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durood sareef

●दुरुद पढ़ना क़यामत के खतरात से नजात का सबब है।

●दुरुद पढ़ने से बन्दे को भूली हुई बात याद आ जाती है।

●दुरुद मजलिस की पाकीज़गी का बाइस है और क़यामत के दिन ये मजलिस बाइसे हसरत नही होगी।

●दुरुद पढ़ने से तंगदस्ती दूर होती है।

●ये अमल बन्दे को जन्नत के रस्ते पर डाल देता है।

●दुरुद पुल सिरात पर बन्दे की रौशनी में इज़ाफ़े का बाईस है।

●दुरुद के ज़रिए बन्दा ज़ुल्म व जफ़ा से निकल जाता है।

●दुरुद पढ़ने की वजह से बन्दा आसमान और ज़मीन में क़ाबिले तारीफ़ हो जाता है।

●दुरुद पढ़ने वाले को इस अमल की वजह से उस की ज़ात, अमल, उम्र और बेहतरी के अस्बाब में बरकत हासिल होती है।

● दुरुद रहमते खुदा वन्दी के हुसूल का ज़रिया है।

●दुरुद महबूबे रब्बुल इज़्ज़तﷺ से दायमी महब्बत और इसमें ज़्यादती का सबब है और ये इमानी उकुद मेसे है। जिस के बैगेर ईमान मुकम्मल नही होता।

● दुरुद पढने वाले से आपﷺ महब्बत फरमाते है

●दुरुद पढ़ना, बन्दे की हिदायत और उसकी ज़िन्दा दिली का सबब है क्यू की जब वो आपﷺ पर कसरत से दुरुद पढता है और आपﷺ का ज़िक्र करता है तो आपﷺ की महब्बत उसके दिल पर ग़ालिब आ जाती है।

●दुरुद पढ़ने वाले का ये एज़ाज़ भी है कि हुज़ूरﷺ की बारगाह में उसका नाम पेश किया जाता है और उसका ज़िक्र होता है।

●दुरुद पुल सिरात पर साबित कदमी और सलामती के साथ गुज़रने का बाईस है।
📚जिलाउल अफहाम, 246)
📚(मदनी पंजसुरह, 166)

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