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मस्जिद के बाहरी हिस्से में ऊँची जगह पर क़िबला की तरफ़ मुह करके खड़ा हो और कानों के सुराखों में कलिमा की उंगलियां डाल कर बुलन्द आवाज़ से अल्लाहु अक्बर अल्लाहु अक्सर कहे फिर ज़रा ठहर कर अल्लाहु अक्बर अल्लाहु अक्बर कहे । फिर ज़रा ठहर कर दो मर्तबा अश् – हदु अल – लाइला – ह इल्लल्लाह कहे । फिर दो मर्तबा ठहर ठहर कर अश् – हदु अन्-न मुहम्मदर् – रसूलुल्लाह कहे ।  फिर दाहिने तरफ मुंह फेर कर दो मर्तबा हय्य अ़लस्सलाह कहे । फिर बायें तरफ मुंह करके दो मर्तबा हय्य अल् ल फ़लाह कहे । फिर क़िबला को मुंह कर ले और अल्लाह अक्बर कहे । फिर एक मर्तबा ला इला – ह इल्लल्लाह कहे ।

मसला : – फ़ज्र की अज़ान में ‘हय्य अलल्फलाह के बाद दो मर्तबा अस्सलातु खैरुम् मिनन् नौम भी कहे कि मुस्तहब है । अज़ान के बाद पहले दुरूद शरीफ पढ़े फिर अज़ान पढ़ने वाला और अजान सुनने वाले सब यह दुआ पढ़ें –

अज़ान का जवाब : – जब अज़ान सुने तो अज़ान का जवाब देने का हुक्म हैं । अज़ान के जवाब का तरीका यह है कि अज़ान कहने वाला जो कलिमा कहे सुनने वाला भी वही कलिमा कहे । मगर हय अलस्सलाह और हय्य अल़ल्फलाह के जवाब में ला हौ – ल व ला कुव्वतः इल्ला बिल्लाह कहे । और बेहतर यह है कि दोनों कहे और फ़ज्र की अज़ान में अस्सलातु ख़ैरुम् मिनन् नौम के जवाब में सदक् – त व बरर्-त व बिल् – हक़्कि नतक् – त कहे ।

मसला – जब मुअज्जिन अश् – हदु अन् – न मुहम्मदर् – रसूलुल्लाह कहे तो सुनने वाला दुरूद शरीफ़ भी पढे । और मुस्तहब यह है कि अंगूठों को बोसा देकर आंखों से लगाये । और कहे ) ( रघुलमुहतार जि . 1 स . 268 मिस्र )

मसला : –  ख़ुतबा की अज़ान का जवाब ज़बान से देना मुकतदियों को जाइज नहीं । ( दुरै मुख्तार जि . 1 स . 268 )

मसला : – जुनुब भी अज़ान का जवाब दे । मसलाः – हैज़ व निफ़ास वाली औरत पर , जिमाअ़ में मश्ग़ूल होने वाले पर और पेशाब पाख़ाना करने वाले पर अज़ान का जवाब नहीं । ( दुरै मुख्तार स . 265 )

सलात पढ़ना : – अज़ान व इकामत . के दर्मियान में अस्सलातु वस्सलामु अलै – क या रसूलल्लाह या इस किस्म के दूसरे कलिमात नमाज़ के एलाने सानी के तौर पर बुलन्द आवाज़ से पुकारना जाइज़ बल्कि मुस्तहब है | इसको शरीअ़त की इस्तेलाह में तसवीब कहते हैं । और तसवीब मग़रिब के इलावा बाकी नमाजों में मुस्तहब है । तस्वीब के लिए कोई खास कलिमात शरीअ़त में मुकर्रर नहीं हैं । बल्कि उस शहर में जिन लफ़्जों के साथ तस्वीब कहते हों । ( आलमगीरी जि . 1 स . 53 ) उन लफ़्जों से तस्वीब कहना मुस्तहब है ।

इकामतः – इकामत अजान ही के मिस्ल है । मगर चन्द बातों में फर्क है । अजान के कलिमात ठहर ठहर कर कहे जाते हैं और इकामत के कलिमात को जल्द जल्द कहें । दर्मियान में सकता नकरें । इकामत में हय्य अलल् फलाह के बाद दो मर्तबा क़द् का- म – तिस्सलात भी कहे | अज़ान में आवाज़ बुलन्द करने का हुक्म है । मगर इकामत में आवाज़ बस इतनी ही ऊँची हो कि सब हाजिरीने मस्जिद तक आवाज़ पहुंच जाए । इकामत में कानों के अन्दर उंगलियां नहीं डाली जायेंगी । अज़ान मस्जिद के बाहर पढ़ने का हुक्म है । और इकामत मस्जिद के अन्दर पढ़ी जायेगी । मसला : – अगर इमाम ने इकामत कही तो क़द् का – म – तिस्सलात के वक़्त आगे बढ़ कर मुसल्ला पर चला जाये । ( दुर्गे मुख़्तार , रहुल मुहतार , गुनिया वगैरह ) इकामत में भी हय्य अलस्सलाह और हय्य अल – फ़लाह के वक़्त दाहिने बायें मुंह फेरे । ( दुरै मुख़्तार )

मसलाः – इकामत होते वक़्त कोई शख्स आया तो उसे खड़े होकर इन्तेजार करना मकरूह है । बल्कि उसको चाहिए कि बैठ जाये । और जब हय्य अलल् – फ़लाह कहा जाये उस वक़्त खड़ा हो । यूं ही जो लोग मस्जिद में मौजूद हैं वह इकामत के वक़्त बैठे रहें । जब हय्य अलल् – फ़लाह मुकब्बिर कहे उस वक़्त सब लोग खड़े हो । यही हुक्म इमाम के लिए भी है । ( आलमगीरी स . 53 ) आजकल अक्सर जगह तो यह भी होता है कि जब तक इमाम खड़ा न हो जाये उस वक़्त तक इकामत नहीं कही जाती । यह तरीका खिलाफे सुन्नत है । इस बारे में बहुत से रिसाले और फतावा भी छापे गए । मगर ज़िद और हट धर्मी का क्या इलाज ? खुदावन्दे करीम मुसलमानों को सुन्नत पर अमल की तौफीक बख्शे ।

मसला : – इकामत का जवाब देना मुस्तहब है । इकामत का जवाब भी  अजान ही के जवाब की तरह है । इतना फ़र्क है कि इकामत में कद का – मतिस्सलात के जवाब में अका – म – हल्लाहु व अदा – महा मा दा – मतिस्समावातु । ३ वल् – अर्ज कहे । ( आलमगीरी स . 54 )

Source:https://islamicbaaten.blogspot.com/2019/02/aazan-ka-tareka-hindi.html

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