते हैं अगर ऐसा हैं तो उनका ख़याल ग़लत हैं! *📔(बहारे शरीअ़त, 4/17)*
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*🔮💫💎 क़ियाम की सुन्नतें 💎💫🔮*
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*1-* मर्द नाफ़ के नीचे सीधे हाथ की हथेली उल्टे हाथ की कलाई के जोड़ पर, छुंग्लियां (छोटी उंग्ली) और अंगूठा कलाई के अग़ल बग़ल और बाक़ी उंग्लियां हाथ की कलाई की पुश्त पर रखे!📙(नमाज़ के अह़काम, सफ़ह़ा-222)*
*2-* पहले सना,
*3-* फिर तअ़व्वुज़
(यानी اَعُؤذُ بِاللَّهِ مِنَ اشَّيئطَنِ الرَّجِيئمِ)
*4-* फिर तस्मिया पढ़ना
(यानी بِسئمِ اللّهِ الرَّحئمَنِ الرَّحِيئمِ)
*5-* इन तीनो को एक दुसरे के फ़ौरन बाद कहना!
*6-* इन सबको आहिस्ता पढ़ना!
*📘(दुर्रे मुख़्तार, रद्दुल मुह़तार, 2/210)*
*7-* आमीन कहना!
*8-* आमीन भी आहिस्ता कहना!
*9-* तक्बीरे ऊला के फ़ौरन बाद सना पढ़ना!
*📓(ऐज़न)*
👉🏼(नमाज़ में तअव्वुज़ व तस्मिया किराअ़त के ताबेअ़ हैं और मुक़्तदी पर किराअ़त नही लिहाज़ा तअव्वुज़ व तस्मिया भी मुक़्तदी के लिए सुन्नत नही! हां, जिस मुक़्तदी की कोई रक्अ़त फ़ौत हो गई हो वो अपनी बाक़ी रक्अ़त अदा करते वक़्त इन दोनों को पढ़े)📗(अल हिदाया मअ़ फ़त्हुल क़दीर-1/253)*
*10-* तअव्वुज़ सिर्फ़ पहली रक्अ़त में हैं और
*11-* तस्मिया हर रक्अ़त के शुरू में सुन्नत हैं!
*📕(आ़लमगीरी-1/74)*
*12-* क़ियाम में औ़रतें उल्टी हथेली सीने पर छाती के नीचे रख कर उसके ऊपर सीधी हथेली रखें!(गुन्या, सफ़ह़ा-300)*
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*🔮💎 क़ियाम के मुस्तह़ब्बात 💎🔮*
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*1-* क़ियाम में दोनों पन्जों के दरमियान चार उंगल का फ़ासिला होना!📙(आ़लमगीरी-1/73)*
*2-* क़ियाम की ह़ालत में नज़र सज्दे की जगह रखना!
*📘(तन्वीरुल अब्सार मअ़ रद्दुल मुह़तार-2/214)*
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