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सारी सृष्टि को बनाने वाला परमात्मा एक ही है

(1) ईद-उल-फितर सारे विश्व में भाईचारे को बढ़ावा देने वाला त्यौहार है
ईद उल-फितर रमजान उल-मुबारक के महीने के बाद खुशी के त्यौहार के रूप में मुसलमान भाई-बहिन मनाते हैं, जिसे ईद उल-फितर कहा जाता है। ईद उल-फितर इस्लामी कैलेंडर के दसवें महीने के पहले दिन मनाया जाता है। इस्लामी कैलेंडर के सभी महीनों की तरह यह भी नए चाँद के दिखने पर शुरू होता है। मुसलमानों का त्यौहार ईद मूल रूप से सारे विश्व में भाईचारे को बढ़ावा देने वाला त्यौहार है। इस त्यौहार को सभी आपस में मिल के मनाते हैं और खुदा से सुख-शांति और बरक्कत के लिए दुआएं मांगते हैं। पूरे विश्व में ईद की खुशी पूरे हर्षोल्लास से मनाई जाती है। किसी ने क्या खूब कहा है… रात को नया चाँद मुबारक, चाँद को चाँदनी मुबारक, फलक को सितारे मुबारक, सितारों को बुलंदी मुबारक, और आपको ईद मुबारक….!!!
(2) ईद में अल्लाह का शुक्रिया अदा करते हैं उन्होंने उपवास रखने की शक्ति दी
मुसलमानों का त्यौहार ईद रमजान का चांद डूबने और ईद का चांद नजर आने पर उसके अगले दिन चांद की पहली तारीख को मनाई जाती है। इस्लामी साल में दो ईदों में से यह एक है (दूसरा ईद उल जुहा या बकरीद कहलाता है)। उपवास की समाप्ति की खुशी के अलावा इस ईद में मुसलमान अल्लाह का शुक्रिया अदा इसलिए भी करते हैं कि उन्होंने महीने भर के उपवास रखने की शक्ति दी।
ईद के दौरान बढ़िया खाने के अतिरिक्त नए कपड़े भी पहने जाते हैं और परिवार और दोस्तों के बीच तोहफों का आदान-प्रदान होता है। सेवइयां इस त्यौहार की सबसे जरूरी खाद्य पदार्थ है जिसे सभी बड़े चाव से खाते हैं। ईद के दिन मस्जिदों में सुबह की प्रार्थना से पहले हर मुसलमान का फर्ज है कि वो दान या भिक्षा दे। इस दान को जकात उल-फितर कहते हैं। ईद के दौरान बढ़िया खाने के अतिरिक्त, नए कपड़े भी पहने जाते हैं और परिवार और दोस्तों के बीच तोहफों का आदान-प्रदान होता है। परम्परा यह है कि ईद उल-फितर के दौरान ही झगड़ों खासकर घरेलू झगड़ों को निबटाया जाता है।
(3) इस्लाम शब्द का अर्थ है शान्ति 
इस्लाम धर्म में अच्छा इन्सान बनने के लिए बुनियादी पांच कर्तव्यों को अमल में लाना अति आवश्यक है। पहला ईमान – अल्लाह के परम पूज्य होने का इकरार। दूसरा नमाज, तीसरा रोजा, चौथा हज और जकात। इस्लाम के ये पांचों फराईज इन्सान को इन्सान से प्रेम, सहानुभूति, सहायता तथा हमदर्दी की प्रेरणा देते हैं। इस्लाम शब्द अरबी भाषा का है। इस्लाम का अर्थ है, इताअत (दान) करना, शरण लेना, अपने-आपको ईश्वर की मर्जी पर पूरी तरह से छोड़ देना।
‘इस्लाम’ शब्द जिस मूल धातु से बना है, उसका अर्थ है- शान्ति। इस्लाम धर्म को मानने वाले जब एक-दूसरे से मिलते हैं तो कहते हैं..अस्सलामोअ़लेकुम जिसका अर्थ होता है- आपको शांति मिले। इस्लाम धर्म के मूल में भी एकता, करूणा, समता, भाईचारा और त्याग की वही सीख प्रवाहित हो रही है, जो विश्व के अन्य धर्मों के मूल में है। एक अल्लाह को मानना, सबसे भाईचारा बरतना, पसीने की कमाई खाना, सदाचार का पालन करना- इस्लाम के रसूल हजरत मोहम्मद साहब का यह आदेश है।
(4) वही सच्चा मुसलिम है जो अल्लाह की शिक्षाओं पर ईमान लाता है
इस्लाम धर्म में ऐसा माना गया है कि जो आदमी नीचे लिखी पाँच बातों पर ईमान लाता है तथा इन पर विश्वास करता है, वही मुसलिम, वही ईमानवाला है:- (पहला) अल्लाह पर ईमान, (दूसरा) अल्लाह की किताबों पर ईमान, (तीसरा) फ़रिश्तों पर ईमान (चौथा) रसूलों पर ईमान (पांचवा) आखिरत पर ईमान। हम जीवन में जो भले-बुरे काम करते हैं, उनका फल हमें एक दिन भोगना पड़ेगा। एक दिन सबका न्याय होगा। उस दिन का नाम है – आखिरत। कोई नहीं जानना कि कब हमारे जीवन का अंतिम पल है। इसलिए रोजाना सोने के पूर्व अपने कर्मों का लेखा-जोखा कर लेना चाहिए।
(5) सारी सृष्टि को बनाने वाला परमात्मा एक ही है   
मोहम्मद साहब का जन्म आज से लगभग 1400 वर्ष पूर्व मक्का में हुआ था। अल्पायु में अनाथ एवं यतीम हो जाने के कारण वे शिक्षा से वंचित रहे। केवल 12 वर्ष की आयु में वे अपने चचा के साथ व्यापार में लग गये। प्रभु की इच्छा और आज्ञा को पहचानते हुए मूर्ति पूजा छोड़कर एक ईश्वर की उपासना की बात पर तथा अल्ला की राह पर चलने के कारण मोहम्मद साहब को मक्का में अपने नाते-रिश्तेदारों, मित्रों तथा दुष्टों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा और 13 वर्षों तक मक्का में वे मौत के साये में जिऐ। जब वे 13 वर्ष के बाद मदीने चले गये तब भी उन्हें मारने के लिए कातिलों ने मदीने तक उनका पीछा किया। मोहम्मद साहब की पवित्र आत्मा में अल्लाह (परमात्मा) के दिव्य साम्राज्य से कुरान की आयतें 23 वर्षों तक एक-एक करके नाजिल हुई। कुरान में लिखा है कि खुदा रबुलआलमीन है। आलमीन के मायने सारी सृष्टि को बनाने वाला अल्लाह एक ही है। अर्थात खुदा सारी सृष्टि को बनाने वाला है तथा इस संसार के सभी इन्सान एक खुदा के बन्दे और भाई-भाई हैं। इसलिए हमें भी मोहम्मद साहब की तरह अपनी इच्छा नहीं वरन् प्रभु की इच्छा और प्रभु की आज्ञा का पालन करते हुए प्रभु का कार्य करना चाहिए।
परमात्मा ने मोहम्मद साहब के द्वारा ‘कुरान’ के माध्यम से मानव जाति को ‘भाईचारे’ का सन्देश दिया है। मोहम्मद साहब ने जो उपदेश दिये वे ‘हदीस’ में संगृहित हैं।
 
(6) मोहम्मद साहब ने सारी मानव जाति को मिल-जुलकर रहने का संदेश दिया   
पैगम्बर मोहम्मद ने उन बर्बर कबीलों के सामाजिक अन्याय के प्रति जिहाद करके समाज को उनसे मुक्त कराया। तथापि मानव जाति में भाईचारे की भावना विकसित करके आध्यात्मिक साम्राज्य स्थापित किया। मोहम्मद साहब का एक ही पैगाम था पैगामे भाईचारा। मोहम्मद साहब ने मक्का में जो लोग खुदा को नहीं मानते थे उनके लिए उन्होंने कहा कि वे खुदा के बन्दे नहीं हैं अर्थात वे काफिर हैं। इसी प्रकार जेहाद का मतलब अपने अंदर के शैतान को मारना है। वास्तव में मनुष्य जिस मात्रा में अल्ला की राह में स्वेच्छापूर्वक दुःख झेलता है उसी मात्रा में उसे अल्ला का प्रेम व आशीर्वाद प्राप्त होता है।
(7) भाईचारे की राह पर चलने पर ही सारी मानव जाति की भलाई है 
मोहम्मद साहब ने अनेक कष्ट उठाकर बताया कि खुदा के वास्ते एक-दूसरे के साथ दोस्ती से रहो। आपस में लड़ना खुदा की तालीम के खिलाफ है। मोहम्मद साहब की शिक्षायें किसी एक धर्म-जाति के लिए नहीं वरन् सारी मानव जाति के लिए है। मोहम्मद साहब की बात को मानकर जो भी भाईचारे की राह पर चलेगा उसका भला होगा। मोहम्मद साहब ने अपनी शिक्षाओं द्वारा विश्व बन्धुत्व का सन्देश सारी मानव जाति को दिया। अल्ला की ओर से मोहम्मद साहब पर नाजिल (अवतरित) हुई कुरान की आयतें हमें अपने अंदर की जंग जीतने का सन्देश देती है। परमात्मा की ओर से आये पवित्र ग्रन्थों की शिक्षाओं को जीवन में धारण करना ही हमारे जीवन का मकसद है। यही सच्चा जेहाद है। मुसलमान के मायने जिसका अल्ला पर ईमान सच्चा हो। केवल रफीक, अहमद आदि नाम रख लेने से कोई मुसलमान नहीं हो जाता। मुसलमान बनने के लिए अल्ला की शिक्षाओं पर चलना जरूरी है।
(8) सारे विश्व में शान्ति स्थापित करने के लिए उसे एकता की डोर से बांधना पड़ेगा
ईश्वर एक है। धर्म एक है तथा सारी मानव जाति एक है। हम सभी परमात्मा की आत्मा के पुत्र-पुत्री हैं। इस नाते से सारी मानव जाति हमारा कुटुम्ब है। विश्व के लोग अज्ञानतावश आपस में लड़ रहे हैं। हमें उन्हें एकता की डोर से बाँधकर एक करना है। हमें बच्चों को बाल्यावस्था से ही यह संकल्प कराना चाहिए कि एक दिन दुनियाँ एक करूँगा, धरती स्वर्ग बनाऊँगा। विश्व शान्ति का सपना एक दिन सच करके दिखलाऊँगा। परमात्मा की ओर से अवतरित पवित्र पुस्तकों का ज्ञान सारी मानव जाति के लिए हैं। यदि बच्चे बाल्यावस्था से ही सारे अवतारों की मुख्य शिक्षाओं मर्यादा, न्याय, सम्यक ज्ञान (समता), करूणा, भाईचारा, त्याग तथा हृदय की एकता को ग्रहण कर लें तो वे टोटल क्वालिटी पर्सन बन जायेंगे। इस नयी सदी में विश्व में एकता तथा शान्ति लाने के लिए टोटल क्वालिटी पर्सन (पूर्णतया गुणात्मक व्यक्ति) की आवश्यकता है।
(नोट : संबंधित लेख में दिये गये तथ्यों की पुष्‍टि UPUKLive.com नहीं करता साथ ही लेख में हुई अभिव्यक्ति लेखक के निजी विचार हैं। UPUKLive का इससे सहमत होना जरूरी नहीं। UPUKLive लेखक के विचारों के प्रति किसी भी प्रकार से उत्‍तरदायी नहीं है।)
लेखक डॉ. जगदीश गांधी एक सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षाविद् और लेखक होने के साथ-साथ एक मोटीवेटर भी हैं, जो अपने लेखन व कार्यशालाओं के जरिए तरह तरह की मोटीवेशनल एक्टिविटी करते रहते हैं। डॉ. गांधी संप्रति सिटी मांटेसरी स्कूल के संस्थापक व प्रबंधक हैं।
Source: upuklive
As-salam-o-alaikum my selfshaheel Khan from india , Kolkatamiss Aafreen invite me to write in islamic blog i am very thankful to her. i am try to my best share with you about islam.
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