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FIQH OF RAMADAN

“रमजान के मसाईल”- अध्याय ६: रमजान के दौरान के नेक अमाल

रमजान के दौरान के नेक अमाल

कियाम उल लायल और तरावीह की नमाज़:

अल्लाह के नबी (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) ने हमेशा रात की नमाज़ केलिए प्रोत्साहित किये है| यह नमाज़ को “तहाज्जुद/ कियाम उल लायल” कहते हा| और रमजान में इसी नमाज़ को तरावीह कहते है| तरावीह की नमाज़ का वक़्त ईशा की नमाज़ ख़तम होने के बाद से लेके फज्र की नमाज़ शुरू होने तक रहता है, इस दौरान हम कभी भी नमाज़ पढ़ सकते है| नबी इ करीम (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) हमेशा गयारह रकत पढ़ते थे, रात की नमाज़ों केलिए| फिर भले वोह रमजान हो या रमजान के बाद हो वोह गयारह रकत पढ़ते थे मगर ११ रकत से ज्यादा भी पढ़ सकते है इन श अल्लाह|

इब्न उम्र (रजी अल्लाहु अन्हु) फरमाते है : एक बार एक आदमी नबी इ करीम (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) के पास आया रात की नमाज़ का पूछने: और आपने जवाब दिए, रात की नामाज़ दो दो रकात है फिर जब कोई सुबह होजाने से डरे तो एक रकात पढले वोह इसकी सारी नमाजें को टाक बनादेगी|( सहीह बुखारी-उर्दू, किताब २, हदीस नो:९९०)

दो फिरकों ने इस मसले पर खूब तहकीकात किये है, एक फिरका कहता है की जो गयारह रकात से ज्यादा पढ़ेगा वोह बिद्दत कर रहा है| और दूसरा फिरका कहता है जो सिर्फ गयारह रकात पढ़ते है वोह उलेमा लोग के खिलाफ जारे है|

चलिए हम शैख़ इब्न उठाय्मीन (अल्लाह उनपे रहें करे) क्या कहते है इस विषय में यह देखते है: यहाँ हम कहरे है की हमें नाही चरम सीमाओं तक जाना है और नाही लापरवाह होना है| कुछ लोग हद से ज्यादा ही पालन करते है संख्या जो सुन्नत में है उसे को लेके, और कहते है की जितना सुन्नत है उससे ज्यादा रकात पढ़ने की इज़ाज़त नहीं है, और आक्रामक निंदा में कहते है की जो ज्यादा रकात पढ़ेगा वोह गुनेहगार है|

यह निस्संदेह गलत है| वह गुनेहगार कैसे हो सकते है, जबकी हमारे प्यारे नबी (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) से रात की नमाज़ का पूछे जाने पे उन्होंने कहा की दो दो करके पढ़ी जाए, उन्होंने कोई संख्या नहीं बताये थे? जरुर जिसने उनसे रात की नमाज़ के बारें में पुचा उसे भी संख्या के बारें में नहीं पता होगा, क्यूंकि उसे यही नहीं पता के नमाज़ कैसे अदा करें, तो यह बात भी जाहीर होती है की उसे भी संख्या के बारे में नहीं पता था| क्यूंकि वह नबी (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) की सेवा करने वालों में से भी नहीं था तो हम यह कह सकते है की उसे पता था की उनके घर में क्या हुआ| नबी (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) ने इस मसले के बारे में यह तो बता दिए के कैसे पढ़ते है मगर यह नहीं बताये के कितनी पढेंगे, और इसका मतलब यह है की हम या तो सौ रकात भी पढ़ सकता है और फिर वित्र पढ़े एक रकात के साथ|

तरावीह नफिल नमाज़ है जिससे की मोमिन कोशिश करता है की वोह अल्लाह की प्रशंसा पा सके और अल्लाह के करीब जाने की कोशिश करता है| अबू हुरैरह रजी अल्लाहु अन्हु फरमाते है नबी(सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) ने फ़रमाया: “जो कोई रमजान में (रातों को) इमान रख कर और सवाब केलिए इबादत करे इसके अगले गुनाह बक्श दिए जाते है|” (सहीह बुखारी-उर्दू,जिल्द १, हदीस नो-३७)

हज़रात अबुज़र फरमाते है की नबी(सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) फरमाते है: “जो सख्स इमाम के साथ उसके फरीक होने तक नमाज़ में शरीक रहा उसके लिए पूरी रात का कियाम लिख दिया गया|” (तिरमिज़ी, जिल्द १, ७८४)

दान करना

रमजान के एक अमाल में से सदकाह और एहसान भी है, जो दुसरे महीने के मुकाबले में ज्यादा पुण्य का काम है| दान देने का मकसद अल्लाह की रज़ा हासिल करना है| अल्लाह ता’अल फरमाते है: “जो अची चीज़ तुम खर्च करोगे इसका पूरा अज़र तुम्हें दिया जायेगा और तुमपर ज़ुल्म नहीं किया जायेगा|” (अल-बक़रह: २७२)

हज़रात इब्न अब्बास रजी अल्लाहु अन्हु से रिवायत है रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) सबलोगों से ज्यादा दरयादिल थे और रमजान में(दुसरे वक़्त के मुकाबले में जब) जिब्रील आप(सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) से मिलते बहुत खर्च करते और जिब्रील अलैही रमजान उल मुबारक में हर रात आपसे मुलाकात करते और कुरान इ मजीद का दौर फरमाते रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम सदका करने में आंधी से भी ज्यादा तेज्तेज़ रफ़्तार होते|” (सहीह बुखारी-उरु, जिल्द१, नो-६)

कुरान की तिलावत में इजाफा

माह रमजान उल मुबारक कुरान का महिना है, जिसमे कुरान को अपनी क्षमता के अनुसार तिलावत करनेक का सुझाव की गयी है| अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम कुरान की तिलावत गहरे ध्यान और उसके अर्थ की गहरी तफकर के साथ करते| क्यूंकि कुरान रमजान के महीने में नाज़िल हुआ| अल्लाह ता’अला का इरशाद है, “ रमजान का वोह महिना जिसमे कुरान उतारा गया जो लोगों के वास्तव हिदायत है और हिदायत की रौशनी दलीलें और हक व बातिल में फर्क करने वाला है…” (अल-बक़रह: १८५)

रमजान वोह महिना है जिसमे कुरान सबसे पहले नाज़ील हुआ| इसलिए हमें इस मुबारक महीने का ज्यादा हिस्सा कुरान की तिलावत में गुज़ारना चाहिए|

अज-ज़ुहरी रजी अल्लाहु अन्हु जब रमजान आया तो कहा करते, “ यह सिर्फ कुरान की तिलावत और गरीब को खिलाने का है|”

अब्दुर-राजिक रजी अल्लाहु अन्हु फरमाते है, “जब रमजान आता, सुफ्याँ-अल सूरी नफ्ली इबादत को छोड़ कर कुरान की तिलावत में लग जाते|”

लेकिन हम में से बोहुत लोगों केलिए पिछली बार कुरान उठाये तबसे इस पर धुल जमा हुई है|

जैसे रमजान करीब आरहा है, हमें इस धुल को फूंक कर कुरान के साथ गहरा रिश्ता जोड़ना चाहिए, क्यूंकि आखिरत के दिन कुरान हमारी शिफारिश करे गा| अबू इमाम बहली(रजी अल्लाहु ता’अला अन्हु) ने कहा के मैंने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम से सुना आप फरमाते थे: “कुरान पढो इसलिए के वोह क़यामत के दिन अपने पढने वालों का सिफारिश हो कर आये गी|” (सहीह मुस्लिम,जिल्द २, १८६२)

दुसरे समय पर कुरान के हर हुरूफ़ को पढने का सवाब दस नेकियाँ है, लेकिन रमजान में यह सवाब बढ़ा दिया जाता है, हजरत अब्दुल्लाह बिन मसूद रजी अल्लाहु अन्हु कहते है की रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फ़रमाया: “ जिसने कुरान इ मजीद में से एक हुरूफ़ पढ़ा इसे इसके बदले एक नेकी दी जाएगी और हर नेकी का सवाब दस गुनाह है में नहीं कहता के आलम(एक) हुरूफ़ है बलके अलिफ़ एक हुरूफ़ है, लाम एक हुरूफ़ है और मीम भी एक हुरूफ़ हा|” (तिरमिज़ी, जिल्द २,८१९)

हज़रात इब्न अब्बास रजी अल्लाहु अन्हु से रिवायत है रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) सबलोगों से ज्यादा दरयादिल थे और रमजान में(दुसरे वक़्त के मुकाबले में जब) जिब्रील आप(सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम) से मिलते बहुत खर्च करते और जिब्रील अले सलाम रमजानुल

मुबारक में हर रात आपसे मुलाकात करते और कुरान इ मजीद का दौर फरमाते रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम सदका करने में आंधी से भी ज्यादा तेज्तेज़ रफ़्तार होते|” (सहीह बुखारी-उरु, जिल्द१, नो-६)

लिहाज़ा हमारे लिए इससे बेहतर वक़्त कौनसा होसकता है के हम कुरान की तिलावात की आदात करलें| हमें चाहिए के हम कुरान को इसके अर्थ के साथ पढ़े और इसको समझने की कोशिश करें साथ ही इसे अपनी ज़िन्दगी में अमल करें|

हम अपने लिए एक यथार्थवादी लक्ष्य तय करलें के हम रोजाना कुरान की कितनी तिलावत करें, जैसे के हम कुछ पेज या निष्फ जुज़(हिस्सा) या एक जुज़ की तिलावत करेंगे| हमें चाहिए के हम से कितना होसके उतना तिलावत करें और फिर अहिस्ता अहिस्ता बढ़ाते जाएँ| और रमजान उल मुबारक में कमसे कम एक बार पुरे कुरान की तिलावत करने की कोशिश करें|

अल्लाह से डरने की हर किसी को अपनी योग्यता की मुताबिक बेहतरीन कोशिश करना- पूरी इमानदारी और सच्चे दिल से|

इस तरह एक भयभीत मन उत्पन्न करने के लिए बेहतरीन तरीका यह है की कुरान की तिलावात ध्यान से गौर और फ़िक्र और इसके अर्थ के साथ करें| इसके इलावा कुरान की तिलावत के वक़्त, इसे चाहिए के वोह अल्लाह की आला कुदरत और इसकी शान पर गौर करी| “अल्लाह स डरो अल्लाह तुम्हे सिखाता है” (अल-बक़रह:२८२)

“और ये लोग (सजदे के लिए) मुँह के बल गिर पड़तें हैं और रोते चले जाते हैं, और ये क़ुरान उन की ख़ाकसारी के बढ़ाता जाता है (सजदा)” (बनी-इजराइल:१०९)

“सच्चे ईमानदार तो बस वही लोग हैं कि जब (उनके सामने) ख़ुदा का ज़िक्र किया जाता है तो उनके दिल हिल जाते हैं, और जब उनके सामने उसकी आयतें पढ़ी जाती हैं तो उनके ईमान को और भी ज्यादा कर देती हैं, और वह लोग बस अपने परवरदिगार ही पर भरोसा रखते हैं” (अल-अनफल:२)

अबू हुरैरह राज़ी अल्लाहु अन्हु से रिवायत है नबी अकरम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम फरमाते है: “साथ तरह के आदमी होंगे जिनको खुदा उस दिन अपने साए में जगह देगा| जिस दिन उसके साए के सिवा कोई असाया न होगा| एक इन्साफ करने वाला बादशाह, दुसरे वोह नौजवान जो अपने रब की इबादत में जवानी की उमंग से मसरूफ रहा, तीसरा ऐसा सख्श जिसका दिल हर वक़्त मस्जिद में लगा रहता है, चोहते दो ऐसे सक्ष जो अल्लाह केलिए मुहब्बत रखते हैं और इनके मिलने और जुदा होने की बुनियाद लिल्लाहि मुहब्बत है, पांचवां वोह शक्श जिसे किसी बैज्ज़त और हसीन औरत ने(बुरे इरादे से) बुलाया लेकिन इसने कहदिया के में खुदा से डरता हूँ, छत्ता वोह शक्श जिसने

दान किया, साठवां वोह शक्श जिसने तन्हाई में अल्लाह को याद किया और आँखों से आंसू जारी होगये|” (सहीह बुखारी,जिल्द १,२२०)

हमें चाहिए के हम इस महीने का इस्तेमाल करें और इस ढाल में आजाएं ताके इन-श-अल्लाह हमें अपने आने वाली ज़िन्दगी में अल्लाह ता’अला का एहसास हो|

एत्तेकाफ

एत्तेकाफ रमजान उजल मुबारक का एक खुसूसी हिस्सा है| एत्तेकाफ का मतलब अपने आप को सिर्फ अल्लाह ता’अला की इबादत केलिए हर जाती और दुनियावी मामले को छोड़ कर मस्जिद में सिमित रहना है| जो शक्श एत्तेकाफ की हालत में होता है इसका दिमाग सिर्फ अल्लाह को राज़ी करने में लगा रहता है| वोह विभिन्न प्रकार के इबादत, तौबा, और अल्लाह की मगफिरत तलब करने में व्यस्त रहता है| जितना संभव हो उतना नफिल पढता है, अल्लाह का ज़िक्र और उससे दुआएं मांगता है, इसलिए एत्तेकाफ की इबादत के अमाल का बहुत महत्व है|

अब्दुल्लाह बिन उम्र रजी अल्लाहु अन्हु ने कहा के रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम रमजान के आखरी अश्रे में एत्तेकाफ करते थे|” (सहीह बुखारी, जिल्द३, २०२५)

आयेशा रजी अल्लाहु अन्हुमा ने फ़रमाया के नबी इ करीम सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम अपनी मृत्यु तक बराबर रमजान आखरी अश्रे में एत्ताकाफ करते रहे, और आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम के बाद आप सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम की पत्नियां एत्तेकाफ करती रही| (सहीह बुखारी, जिल्द ३, २०२६)

इससे यह मालूम होता है के औरतों केलिए एत्तेकाफ की इज़ाज़त है जो आजकल के ख्याल के विपरीत है|

लाय्लातुल कद्र की तलाश

लाय्लातुल कद्र एक हज़ार महीनो से ज्यादा अफज़ल और काबिल है| यह वोह रात है जिसमें कुरान नाजिल हुआ था| अल्लाह ता’अला कुरान में फरमाते है: “हमनें इसे(कुरान ) कद्र की रात में अवतरित किया| और तुम्हें क्या मालूम की कद्र की रात क्या है? कद्र की रात उत्तम है हज़ार महीनो स” (सुरह अल-कद्र:१-३)

यह रात हर साल रमजान उल मुबारक के आखरी अश्रे की ताक रातों में होती है| इसकी मौजूदगी का सही वक़्त नहीं मालूम है| इसके वक़्त के बारें में स्पष्ट रूप से सिर्फ इतना पता है के यह रमजान की आखरी अश्रे में होती है| बहुत से उलेमा इ अकरम की राय है के यह आखरी अश्रे के ताक रातों में एक साल से दुसरे साल बदलती है| मिसाल की तौर पे: एक साल २१वि रात को हो सकती है तो दुसरे साल २७वी रात को हो सकती है| इसके छुपाने के पीछे एक एहेम वजह है के मुसलमान को चाहिए के इन ताक रातों में अल्लाह की इबादत की कोशिश करे ताके इस वक़्त का सवाब और फ़ज़ीलत हासिल हो|

अबू हुरैरह रजी अल्लाहु अन्हु से रिवायत है, नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम फरमाते थे: “ जो सख्श रमजान के रोज़ा ईमान और जवाबदेही(हसुल, अज़र और सवाब की निय्यत) के साथ रखे, इसके अगले तमाम गुनाह माफ़ करदिये जातें है, और जो लाय्लातुल कद्र में इमान व जवाबदेही के साथ नमाज़ में खड़ा रहे, इसके भी अगले तमाम गुनाह माफ़ कर दिए जाते है|” (सहीह बुखारी,जिल्द३,२०१४)

मतलब जब भी आप इन ताक रातों में इबादत की कोशिश करें गे आपको इस रात का अज़र जरुर मिलेगा|

रमजान उल मुबारक में उमराह करना

रमजान में उमराह करना बहुत अफज़ल है क्यूंकि यह एक हज के बराबर है|(सवाब है)

अब्दुल्लाह इब्न अब्बास रजी अल्लाह से रिवायत है नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम ने फ़रमाया: “रमजान का उमराह एक हज के बराबर होता है..”(सहीह उल बुखारी, जिल्द३, १७८२)

टिप्स टेस्ट केलिए:

१) आयात और हदीस याद करने की जरुरत नहीं है सिर्फ इसमें दिए सन्देश को ध्यान से पढ़े|

२) मसले याद रखें|

Aafreen Seikh is an Software Engineering graduate from India,Kolkata i am professional blogger loves creating and writing blogs about islam.
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